चक्र - स - वर्ष का चौदहवाँ इतवार



पहला पाठ :इसायाह 66:10-14

10) “येरूसालेम के साथ आनन्द मनाओ। तुम, जो येरूसालेम को प्यार करते हो, उसके कारण उल्लास के गीत गाओ। तुम, जो उसके लिए विलाप करते थे, उसके कारण आनन्दित हो जाओ,

11) जिससे तुम उसकी संतान होने के नाते सान्त्वना का दूध पीते हुए तृप्त हो जाओ और उसकी गोद में बैठ कर उसकी महिमा पर गौरव करो“;

12) क्योंकि प्रभु यह कहता है, “मैं शान्ति को नदी की तरह और राष्ट्रों की महिमा को बाढ़ की तरह येरूसालेम की ओर बहा दूँगा। उसकी सन्तान को गोद में उठाया और घुटनों पर दुलारा जायेगा।

13) जिस तरह माँ अपने पुत्र को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम्हें सान्त्वना दूँगा। तुम्हें येरूसालेम से दिलासा मिलेगा।“

14) तुम्हारा हृदय यह देख कर आनन्दित हो उठेगा, तुम्हारा हड्डियाँ हरी-भरी घास की तरह लहलहा उठेंगी। प्रभु अपने सेवकों के लिए अपना सामर्थ्य, किंतु अपने शत्रुओं पर अपना क्रोध प्रदर्शित करेगा।

दुसरा पाठ : गलातियों 6:14-18

14) मैं केवल हमारे प्रभु ईसा मसीह के क्रूस पर गर्व करता हूँ। उन्हीं के कारण संसार मेरी दृष्टि में मर गया है और मैं संसार की दृष्टि में।

15) किसी का खतना हुआ हो या नहीं, इसका कोई महत्व नहीं। महत्व इस बात का है कि हम पूर्ण रूप से नयी सृष्टि बन जाये।

16) इस सिद्धान्त के अनुसार चलने वालों को और ईश्वर के इस्राएल को शान्ति और दया मिले!

17) अब से कोई मुझे तंग न करें। ईसा के चिन्ह मेरे शरीर पर अंकित हैं।

18) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा आप लोगों पर बनी रहे! आमेन।

सुसमाचार : लुकस 10:1-12,17-20

1) इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।

2) उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।

3) जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।

4) तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।

5) जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’

6) यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।

7) उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।

8) जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।

9) वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।

10) परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाज़ारों में जा कर कहो,

11 ’अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।’

12) मैं तुम से यह कहता हूँ - न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।

17) बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, "प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन होते हैं"।

18) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "मैंने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा।

19) मैंने तुम्हें साँपों, बिच्छुओं और बैरी की सारी शक्ति को कुचलने का सामर्थ्य दिया है। कुछ भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकेगा।

20) लेकिन, इसलिए आनन्दित न हो कि अपदूत तुम्हारे अधीन हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।"

मनन-चिंतन

जब प्रभु येसु बहत्तर शिष्यों को भेजते हैं, वे उन से कहते हैं कि वे लोगों को यह सन्देश दें कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। यही सन्देश प्रभु येसु ने स्वयं अपना सार्वजनिक जीवन शुरू करते समय भी दिया था। “पश्चात्ताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है" (मत्ती 4:17)। प्रभु ईश्वर ने हमें स्वतन्त्र बनाया है। उन्होंने हमें स्वतन्त्रता से चुनने या चयन करने का अधिकार दिया है। वे हमें जबरदस्ती स्वर्गराज्य में भी प्रवेश कराना नहीं चाहते हैं।

प्रभु ईश्वर किसी को गुलाम बनाना नहीं चाहते हैं। वे सृष्टिकर्ता होते हुए भी हमारा आदर करते हैं और हमारे साथ एक विधान के सहभागी बनते हैं। वे हमारी भलाई चाहते हैं, हम से प्रेम करते हैं, हमें मुक्ति दिलाते हैं और पावन त्रित्व की सहभागिता में सम्मिलित होने के लिए हमें निमंत्रण देते हैं।

इसके विपरीत शैतान हमेशा हमें गुलाम बनाने की ताक में रहता है। वह हमें फँसाने का षडयंत्र रचता रहता है। संत पेत्रुस ईश्वर और शैतान के बीच के अन्तर को दर्शाते हुए कहते हैं, “आप शक्तिशाली ईश्वर के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाये। आप अपनी सारी चिन्ताएँ उस पर छोड़ दें, क्योंकि वह आपकी सुधि लेता है। आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें।“ (1 पेत्रुस 5:6-9)

