18) स्त्री ने एलियाह से कहा, "ईश्वर-भक्त! मुझ से आपका क्या? क्या आप मेरे पापों की याद दिलाने और मेरे पुत्र को मारने मेरे यहाँ आये?"
19) उसने उत्तर दिया, "अपना पुत्र मझ को दो"। एलियाह ने उसे उसकी गोद से ले लिया और ऊपर अपने रहने के कमरे में ले जा कर अपने पलंग पर लिटा दिया।
20) तब उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, “प्रभु! मेरे ईश्वर! जो विधवा मुझे अपने यहाँ ठहराती है, क्या तू उसके पुत्र को संसार से उठा कर उसे विपत्ति में डालना चाहता है?“
21) तब वह तीन बार बालक पर लेट गया और उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, “प्रभु! मेरे ईश्वर! ऐसा कर कि इस बालक के प्राण इस में लौट आयें“।
22) प्रभु ने एलियाह की प्रार्थना सुनी, उस बालक के प्राण उसमें लौटे और वह जीवित हो उठा।
23) एलियाह उसे उठा कर ऊपर वाले कमरे से नीचे, घर में ले गया और उसे उसकी माता को लौटाते हुए उसने कहा, "देखो, तुम्हारा पुत्र जीवित है"।
24) स्त्री ने उत्तर दिया, "अब मैं जान गयी हूँ कि आप ईश्वर-भक्त हैं और प्रभु की जो वाणी आपके मुख में है, वह सच्चाई है"।
11) भाइयो! मैं आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जो सुसमाचार सुनाया, वह मनुष्य-रचित नहीं है।
12) मैंने किसी मनुष्य से उसे न तो ग्रहण किया और न सीखा, बल्कि उसे ईसा मसीह ने मुझ पर प्रकट किया।
13) आप लोगों ने सुना होगा कि जब मैं यहूदी धर्म का अनुयायी था, तो मेरा आचरण कैसा था। मैं ईश्वर की कलीसिया पर घोर अत्याचार और उसके सर्वनाश का प्रयत्न करता था।
14) मैं अपने पूर्वजों की परम्परओं का कट्टर समर्थक था और अपने समय के बहुत-से यहूदियों की अपेक्षा अपने राष्ट्रीय धर्म के पालन में अधिक उत्साह दिखलाता था।
15) किन्तु ईश्वर ने मुझे माता के गर्भ से ही अलग कर लिया और अपने अनुग्रह से बुलाया था;
16) इसलिए उसने मुझ पर- और मेरे द्वारा- अपने पुत्र को प्रकट करने का निश्चय किया, जिससे मैं गैर-यहूदियों में उसके पुत्र के सुसमाचार का प्रचार करूँ। इसके बाद मैंने किसी से परामर्श नहीं किया।
17) और जो मुझ से पहले प्रेरित थे, उन से मिलने के लिए मैं येरूसालेम नहीं गया; बल्कि मैं तुरन्त अरब देश गया और बाद में दमिश्क लौटा।
18) मैं तीन वर्ष बाद केफ़स से मिलने येरूसालेम गया और उनके साथ पंद्रह दिन रहा।
19) प्रभु के भाई याकूब को छोड़ कर मेरी भेंट अन्य प्रेरितों में किसी से नहीं हुई।
11) इसके बाद ईसा नाईन नगर गये। उनके साथ उनके शिष्य और एक विशाल जनसमूह भी चल रहा था।
12) जब वे नगर के फाटक के निकट पहुँचे, तो लोग एक मुर्दे को बाहर ले जा रहे थे। वह अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वह विधवा थी। नगर के बहुत-से लोग उसके साथ थे।
13) माँ को देख कर प्रभु को उस पर तरस हो आया और उन्होंने उस से कहा, "मत रोओ",
14) और पास आ कर उन्होंने अरथी का स्पर्श किया। इस पर ढोने वाले रुक गये। ईसा ने कहा, "युवक! मैं तुम से कहता हूँ, उठो"।
15) मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा। ईसा ने उसको उसकी माँ को सौंप दिया।
16) सब लोग विस्मित हो गये और यह कहते हुए ईश्वर की महिमा करते रहे, "हमारे बीच महान् नबी उत्पन्न हुए हैं और ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है"।
17) ईसा के विषय में यह बात सारी यहूदिया और आसपास के समस्त प्रदेश में फैल गयी।