चक्र - स - पास्का का दूसरा रविवार



दिव्य करुणा रविवार

पहला पाठ : प्रेरित-चरित 5:12-16

12) प्रेरितों द्वारा जनता के बीच बहुत-से चिन्ह तथा चमत्कार हो रहे थे। सब विश्वासी एकहृदय हो कर सुलेमान के मण्डप में एकत्र हो जाया करते थे।

13) दूसरे लोगों में किसी को भी उन में सम्मिलित होने का साहस नहीं होता था, हालांकि जनता उनकी बड़ी प्रशंसा करती थी।

14) विश्वास करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी: पुरुषों तथा स्त्रियों का एक बड़ा समुदाय प्रभु की कलीसिया का सदस्य बन गया।

15) लोग रोगियों को सड़कों पर ले जा कर खटोलों तथा चारपाइयों पर लिटा देते थे, ताकि जब पेत्रुस उधर गुजरे, तो उसकी छाया उन में से किसी पर पड़ जाये।

16) येरुसालेम के आसपास के नगरों से भी लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो जाया करते थे। वे अपने साथ रोगियों तथा अशुद्ध आत्माओं से पीडि़त व्यक्तियों को ले आते थे और वे सब चंगे कर दिये जाते थे।

दूसरा पाठ : प्रकाशना ग्रन्थ 1:9-13,17-19

9) मैं योहन हूँ, ईसा में आप लोगों का भाई और संकट, राज्य तथा धैर्य में आपका सभागी। ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने तथा ईसा के विषय में साक्ष्य देने के कारण मैं पातमोस नामक टापू में पड़ा रहता था।

10) मैं प्रभु के दिन आत्मा से आविष्ट हो गया और मैं ने अपने पीछे तुरही-जैसी वाणी को उच्च स्वर से यह कहते सुना,

11) ’’तुम जो देख रहे हो, उसे पुस्तक में लिखो और उसे सात कलीसियाओं को भेज दो- एफेसुस, स्मुरना, पेरगामोन, थुआतिरा, सारदैस, फिलदेलफि़या और लौदीकिया को’’।

12) मुझ से कौन बोल रहा है, उसे देखने के लिए मैं मुड़ा और मूड़ कर मैंने सोने के सात दीपाधार देखे,

13) और उनके बीच मानव पुत्र-जैसे एक व्यक्ति को। वह पैरों तक लम्बा वस्त्र पहने था और उसके वक्ष स्थल पर स्वर्ण मेखला बाँधी हुई थी।

17) मैं उसे देखते ही मृतक-जैसा उसके चरणों पर गिर पड़ा। उसने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रख कर कहा, ’’मत डरो। प्रथम और अन्तिम मैं हूँ।

18) जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं। अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास हैं।

19) इस लिए तुमने जो कुछ देखा- जो अभी है और जो बाद में हाने वाला है - वह सब लिखो।

सुसमाचार :सन्त योहन का सुसमाचार 20:19-31

19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, ’’तुम्हें शांति मिले!’’

20) और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, ’’तुम्हें शांति मिले!

21) जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।’’

22) इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, ’’पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!

23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।

24) ईसा के आने के समय बारहों में से एक थोमस जो यमल कहलाता था, उनके साथ नहीं था।

25) दूसरे शिष्यों ने उस से कहा, ’’हमने प्रभु को देखा है’’। उसने उत्तर दिया, ’’जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।

26) आठ दिन बाद उनके शिष्य फिर घर के भीतर थे और थोमस उनके साथ था। द्वार बन्द होने पर भी ईसा उनके बीच आ कर खडे हो गये और बोले, ’’तुम्हें शांति मिले!’’

27) तब उन्होने थोमस से कहा, ’’अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो- ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ाकर मेरी बगल में डालो और अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो।’’

28 थोमस ने उत्तर दिया, ’’मेरे प्रभु! मेरे ईश्वर!’’

29) ईसा ने उस से कहा, ’’क्या तुम इसलिये विश्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जो बिना देखे ही विश्वास करते हैं।’’

30) ईसा ने अपने शिष्यों के सामने और बहुत से चमत्कार दिखाये जिनका विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया है।

31) इनका ही विवरण दिया गया है जिससे तुम विश्वास करो कि ईसा ही मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो।

मनन-चिंतन

प्रभु येसु के पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के आगमन के बाद प्रभु के बारह शिष्य सुसमाचार सुनाने के लिए निकलते हैं। मैं समझता हूँ कि कलीसिया की ओर से आधिकारिक रीति से सुसमाचार सुनाने के लिए कुछ शर्तें हैं।

