19) क्योंकि वह दिन आ रहा है। वह धधकती भट्टी के सदृश है। सभी अभिमानी तथा कुकर्मी खूँटियों के सदृश होंगे। विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड़ ही।
20) किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलने लगोगे, जैसे बछड़े बाड़े से निकल कर उछलने-कूदने लगते हैं।
7) आप लोगों को मेरा अनुकरण करना चाहिए- आप यह स्वयं जानते हैं। आपके बीच रहते समय हम अकर्मण्य नहीं थे।
8) हमने किसी के यहाँ मुफ़्त में रोटी नहीं खायी, बल्कि हम बड़े परिश्रम से दिन-रात काम करते रहे, जिससे आप लोगों में किसी के लिए भी भार न बनें।
9) इमें इसका अधिकार नहीं था- ऐसी बात नहीं, बल्कि हम आपके सामने एक आदर्श रखना चाहते थे, जिसका आप अनुकरण कर सकें।
10) आपके बीच रहते समय हमने आप को यह नियम दिया- ’जो काम करना नहीं चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये’।
11) अब हमारे सुनने में आता है कि आप में कुछ लोग आलस्य का जीवन बिताते हैं। वे स्वयं काम नहीं करते और दूसरों के काम में बाधा डालते हैं।
12) हम ऐसे लोगों को प्रभु ईसा मसीह के नाम पर यह आदेश देते हैं और उन से अनुरोध करते हैं कि वे चुपचाप काम करते रहें और अपनी कमाई की रोटी खायें।
5) कुछ लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और मनौती के उपहारों से सजा है। इस पर ईसा ने कहा,
6) "वे दिन आ रहे हैं, जब जो कुछ तुम देख रहे हो, उसका एक पत्थर भी दूसरे पत्थर पर नहीं पड़ा रहेगा-सब ढा दिया जायेगा"।
7) उन्होंने ईसा से पूछा, "गुरूवर! यह कब होगा और किस चिन्ह से पता चलेगा कि यह पूरा होने को है?"
8) उन्होंने उत्तर दिया, "सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये; क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम ले कर आयेंगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘वह समय आ गया है’। उसके अनुयायी नहीं बनोगे।
9) जब तुम युद्धों और क्रांतियों की चर्चा सुनोगे, तो मत घबराना। पहले ऐसा हो जाना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।"
10) तब ईसा ने उन से कहा, "राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र उठ खड़ा होगा और राज्य के विरुद्ध राज्य।
11) भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पड़ेगा। आतंकित करने वाले दृश्य दिखाई देंगे और आकाश में महान् चिन्ह प्रकट होंगे।
12) "यह सब घटित होने के पूर्व लोग मेरे नाम के कारण तुम पर हाथ डालेंगे, तुम पर अत्याचार करेंगे, तुम्हें सभागृहों तथा बन्दीगृहों के हवाले कर देंगे और राजाओं तथा शासकों के सामने खींच ले जायेंगे।
13) यह तुम्हारे लिए साक्ष्य देने का अवसर होगा।
14) अपने मन में निश्चय कर लो कि हम पहले से अपनी सफ़ाई की तैयारी नहीं करेंगे,
15) क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी वाणी और बुद्धि प्रदान करूँगा, जिसका सामना अथवा खण्डन तुम्हारा कोई विरोधी नहीं कर सकेगा।
16) तुम्हारे माता-पिता, भाई, कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें पकड़वायेंगे। तुम में से कितनों को मार डाला जायेगा
17) और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे।
18) फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका नहीं होगा।
19) अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे।
शान्त पानी में नाव चलाना आसान है। बहते पानी की दिशा में यात्रा करना और भी आसान है। पानी के प्रवाह के विरुध्द चलना मुश्किल है। यह हमारे जीवन की भी सच्चाई है। हम हमेशा शांतिपूर्ण समय की उम्मीद करते हैं ताकि हमारा जीवन आसान हो। प्रवाह के साथ चलने की हमारी प्रवृत्ति है। हम लोकप्रिय तरीकों और पथों का अनुसरण करते हैं। हम बहुमत की तरह रहना पसंद करते हैं। सहकर्मियों तथा सहपाठियों का दबाव हमें प्रभावित करता है, विशेष रूप से युवा अवस्था में। प्रभु येसु ने हमें बताया कि हमें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजा जाता है और इसलिए हमें सांपों के समान बुध्दिमान और कबूतर की तरह निर्दोष बने रहना चाहिए (देखें मत्ती 10:16)। यह स्पष्ट है कि हमें अशांत जल पर पाल चलाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। प्रभु चाहते हैं कि न केवल हमारे लक्ष्य बल्कि हमारे साधन भी उचित हों। समाज में ऐसे कई लोग हैं जो हमें धोखा देना और गुमराह करना चाहते हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु हमें चेतावनी देते हैं - "सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये"। सुसमाचार के लिए प्रतिबद्ध शिष्यों को सताया जाएगा। फिर भी हमें प्रभु से सुखदायक आश्वासन प्राप्त है, “…अपने मन में निश्चय कर लो कि हम पहले से अपनी सफ़ाई की तैयारी नहीं करेंगे, क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी वाणी और बुद्धि प्रदान करूँगा, जिसका सामना अथवा खण्डन तुम्हारा कोई विरोधी नहीं कर सकेगा। तुम्हारे माता-पिता, भाई, कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें पकड़वायेंगे। तुम में से कितनों को मार डाला जायेगा और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे।“ (लूकस 21: 14-19)
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
It is easy to sail in still waters. It is easier to flow with the current. It is difficult to move against the current. This is true of our lives too. We expect calm and peaceful time always so that our lives are easy. We have a tendency to flow with the current. We follow popular ways and trodden paths. We like to be like the majority. Peer pressure influences us, especially the young. Jesus tells us that we are sent like lambs among wolves and so we have to be wise as serpents and innocent as doves (cf. Mt 10:16). It is evident that we are set to sail on troubled waters. He wants not only our goals but also our means to be proper. There are those who want to deceive and mislead us. In today’s Gospel he warns us – “Take care not to be deceived”. The disciples who are committed to the Gospel will be persecuted. Yet there is the soothing assurance from the Lord, “…make up your minds not to prepare your defense in advance; for I will give you words and a wisdom that none of your opponents will be able to withstand or contradict. You will be betrayed even by parents and brothers, by relatives and friends; and they will put some of you to death. You will be hated by all because of my name. But not a hair of your head will perish. By your endurance you will gain your souls.” (cf. Lk 21:14-19)
✍ -Fr. Francis Scaria