तुम, नवयुवकों! अध्यक्षों की अधीनता स्वीकार करो। आप सब-के-सब नम्रतापूर्वक एक दूसरे की सेवा करें; क्योंकि ईश्वर घमण्डियों का विरोध करता, किन्तु विनम्र लोगों पर दया करता है।
6) आप शक्तिशाली ईश्वर के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाये।
7) आप अपनी सारी चिन्ताएँ उस पर छोड़ दें, क्योंकि वह आपकी सुधि लेता है।
8) आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये।
9) आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें। आप जानते हैं कि संसार भर में आपके भाई भी इस प्रकार के दुःख भोग रहे हैं।
10) ईश्वर ने, जो सम्पूर्ण अनुग्रह का स्रोत है, आप लोगों को मसीह द्वारा अपनी शाश्वत महिमा का भागी बनने के लिए बुलाया। वह, आपके थोड़े ही समय तक दुःख भोगने के बाद, आप को परिपूर्ण, सुस्थिर, समर्थ तथा सुदृढ़ बनायेगा।
11) उसका सामर्थ्य अनन्त काल तक बना रहता है। आमेन!
12) मैंने आप लोगों को ढ़ारस बंधाने के लिए यह संक्षिप्त पत्र सिल्वानुस से लिखवाया है, जिन को मैं अपना विश्वसनीय भाई मानता हूँ। मैं आप को यह विश्वास दिलाता हूँ कि इस में जो लिखा हुआ है, वह ईश्वर का सच्चा अनुग्रह है। उस अनुग्रह में सुदृढ़ बने रहें।
13) बाबुल की कलीसिया के सदस्य, जो आपकी तरह ही ईश्वर के कृपापात्र हैं, और मेरा पुत्र मारकुस आप लोगों को नमस्कार कहते हैं।
14) प्रेम के चुम्बन से एक दूसरे का अभिवादन करें। मसीह के सच्चे भक्तों आप सबों को शांति।
15) इसके बाद ईसा ने उन से कहा, "संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ।
16) जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, उसे मुक्ति मिलेगी। जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा।
17) विश्वास करने वाले ये चमत्कार दिखाया करेंगे। वे मेरा नाम ले कर अपदूतों को निकालेंगे, नवीन भाषाएँ बोलेंगे।
18) और साँपों को उठा लेंगे। यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई हानि नहीं होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जायेंगे।“
19) प्रभु ईसा अपने शिष्यों से बातें करने के बाद स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो गये।
20) शिष्यों ने जा कर सर्वत्र सुसमाचार का प्रचार किया। प्रभु उनकी सहायता करते रहे और साथ-साथ घटित होने वाले चमत्कारों द्वारा उनकी शिक्षा को प्रमाणित करते रहे।
आज के सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों को सारी सृष्टि में सुसमाचार सुनाने का आदेश देते है। इसके साथ येसु सुसमाचार घोषणा के साथ साथ होने वाली विभिन्न चिन्ह एवं चमत्कार के विषय में बताते है। जो व्यक्ति अपने जीवन को सुसमाचार के लिए अर्पित करता है उनके जीवन में हम कई अद्भुद कार्य और चमत्कार को होते हुए हम देखते हैं। अपने सम्पूर्ण जीवन में सुसमाचार घोषणा करने वाले सभी प्रेरितों और संतो ने अपने जीवन में ईश्वर की आत्मा को कार्य करते हुए अनुभव किया।
हम सभी अपने जीवन के सभी मुद्दों तथा समस्याओं को सुलझने हेतु किसी चमत्कार या अद्भुत कार्य की आश करते है। यदि हम सुसमाचार घोषणा के लिए अपना जीवन येसु को समर्पित करते हैं तो येसु हमरे जीवन के सभी मुद्दों एवं समस्याओं का ध्यान रखेगा।
आज के पहले पाठ में पेत्रुस ईश्वर ़के विधान के अनुसार बुलाये गये लोगों को हिदायत देते है कि विनम्रता का पालन करों; सारी चिन्ताएॅं ईश्वर पर छोड़ दो; साथ ही साथ जागत रहें क्योंकि शत्रु, शैतान, विचरता और ढूॅंढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। शत्रु का सामना करने तथा थोड़ा दुख भोगने के बाद ईश्वर स्वयं हमें परिपूर्ण, सुस्थिर, समर्थ तथ सुदृढ़ बनायेगा। पेत्रुस की यह सलाह उन सभी लोगो पर बहुत सटीक तरह से लागू होती है जिन्होने अपना जीवन सुसमाचार घोषणा में समर्पित कर दिया। पेत्रुस की यह सलाह हमें यह सिखातीे है कि यदि हम विनम्रता, ईश्वर पर निर्भरता, शैतान या पाप का सामना तथा थोड़ा दुख भोगते है तो ईश्वर सदा हमें सुसमाचार घोषणा में सुस्थिर, समर्थ तथा सुद्ढ़ बनाये रखेगा। आईये पेत्रुस द्वारा दिये गये सलाह का पालन करते हुए हम अपने आप को सुसमाचार घोषणा के लिए ईश्वर का साधन बनाये तथा अपने जीवन में ईश्वर के कार्याे का अनुभव करें। आमेन
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
In today’s Gospel Jesus commissioned the eleven to proclaim the gospel to whole creation. And he assured the accompaniment of many signs and miracles along with the proclamation. Those who give their lives in proclamation we can see the wonders and miracles happening in their lives. All the apostles and saints who proclaimed the gospel experienced the spirit of God working in their lives.
We always think of a miracle or wonder to happen in our lives to solve the issues and complication of our lives. If we give our lives to Jesus for proclamation then all the issues and complexity of our lives be taken care by Jesus.
In today’s first reading Peter wrote to God’s elect and instructed them to practice the virtue of humility and to cast all the anxiety on God, at the same time be alert because the enemy the devil is always looking for someone to devour. If we resist him and suffer a little then at God himself will give strength, support and establish us. This advice of Peter is very relevant for all those who give their lives for the proclamation of gospel. This advice teaches that the God will always strengthen us and support us in our proclamation if we practice humility, dependence on God, resisting the evil work that is sin and enduring the suffering. Let’s make ourselves as God’s instrument for the proclamation by practicing the instruction given by St. Peter and experience the God’s working hand in our lives. Amen
✍ -Fr. Dennis Tigga