(1) येसु का अनुभव करना :- बारह शिष्यों के लिए यह जरूरी था कि उन्हें येसु की शिक्षा मिली हो। यूदस इसकारियोती की जगह पर एक व्यक्ति को नियुक्त करने हेतु जो शर्त रखी गया थी, वह इसी से संबंधित था। “इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु ईसा हमारे बीच रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बनें।” (प्रेरित-चरित 1:21-22) इसी कारण सभी शिष्य अपनी विश्वसनीयता का प्रमाण देते समय येसु का अनुभव करने का दावा करते हैं। (देखिए 1 योहन 1:1-3; 1 पेत्रुस 1:16-18)। आज का सुसमाचार भी इसी से संबंधित है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि जब पुनर्जीवित प्रभु येसु ने प्रेरितों को दर्शन दिया तब संत थॉमस उनके साथ नहीं थे। जब उनको बताया गया कि शिष्यों ने पुनर्जीवित प्रभु का दर्शन किया तब उन्होंने उनसे कहा, "जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा” (योहन 20:25)। संत थॉमस के लिए पुनर्जीवित प्रभु को देखना और उनका स्पर्श करना उतना ही ज़रूरी था जितना संत पेत्रुस और संत योहन के लिए। यह एक बहुत ही दिलचस्प बात है कि पुनर्जीवित येसु ने जब लोगों को दर्शन दिया, तब उनके शरीर में उनके घावों के निशान थे। पुनरुत्थान एक विजय है, सब से बडी विजय है। फिर भी उस विजय में घावों के निशान चमकते हैं। पुनरुत्थान के समय हमें दुख-भोग तथा क्रूस मरण को नहीं भूलना चाहिए। इसी प्रकार पुण्य शुक्रवार तभी हम सार्थक रूप से मना सकेंगे जब हमारे अन्तरतम में पुनरुत्थान की आशा प्रकट हो।

(2) येसु की शिक्षा सुनना, समझना और स्वीकार करना :- शिष्यों के लिए प्रभु येसु की शिक्षा सुनना, समझना और ग्रहण करना भी ज़रूरी था। हम देखते हैं कि प्रभु गाँव-गाँव, शहर-शहर घूम कर स्वर्गराज्य की शिक्षा देते रहते थे। जहाँ भी वे जाते हैं, वे प्रवचन देते रहते हैं। इसके अलावा वे शिष्यों को अलग से समझाते, उनके सवालों के जवाब देते तथा उनके सन्देहों को दूर भी करते थे। इस प्रकार स्वर्गराज्य के रहस्यों को समझना शिष्यों के लिए ज़रूरी था।

(3) येसु के द्वारा अधिकार के साथ नियुक्त किये जाना :- उपरोक्त दोनों के शर्तों के अलावा, येसु स्वयं उन्हें अधिकार देकर भेजते थे। स्वर्गारोहण के पहले प्रभु येसु अपने शिष्यों को अधिकार के साथ भेजते हुए कहते हैं। “मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, तुम-लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो- मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।“ (मत्ती 28:18-20) प्रभु उन्हें आदेश के साथ अधिकार भी देते हैं।

(4) पवित्र आत्मा को ग्रहण करना :- ऊपर दिये गये तीनों शर्तों के पूरे होने के बावजूद भी शिष्य सुसमाचार के प्रचार के कार्य के लिए सक्षम नहीं माने जाते हैं। प्रभु बारहों को शिक्षा और अधिकार देने के बाद उनसे कहते हैं कि वे सुसमाचार सुनाने हेतु येरूसालेम तब तक न छोड़ें जब तक उन्हें प्रतिज्ञात पवित्र आत्मा, ऊपर की शक्ति प्राप्त न हो। (देखिए लूकस 24:49; प्रेरित-चरित 1:4)। इसलिए वे पेन्तेकोस्त के दिन तक अटारी में एक साथ प्रार्थना कर पवित्र आत्मा की प्रतीक्षा करते हैं। पवित्र आत्मा के आगमन के बाद ही वे सुसमाचार सुनाने निकलते हैं।

आज हम दिव्य दया का त्योहार मना रहे हैं। जिसे पाने का हमारा हक है या अधिकार है, उसे पाना ’न्याय’ कहा जाता है, परन्तु जिसे पाने का हमारा हक या अधिकार नहीं है, जिसे पाने के लिए हम योग्य नहीं है, उसे पाना ’दया’ कहा जाता है। ईश्वर के सामने हम कुछ भी पाने के लिए योग्य नहीं है, फिर भी प्रभु ईश्वर दया से द्रवित होकर हमें बहुत कुछ प्रदान करते हैं। सन्त फौस्तीना कोवालस्का के द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक प्रेरणा से पापा संत योहन पौलुस द्वितीय ने पास्का इतवार के बाद वाले इतवार को “दिव्य दया इतवार” (Divine Mercy Sunday) के रूप में मनाने का आह्वान किया। इस दिन विश्वासी गण प्रभु येसु के दुख-भोग तथा क्रूस मरण को स्मरण कर ईश्वर की दया के लिए प्रार्थना करते हैं। आईए, हम भी इस अवसर अपने लिए तथा सारी मानव-जाति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


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