3 मई

प्रेरित फ़िलिप और याकूब का पर्व

पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:1-8

1) भाइयो! मैं आप लोगेां को उस सुसमाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया, जिस में आप दृढ बने हुये हैं,

2) और यदि आप उसे उसी रूप में बनाये रखेंगे, जिस रूप में मैंने उसे आप को सुनाया, तो उसके द्वारा आप को मुक्ति मिलेगी। नहीं तो आपका विश्वाश व्यर्थ होगा।

3) मैंने आप लोगों को मुख्य रूप से वही शिक्षा सुनायी, जो मुझे मिली थी और वह इस प्रकार है- मसीह हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए मरे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है।

4) वह कब्र में रखे गये और तीसरे दिन जी उठे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है।

5) वह कैफ़स को और बाद में बारहों में दिखाई दिये।

6) फिर वही एक ही समय पाँच सौ से अधिक भाइयों को दिखाई दिये। उन में से अधिकांश आज भी जीवित हैं, यद्यपि कुछ मर गये हैं।

7) बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये।

8) सब के बाद वह मुझे भी, मानों ठीक समय से पीछे जन्में को दिखाई दिये।

सुसमाचार : सन्त योहन 14:6-14

6) ईसा ने उस से कहा, ’’मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।’’

7) यदि तुम मुझे पहचानते हो, तो मेरे पिता को भी पहचानोगे। अब तो तुम लोगों ने उसे पहचाना भी है और देखा भी है।’’

8) फिलिप ने उन से कहा, ’’प्रभु! हमें पिता के दर्शन कराइये। हमारे लिये इतना ही बहुत है।’’

9) ईसा ने कहा, ’’फिलिप! मैं इतने समय तक तुम लोगों के साथ रहा, फिर भी तुमने मुझे नहीं पहचाना? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है। फिर तुम यह क्या कहते हो- हमें पिता के दर्शन कराइये?’’

10) क्या तुम विश्वास नहीं करते कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं? मैं जो शिक्षा देता हूँ वह मेरी अपनी शिक्षा नहीं है। मुझ में निवास करने वाला पिता मेरे द्वारा अपने महान कार्य संपन्न करता है।

11) मेरी इस बात पर विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं, नहीं तो उन महान कार्यों के कारण ही इस बात पर विश्वास करो।

12) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ जो मुझ में सिवश्वास करता है, वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूँ। वह उन से भी महान कार्य करेगा। क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।

13) तुम मेरा नाम ले कर जो कुछ माँगोगे, मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा, जिससे पुत्र के द्वारा पिता की महिमा प्रकट हो।

14) यदि तुम मेरा नाम लेकर मुझ से कुछ भी माँगोगें, तो मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु ने इस संसार में अपने कार्य को आगे ले चलने के लिए बारहों शिष्यों को चंुना जो आगे चल कर प्रेरित कहलाये। आज माता कलीसिया उन बारहों में से दो प्रेरित -संत फिलिप और संत याकुब का स्मरण करते हुये उनका पर्व मनाती है। प्रेरित कलीसिया के मजबूत प्रचारक थे जिन्होने अपने जीवन द्वारा जीवित प्रभु का साक्ष्य दिया।

बाईबिल में याकुब के विषय में बहुत ही कम विवरण दिया गया है। परंतु फिलिप के विषय में याकुब से ज्यादा विवरण पाते है। आज के सुसमाचार में भी हम प्रभु येसु और फिलिप के बीच में वार्तालाप को पाते है जहॉं प्रभु येसु एक महान रहस्य फिलिप के प्रश्न का उत्तर देते समय प्रकट करते है- ‘‘जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।’’

जब कभी हम किसी प्रेरित संत का पर्व मनाते है तब हमारे सामने उनके जीवन के तीन भागों पर मनन करना चाहिए-

