14) सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरुसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।
15) प्रभु ने तेरा दण्डादेश रद्द किया और तेरे शत्रुओं को भगा दिया है। प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है।
16) विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। उस दिन येरुसालेम से कहा जायेगा-’’सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।
17) वह विजयी योद्धा है। वह तेरे कारण आनन्द मनायेगा, वह अपने प्रेम से तुझे नवजीवन प्रदान करेगा,
18) वह उत्सव के दिन की तरह तेरे कारण आनन्दविभोर हो जायेगा।’’।
4) आप लोग प्रभु में हर समय प्रसन्न रहें। मैं फिर कहता हूँ, प्रसन्न रहें।
5) सब लोग आपकी सौम्यता जान जायें। प्रभु निकट हैं।
6) किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरू़रत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें
7) और ईश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे हैं, आपके हृदयों और विचारों को ईसा मसीह में सुरक्षित रखेगी।
10) जनता उस से पूछती थी, ’’तो हमें क्या करना चाहिए?’’
11) वह उन्हें उत्तर देता था, ’’जिसके पास दो कुरते हों, वह एक उसे दे दे, जिसके पास नहीं है और जिसके पास भोजन है, वह भी ऐसा ही करे’’।
12) नाकेदार भी बपतिस्मा ग्रहण करते थे और उस से यह पूछते थे, ’’गुरुवर! हमें क्या करना चाहिए?’’
13) वह उन से कहता था, ’’जितना तुम्हारे लिये नियत है, उस से अधिक मत माँगों’’।
14) सैनिक भी उस से पूछते थे, ’’और हमें क्या करना चाहिए?’’ वह उन से कहता था, ’’किसी पर अत्याचार मत करो, किसी पर झूठा दोष मत लगाओ और अपने वेतन से सन्तुष्ट रहो’’।
15) जनता में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी और योहन के विषय में सब मन-ही-मन सोच रहे थे कि कहीं यही तो मसीह नहीं है।
16) इसलिए योहन ने सबों से कहा, ’’मैं तो तुम लोगों को जल से बपतिस्मा देता हूँ; परन्तु एक आने वाले हैं, जो मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं उनके जूते का फ़ीता खोलने योग्य नहीं हूँ। वह तुम लोगों को पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देंगे।
17) वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ़ करें और अपना गेहूँ अपने बखार में जमा करें। वह भूसी को न बुझने वाली आग में जला देंगें।’’
18) इस प्रकार के बहुत-से अन्य उपदेशों द्वारा योहन जनता को सुसमाचार सुनाता था।
आज के पवित्र वचनों में आनन्द मनाने के लिए हमें आह्वान किया गया है क्योंकि प्रभु येसु ही हमारा उद्धारकर्ता है। प्रभु येसु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकारने वाले प्रसन्न रहेंगे और सौम्यता दर्शायेंगे। आनन्द और सौम्यता येसु में मुक्ति प्राप्त किये लोगों का स्वभाव होता है और इस कारण संत पौलुस कहते हैं, “आप लोग प्रभु में हर समय प्रसन्न रहें। ... सब लोग आपकी सौम्यता जान जायें।“ (फिलिप्पियों 4,4-5)
सुसमाचार में मुक्तिदाता येसु के लिए लोगों के ह्रदय को तैयार करने एवं लोगों को प्श्चताप के बपतिस्मा द्वारा मन परिवर्तन कराने यर्दन नदी के किनारे पहुँचे योहन से नाकेदार, सैनिक और अन्य लोगों ने पूछा – “हमें क्या करना चाहिए?” (लूकस 3,12)। नाकेदारों एवं सैनिकों को यहूदी लोग पापी और देशद्रोही मानते थे क्योंकि वे लोग यहूदियों पर अधिपत्य जमाये विदेशी शासकों के लिए नौकरी करते थे। फिर भी योहन ने उनसे नौकरी छोडने को नहीं बल्कि ईमानदारी से नौकरी करने को कहा। योहन नाकेदारों को कहता था, “जितने तुम्हारे लिए नियत है, उससे अधिक मत मॉगो।“ (लूकस 3,13) योहन सैनिकों से कहता था, “किसी पर अत्याचार मत करो, किसी पर छूटा दोष मत लगाओ और अपने वेतन से संतुष्ट रहो” (लूकस 3,14)। येसु की मुक्ति पाने के लिए मन परिवर्तन की जरूरत है जो लालच और स्वार्थ से दूर रहना है; दूसरों की भलाई चाहना है और स्वयं संतुष्ट रहना है। येसु को अपने मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार करने वालों के जीवन ही आनन्द, प्रेम और सेवा कार्य से भर जाता है।
