1) किसी अवसर पर सात भाई अपनी माता के साथ गिरफ्तार हो गये थे। राजा उन्हें कोड़े लगवा कर और यंत्रणा दिला कर बाध्य करना चाहता था कि वे सूअर का माँस खायें, जो संहिता में मना किया गया है।
2) उन में से एक ने दूसरों का प्रतिनिधि बन कर कहा, "तुम हम लोगों से क्या चाहते हो? अपने पूर्वजों की संहिता का उल्लंघन करने की अपेक्षा हम मर जाना अधिक पसंद करेंगे।’-
9) उसने प्राण त्यागते समय कहा, "दुष्ट! तुम हम से यह जीवन छीन सकते हो, किंतु संसार का राजा, जिसके नियमों के लिए हम मर रहे हैं, हमें पुनर्जीवित कर अनंत जीवन प्रदान करेगा"।
10) इसके बाद वे तीसरे भाई की उत्पीडित करने लगे। जब उस से जीभ निकालने को कहा, तो उसने ऐसा ही किया।
11) और यह कर कर निधड़क अपने हाथ बढाये, "ईश्वर की ओर से मुझे ये अंग मिले और उसके नियमों की रक्षा के लिए मैं इनकी परवाह नहीं करता। मेरा विश्वास है कि ईश्वर इन्हें मुझ को लौटा देगा।"
12) राजा और उसके परिजन युवक का साहस तथा यातनाओं में उसका धैर्य देख कर अचम्भे में पड़ गये।
13) जब वह मर गया, तो वे चैथे भाई को इसी प्रकार की घोर यातनाएँ देने लगे।
14) वह मरते समय चिल्ला उठा, "यह अच्छा ही है कि हम मनुष्यों के हाथ पर जाये, क्योंकि हमें ईश्वर की इस प्रतिज्ञा पर भरोसा हैं कि वह हमें पुनर्जीवित कर देगा। किंतु जीवन के लिए तुम्हारा पुनरुत्थान नहीं होगा।"
16) हमारे प्रभु ईसा मसीह स्वयं तथा ईश्वर, हमारा पिता - जिसने हमें इतना प्यार किया और हमें चिरस्थायी सान्त्वना तथा उज्जवल आशा का वरदान दिया है-
17) आप लोगों को सान्त्वना देते रहें तथा हर प्रकार के भले काम और बात में सुदृढ़़ बनाये रखें।
3:1) भाइयो! अन्त में यह, आप हमारे लिए प्रार्थना करें, जिससे प्रभु का वचन आप लोगों के यहाँ की तरह शीघ्र ही फैल जाये तथा समादृत हो,
2) और यह भी कि टेढ़े तथा दुष्ट लोग हमारे कार्य में बाधा न डालें, क्योंकि सब को विश्वास का वरदान नहीं दिया जाता है।
3) परन्तु प्रभु सत्य-प्रतिज्ञ हैं। वह आप लोगों को सुदृढ़ बनाये रखेंगे और बुराई से आपकी रक्षा करेंगे।
4) हम को, प्रभु में, आप लोगों पर पूरा भरोसा है कि आप हमारी आज्ञाओं का पालन कर रहे हैं और करते रहेंगे।
5) प्रभु आपके हृदयों को ईश्वर के प्रेम तथा मसीह के धैर्य की ओर अभिमुख करें।
27) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,
28) "गुरूवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया-यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह अपने भाई की विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।
29) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।
30) दूसरा और
31) तीसरा आदि सातों भाई विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गये।
32) अन्त में वह स्त्री भी मर गयी।
33) अब पुनरूत्थान में वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।"
34) ईसा ने उन से कहा, "इस लोक में पुरुष विवाह करते हैं और स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं;
35) परन्तु जो परलोक तथा मृतकों के पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते हैं, उन लोगों में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं।
36) वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की सन्तति बन जाते हैं।
37) मृतकों का पुनरूत्थान होता हैं मूसा ने भी झाड़ी की कथा में इसका संकेत किया है, जहाँ वह प्रभु को इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर कहते है।
38) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है, क्योंकि उसके लिये सभी जीवित है।"
मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में मनुष्य हमेशा उत्सुक रहा है। प्रभु येसु स्पष्ट रूप से हमें बताते हैं कि मृत्यु के समय हम स्वर्गदूतों की तरह परिवर्तित हो जाएंगे। कुरिन्थियों को लिखे गए पहले पत्र में, अध्याय 15 में, संत पौलुस कहते हैं, “मृतकों के पुनरुत्थान के विषय में भी यही बात है। जो बोया जाता है, वह नश्वर है। जो जी उठता है, वह अनश्वर है। जो बोया जाता है, वह दीन-हीन है। जो जी उठता है, वह महिमान्वित है। जो बोया जाता है, वह दुर्बल है। जो जी उठता है, वह शक्तिशाली है। एक प्राकृत शरीर बोया जाता है और एक आध्यात्मिक शरीर जी उठता है। प्राकृत शरीर भी होता है और आध्यात्मिक शरीर भी। धर्मग्रन्थ में लिखा है कि प्रथम मनुष्य आदम जीवन्त प्राणी बन गया और अन्तिम आदम जीवन्तदायक आत्मा।” (1कुरिन्थियों 15: 42-44) प्रभु येसु हमें समझाते हैं कि पुनरुत्थान के बाद हमारे रिश्तों में भी परिवर्तन आयेगा। हम सभी को ईश्वर की संतान के रूप में पहचाना जाएगा, फलस्वरूप आपस में भाई-बहन।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Human beings have always been curious about life after death. Jesus clearly tells us that at death we shall be transformed and be like angels. In the first letter to Corinthians, in Chapter 15, St. Paul explains what the life after death is going to be. He says, “So it is with the resurrection of the dead. What is sown is perishable, what is raised is imperishable. It is sown in dishonor, it is raised in glory. It is sown in weakness, it is raised in power. It is sown a physical body, it is raised a spiritual body. If there is a physical body, there is also a spiritual body.” (1Cor 15:42-44) Jesus tells us that after the resurrection, we shall have a new type of relationships unlike the relationship of the blood. We shall all be identified as the children of God, consequently brothers and sisters among ourselves.
✍ -Fr. Francis Scaria