ईश्वर ने आदम और हेवा को स्वतन्त्र बनाया और उनके सामने भलाई और बुराई को रख दिया। उन्होंने उन्हें यह भी समझाया कि भलाई करने से वे अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे, जबकि बुराई करने से उन्हें नित्य यंत्रणा भोगना पडेगी। फिर भी हमारे आदि माता-पिता ने शैतान के झूठ से प्रभावित हो कर पाप किया।

इस्राएली लोगों के साथ प्रभु ने एक विधान स्थापित किया। प्रभु ईश्वर के पास हमारे लिए कुछ योजनाएं हैं। वे कहते हैं, “मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ“- यह प्रभु की वाणी है- “तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविष्य की योजनाए” (यिरमियाह 29:11)। वे हमारे लिए भलाई की प्रतिज्ञाएं प्रदान करते हैं। वे कहते हैं

- “ उन्होंने मेरे विधान का पालन नहीं किया, इसलिए मैंने भी उनकी सुध नहीं ली। ... वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए यह विधान निर्धारित करूँगा - मैं अपने नियम उनके मन में रख दूँगा, मैं उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।“ (इब्रानियों 8:10)

- “मैं उनके बीच निवास करूँगा, मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे” (एज़ेकिएल 37:27)

-“मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारा दाहिना हाथ पकड़ कर तुम से कहता हूँ - मत डरो, देखो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा” (इसायाह 41:13)।

- “मैं यूदा के घराने को महान् बना दूँगा और यूसुफ़ के घराने का उद्धार करूँगा। उन पर दयादृष्टि कर मैं उन्हें वापस लाऊँगा; तब वे वैसे ही हो जायेंगे, जैसे मैंने उन्हें कभी त्यागा न हो। मैं तो प्रभु, उनका ईश्वर हूँ और उनकी प्रार्थनाएँ सुनूँगा ही।“ (ज़करिया 10:6)

- “डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैं तुम्हें शक्ति प्रदान कर तुम्हारी सहायता करूँगा, मैं अपने विजयी दाहिने हाथ से तुम्हें सँभालूँगा।“ (इसायाह 41:10)

-“थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28)।

- “याद रखो- मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ” (मत्ती 28:20)।

ये सब प्रतिज्ञाएं हमें यह आश्वासन देती हैं कि हमारे ईश्वर हमें संभालते हैं, हमारी सहायता करते हैं, हमें मुक्ति दिलाते हैं, हमारा डर दूर करते हैं और हम से प्रेम करते हैं। लेकिन वे चाहते हैं कि हम प्रभु ईश्वर की शरण में जायें और उनकी छत्र-छाया में रहने की हमारी अभिलाषा व्यक्त करें। मुक्ति निकट है, परन्तु हमें उसे ग्रहण करना चाहिए। हमें ईश्वर की प्रतिज्ञाओं के योग्य बनना चाहिए। कई बार हम माँ मरियम से निवेदन करते हैं, “हे ईश्वर की पवित्र माँ, हमारे लिए प्रार्थना कर कि हम ईश्वर की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जायें।”

प्रेरित-चरित, अध्याय 14:8-10 में हम पढ़ते हैं, “लुस्त्रा में एक ऐसा व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसके पैरों में शक्ति नहीं थी। वह जन्म से ही लंगड़ा था और कभी चल-फिर नहीं सका था। वह पौलुस का प्रवचन सुन ही रहा था कि पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ायी और उस में स्वस्थ हो जाने योग्य विश्वास देख कर ऊँचे स्वर में कहा, "उठो और अपने पैरों पर खड़े हो जाओ"। वह उछल पड़ा और चलने-फिरने लगा।” संत पौलुस चंगाई प्रदान करने के सक्षम थे, परन्तु ईश्वर यह भी चाहते हैं हम ईश्वर की कृपाओं के योग्य बनें।

सुसमाचार में प्रभु येसु बहत्तर शिष्यों को भेजते हुए कहते हैं, “जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’ यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।” (मत्ती 10:5-6) ईश्वर की शांति “शांति के योग्य” लोगों पर ही उतरती है। ईश्वर की शान्ति हमारे सिर के ऊपर मंडराती है, परन्तु हमें उनकी शांति के योग्य बनना चाहिए। हमारी मुक्ति निकट है, लेकिन हमें हाथ बढ़ा कर, हृदय खोल कर उसे ग्रहण करना चाहिए। प्रभु ईश्वर हमारी मदद करें और माँ मरियम हमारे लिए विनती करें कि हम प्रभु की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जायें। आमेन।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


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