मुक्ति किसी के लिए भी अप्राप्य नहीं है। मुक्ति अनर्जित, शर्तरहित और मुफ्त है। सबसे कठोर व्यक्ति भी मुक्ति पा सकता है। ख्रीस्तीय इतिहास ऐसे हजारों लोगों का है जो विपरीत दिशा में होकर पाप के वश में चलते रहे लेकिन येसु ने उनका उद्धार किया और वे येसु के वचन के साक्षी बन गये। 19वॉ शताब्दी में जीवित एवं अमेरिकी सैन्य में उॅचे पद तक पहॅचे मेजर डानिएल वेबस्टर वाइटली एक बडे सुसमाचार प्रचारक थे। उन्होंने प्रभु येसु मसीह को अपने मुक्तिदाता के रूप में कैसे स्वीकार किया जिसका वर्णन वेबस्टर स्वयं इस प्रकार करता है -
“मेरी मॉ एक ख्रीस्तीय भक्त स्त्री थी। मैं इंग्लेंड में युद्ध के लिए जा रहा था और मेरी माताजी ने मुझे रोती हुई विदा किया और उसकी बहुत सी प्रार्थनाएं मेरे साथ थी। उन्होंने मेरी थैली में बाइबल का नया विधान रखा थ जिसको मैं ने कभी नहीं पढा। युद्ध बहुत भयानक था और मैं ने उस युद्ध में बहुत दुख भरी घटनाओं को देखा और उसी दिन मैं भर घायल होकर गिर पडा। उस रात को मेरे एक हाथ को शल्यक्रिया से काट दिया गया। मेरा घाव जैसे ही ठीक हो रहा था, मुझे कुछ पढने की इच्छा हुई और पहली बार मैं थैली से नए विधान को निकालकर पढने लगा। मत्ती, मार्कुस... प्रकाशन ग्रन्थ। सब कुछ मुझे अच्छा लगा और मैं उनको पुनः पढा और मैं समझ रहा था कि येसु ही सच्चा मुक्तिदाता है। किंतु मुझको क्रिश्चियन बनने का कोई इरादा नहीं था।
“मैं अपने पापों पर पश्चताने या येसु को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने की मनोदशा में नहीं था और मैं सोने गया और मध्य रात्रि में मुझे एक नर्स ने गहरी नींद से जगाकर कहा, “वार्ड में आपका एक आदमी ;भौजी पडा है, वह मर रहा है। वह बीते एक घण्डे से उस पर प्रार्थना करने के लिए मुझे तंग कर रहा है। उसकी पीडा को मैं देख नहीं सकता। लेकिन मैं पापी हूँ और मैं प्रार्थना नहीं कर सकता। मैं आपको बुलाने आया हूँ, आप आकर उस पर प्रार्थना करें।“
“मईं ने कहा, “मैं प्रार्थना नहीं कर सकता। मैं ने कभी प्रार्थना नहीं किया हूँ और मैं भी पापी मनुष्य हूँ। मैं प्रार्थना नहीं कर सकता।” नर्स ने कहा, “आपको देखकर मैं ने सोचा कि आप प्रार्थना करने वाला व्यक्ति है। इस रात को मैं कहॉ जाउॅ ! मैं अकेले उसके पास नहीं जा सकता। आप आकर उसे जरा मिल लीजिए।” नर्स के कहने पर मैं उस लडके के पास गया। 17-18 वर्ष उम्र का वह भौजी मरने को था। वह बहुत दुखी था और वह मेरी ओर देखकर कहा, “मैंरे लिए प्रार्थना कीजिए, मैं मरने को हूँ। मेरे माता पिता और मैं गिरजा जाते थे और मैं एक अच्छा लडका था किंतु फौज में आने के बाद मैं बुरा बन गया - शराब, बुरी संगति, जुआ और हर प्रकार का पाप के वश में मैं आ गया। मैं मरने को हूँ। ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिए; प्रभु येसु से प्रार्थना कीजिए कि वे मेरा उद्धार करें।”
“जैसे ही मैं खडा था, पवित्र आत्मा की आवाज मुझे साफ शब्दों में कहते हुए सुनाई दी - तुम मुक्ति के रास्ते को पहचान चुके हो; तुरन्त घुटने टेको, येसु को अपने हृदय में स्वीकार करो और इस लडके केलिए प्रार्थना करो। मैं ने घुटने टेका, लडके के हाथ को अपने हाथों में थाम लिया और अपने पापों के लिए माफी मॉगा। मैं ने विश्वास किया कि प्रभु ने मुझे क्षमा की और मैं ने उस लडके के लिए प्रार्थना की। वह शॉत हो गया। जैसे ही मैं उठा वह इस संसार से अल्विदा कह चुके थे। प्रभु ने मरते हुए एस लडको को मुझे येसु के पास आने और मुक्ति दिलाने के लिए इस्तेमाल किया।”
इस आगमन काल में, हम प्रभु येसु को अपने जीवन में स्वीकार करें। येसु ही मेरा उद्धारकर्ता है। इस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए अपने पापों पर पश्चताप करना अनिवार्य है। येसु को अपने जीवन में स्वीकार करने वाले आनन्दित होते और सौम्यता का बर्ताव करते है।
✍फादर डोमिनिक थॉमस – जबलपूर धर्मप्रान्त