चक्र - स - वर्ष का बारहवाँ इतवार



पहला पाठ : समूएल का दुसरा ग्रन्थ 12:7-10,13

7) नातान ने दाऊद से कहा, "आप ही वह धनी व्यक्ति हैं। प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है - मैंने तुम्हारा अभिशेक इस्राएल के राजा के रूप में किया।

8) मैंने तुम को साऊल के हाथ से बचाया। मैंने तुम्हें अपने स्वामी का घर और उसकी पत्नियाँ दे दीं। मैंने इस्राएल तथा यूदा का घराना भी दिया और यदि वह पर्याप्त नहीं, तो मैं तुम को और भी देने के लिए तैयार हूँ।

9) तो, क्यों तुमने प्रभु का तिरस्कार किया और ऐसा कार्य कर डाला, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है? तुमने ऊरीया हित्ती को तलवार से मरवा डाला और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है। तुमने उसे अम्मोनियों की तलवार से मारा है।

10) इसलिए अब से तलवार तुम्हारे घर से कभी दूर नहीं होगी; क्योंकि तुमने मेरा तिरस्कार किया और ऊरीया हित्ती की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।

13) दाऊद ने नातान से कहा, "मैनें प्रभु के विरुद्ध पाप किया है।" इस पर नातान ने दाऊद से कहा, "प्रभु ने आपका यह पाप क्षमा कर दिया है। आप नहीं मरेंगे।

दूसरा पाठ : गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:16,19-21

16) फिर भी, हम जानते हैं कि मनुष्य संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि ईसा मसीह में विश्वास द्वारा पापमुक्त होता है। इसलिए हमने ईसा मसीह में विश्वास किया है, जिससे हमें संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा नहीं, बल्कि मसीह में विश्वास द्वारा पाप से मुक्ति मिले; क्योंकि संहिता के कर्मकाण्ड द्वारा किसी को पापमुक्ति नहीं मिलती।

19) क्योंकि संहिता के अनुसार मैं संहिता की दृष्टि में मर गया हूँ, जिससे मैं ईश्वर के लिए जी सकूँ। मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ।

20) मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-स्रोत है-ईश्वर के पुत्र में विश्वास, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया।

21) मैं ईश्वर के अनुग्रह का तिरस्कार नहीं कर सकता। यदि संहिता द्वारा पापमुक्ति मिल सकती है, तो मसीह व्यर्थ ही मरे।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 9:18-24

18) ईसा किसी दिन एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे और उनके शिष्य उनके साथ थे। ईसा ने उन से पूछा, "मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?"

19) उन्होंने उत्तर दिया, "योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहतें-एलियस; और कुछ लोग कहते हैं-प्राचीन नबियों में से कोई पुनर्जीवित हो गया है"।

20) ईसा ने उन से कहा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पेत्रुस ने उत्तर दिया, "ईश्वर के मसीह"।

21) उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि वे यह बात किसी को भी नहीं बतायें।

22) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा"।

23) इसके बाद ईसा ने सबों से कहा, "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले;

24) क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देता है, और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!