26 जनवरी

संत तिमथी एवं तीतुस

पहला पाठ : 2 तिमथी 1:1-8

1) यह पत्र प्रिय पुत्र तिमथी के नाम पौलुस की ओर से है, जिसे ईश्वर ने इस बात का प्रचार करने के लिए ईसा मसीह का प्रेरित चुना है कि उसने हमें जीवन प्रदान करने की जो प्रतिज्ञा की थी, वह ईसा में पूरी हो गयी है।

2) पिता-परमेश्वर और हमारे प्रभु ईसा मसीह तुम्हें कृपा, दया तथा शान्ति प्रदान करें!

3) मैं अपने पूर्वजों की तरह शुद्ध अन्तःकरण से ईश्वर की सेवा करता हूँ और उसे धन्यवाद देता हुआ निरन्तर दिन-रात तुम्हें अपनी प्रार्थनाओं में याद करता हूँ।

4) जब मुझे तुम्हारे आँसुओं का स्मरण आता है, तो तुम से फिर मिलने की तीव्र अभिलाषा होती है, जिससे मेरा आनन्द परिपूर्ण हो जाये।

5) तब मुझे तुम्हारा निष्कपट विश्वास सहज ही याद आता है। वह विश्वास पहले तुम्हारी नानी लोइस तथा तुम्हारी माता यूनीके में विद्यमान था और मुझे विश्वास है, अब तुम में भी विद्यमान है।

6) मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है।

7) ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया।

8) तुम न तो हमारे प्रभु का साक्ष्य देने में लज्जा अनुभव करो और न मुझ से, जो उनके लिए बन्दी हूँ, बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर भरोसा रख कर तुम मेरे साथ सुसमाचार के लिए कष्ट सहते रहो।


सुसमाचार : लूकस 10:1-9

1) इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।

2) उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।

3) जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।

4) तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।

5) जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’

6) यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।

7) उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।

8) जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।

9) वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु बड़े प्रभावशाली वक्ता हैं। वह ऐसे तरीक़ों और माध्यमों के द्वारा हमें समझाते हैं कि मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी उनके सन्देश को भली-भाँति समझ जाएगा। किसी भी सन्देश को समझना इस बात पर निर्भर करता है कि सुनने वाले उससे खुद को कितना जुड़ा हुआ पाते हैं। प्रभु येसु अपने सुनने वालों को पहचानते हैं, उनके सुनने वालों में हर तरह के लोग थे। फिर भी उनमें कुछ ऐसा था जो जिससे सब लोग परिचित थे, ऐसी रोज़मर्रा की चीजें और वस्तुएँ जिनसे वे अच्छी तरह से परिचित थे। प्रभु येसु स्वर्ग के महान रहस्यों को समझाने के लिए इन्हीं रोज़मर्रा की चीजों का उदाहरण देते हैं।

आज हम उन्हें ईश वचन के प्रभाव को समझाने के लिए बीज बोने वाला, बीज और मिट्टी का उदाहरण देते हुए देखते हैं। वह स्वयं ही उस दृष्टांत का अर्थ भी समझाते हैं। ईश वचन की फल उत्पन्न करने की क्षमता हमारे हृदय की मिट्टी, मन को खुला रखने की ज़रूरत, और ईश्वर के वचन को अपने जीवन में जीने की हमारी इच्छा पर निर्भर करता है। आइए हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें हमारे हृदय में उपजाऊ मिट्टी प्रदान करे जिससे ईश वचन उसमें खूब फलप्रद बने। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


Jesus is great communicator. He uses tools and methods to teach us in such a way that even the simplest of us would understand his message. The success of the message depends on to what extent the audience can relate themselves with the message. Jesus observes his listeners, he has audience from all categories of life. Even then what is most common is that they are simple people and familiar with all the things of their day-to-day life. Jesus makes use of examples from their day-to-day life to explain to them the great mysteries of beyond.

Today we see him using the example of the sower, seed and the soil in order to explain the effect of word of God. He himself even explains the parable. Fruitfulness of the word of God depends on the soil of our hearts, the openness and receptivity of our hearts, the promptness and willingness of ours to practice and live that word of God. Let us ask the Lord to bless us with the fertile soil for his word to yield great fruit in our lives. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!