पहला-प्रेरितों का प्रभु येसु से मिलने से पहले का जीवन

दूसरा-प्ररितों का प्रभु येसु के साथ बिताया हुआ जीवन

तीसना-प्रेरितों का प्रभु येसु के पुनरुत्थान के बाद का जीवन

पहले जीवन भाग अर्थात् प्रभु येसु से मिलने से पहले वे अज्ञानता में जीवन व्यतीत कर रहें थे, एक संसारिक जीवन जी रहें थे।

दूसरे भाग में जहॉं वे प्रभु येसु के साथ समय बिताते है- जहॉं पर वे प्रभु येसु के चमत्कारों को देखते है, उनके प्रवचन और दृष्टांतों को सुनते है, येसु के द्वारा प्रकट किये गये महान रहस्यों को सुनते है लेकिन वे उन सब को उस समय नहीं समझ पाते है।

तीसरे भाग में प्रभु येसु के पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा से भरने के बाद उनको प्रभु येसु द्वारा कहीं गई सभी बातों और रहस्यों को अर्थ पता चलता है, उन्हे पता चलता है कि येसु कौन है? और उस से भी अधिक वे संासारिक जीवन से उपर उठ कर उन्हें अपने जीवन का अर्थ और जीवन का मकसद पता चलता है।

ये तीनों भाग प्रेरितों के जीवन में प्रमुख भुमिका निभाती है जहॉं पर वे साधारण जीवन से महान संत के रूप में उभर कर सामने आते है। प्रेरितो का जीवन हम सभी को प्रेरणा देता है कि हम भी येसु और अपने जीवन के मकसद को पहचाने और यह तभी हो सकता है जब हम यह तीनों जीवन के भाग को पूर्णता तक इस संसार में जीयंे। हममें से अधिकतर लोग पहले या दूसरे जीवन के भाग में ही सिमट कर रह जाते है। आईये हम प्रेरित फिलिप और याकुब से प्रार्थना करें कि जिस प्रकार उन्होंने प्रभु और उनके इस संसार में आने के मकसद को पहचान कर उनके कार्यों के लिए अपने जीवन तक को न्योछावर कर दिया, हम भी उसी प्रकार येसु को सच्चे रूप में पहचान सकें।

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


Jesus chose the twelve disciples who were later called Apostles to carry forward his mission in this world. Among the twelve, today the Catholic Church remembers the two Apostles- St.Philip and St. James and celebrates their feasts. Apostles were the strong preacher who witnessed the Lord through their lives

There is very less information about St.James in the Bible, but there is somewhat more description of Philip than James in the Bible. In today’s Gospel passage we see the conversation between Jesus and Philip where Lord Jesus reveals the great mystery while answering to the question of Philip- “Whoever has seen me has seen the Father.”

Wheneve we celebrate the feasts of any Apostles then we have to reflect the three phases of their lives-

First-The life of Apostles before encountering Jesus

Second- The life of Apostles spend with Jesus

Third- The life of Apostles after the Resurrection of Jesus

In the first phase of their lives i.e., before meeting Jesus there were living an ignorant life, a worldly life.

In Second phase where they spend their lives with Jesus- They witness the miracles of Jesus, they hear the sermons and parables of Jesus, they listen the great mysteries revealed by Jesus but at that moment they were not able to understand it fully.

In the Third phase- After the Resurrection of Jesus and filling of the Holy Spirit they understand the meaning of the words and mystery spoken by Jesus, they come to know who the Jesus really is? And all the more they rise above the worldlylives and come to know the meaning and purpose of their lives.

These three phases plays an important role in the lives of Apostles where they come forward as the great Saint from their simple lives. Life of Apostles gives us an inspiration that we must also recognize Jesus and the purpose of our lives and this is only possible when we live all these three phases of lives in this world. Most of us remain in the first or second phase only. Let’s pray to St. Philip and St. James as they recognized Jesus and the purpose of his coming surrendered their lives for it, we too may be able to recognize Jesus in true way.

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!