चक्र - स - आगमन का पहला रविवार



पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 33:14-16

14) “प्रभु यह कहता हैः देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल तथा यूदा के घराने के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा।

15) उन दिनों और उस समय, मैं दाऊद के लिए एक धर्मी वंशज उत्पन्न करूँगा, जो देश पर न्यायपूर्वक शासन करेगा।

16) उन दिनों यूदा का उद्धार होगा और येरुसालेम सुरक्षित रहेगा। यरूसालेम का यह नाम रखा जायेगा- ’प्रभु ही हमारा न्याय है’;

दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 3:12-4:2

12) प्रभु ऐसा करें कि जिस तरह हम आप लोगों को प्यार करते हैं, उसी तरह आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सबों के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे।

13) इस प्रकार वह उस दिन तक अपने हृदयों को हमारे पिता ईश्वर के सामने पवित्र और निर्दोष बनायें रखें, जब हमारे प्रभु ईसा अपने सब सन्तों के साथ आयेंगे।

1) भाइयो! आप लोग हम से यह शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं कि किस प्रकार चलना और ईश्वर को प्रसन्न करना चाहिए और आप इसके अनुसार चलते भी हैं। अन्त में, हम प्रभु ईसा के नाम पर आप से आग्रह के साथ अनुनय करते हैं कि आप इस विषय में और आगे बढ़ते जायें।

2) आप लोग जानते हैं कि मैंने प्रभु ईसा की ओर से आप को कौन-कौन आदेश दिये।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 21:25-28.34-36

25) ‘‘सूर्य, चन्द्रमा और तारों में चिन्ह प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे।

26) लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित हो कर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी।

27) तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे।

28) ‘‘जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है।’’

34) ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे;

35) क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा।

36) इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।’’

मनन-चिंतन

आज, आगमन काल के पहले रविवार, से हम नए पूजन पद्धति वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आगमन काल इन्तजार का समय है। यह इन्तजार न केवल येसु के जन्म पर्व के लिए बल्कि येसु के पुनरागमन के लिए भी है।

सन् 2008 में ओडिशा के कंधमाल जिले के ख्रीस्तीय विश्वासियों पर बहुत बडा अत्याचार हुआ जिस में सैकडों ख्रीस्तीय विश्वासी मारे गये, उनके घरों को चुन चुन कर जलाया गया। अत्याचारियों ने उम्मीद की होगी कि यहॉ के ख्रीस्तीय लोग विचलित होकर ख्रीस्तीय विश्वास को छोड देंगे। 2009 में मैं ने इस क्षेत्र का दौरा किया और मुझे उनकी दृढता एवं धैर्य देखकर आश्चर्य हुआ। मैं जले हुए घरों और शरणार्थी शिविरों में रहने वाले हजारों विश्वासियों से मिला जिन्होने येसु के पवित्र नाम से हमारा अभिवादन और स्वागत किया। उस भयावह आतंकित परिस्थिति में भी अपने गले में रोजरी माला एवं क्रूस पहने हुए वे अपने ख्रीस्तीय विश्वास का साक्ष्य दे रहे थे। मुझे लगा कि यह उत्पीडित कलीसिया आज के सुसमाचार में सुने पवित्र वचन की जीती जागती अनोखी मिसाल है – “जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठकर खडे हो जाओ और सिर उपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है” (लूकस 21:28)

जैसा कि पहले पाठ में बताया गया है – नबी यिरमियाह के समयकाल में इस्राएली जनता गुलामी का जीवन बिता रही थी। विवश, निराश और व्यथित हो चुकी इस जनता को ढारस बंधाते हुए नबी यिरमियाह उनको मुक्ति देने वाले मसीह के आगमन का संदेश देते हैं और उन्हें मुक्ति का भरोसा देते हैं। पहली शताब्दी की आदिम कलीसिया भी संघर्ष भरा जीवन बिता रही थी। नाना प्रकार की प्राकृतिक आपदायो, अकाल, बीमारियॉं, मृत्यु आदि के अलावा, उन लोगों के ख्रीस्तीय विश्वास के कारण उनके विरोधियों एवं शासकों द्वारा उन पर निर्मम अत्याचार व उनकी हत्या की जाती थी। इसी संदर्भ में संत लूकस ने येसु के शिक्षा-वचनों को याद दिलाते हुए कहा – “जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे हाने योग्य बन जाओ।“ (लूकस 21:36) इन वचनों से संत लूकस येसु के पुनरागमन का संकेत देते है।

विश्वासी लोग अपने जीवन को येसु की प्रतीक्षा में व्यतीत करें इस बात का उल्लेख येसु मसीह आज के सुसमाचार में एवं संत पौलुस थेसेलेनीकिया की कलीसिया को लिखे पत्र में हमें बताते है -

1. जागते रहो - शैतान हर वक्त हमारी मुक्ति का विनाश करने हेतु प्रयासरत है। भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्तायें हमें कुण्ठित कर देती और येसु की प्रतीक्षा से हमें विच्छेदित करती है। अतः विश्वासियों को चौकसी बरतना अति आवश्यक है।

2. हर समय प्रार्थना करते रहो - तभी हम जीवन में आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे होने के योग्य बन जायेंगे।

3. येसु एवं मानवों के प्रति हमारा प्रेम बढता जायें। मनुष्य प्रगतिशील है किंतु ईश्वर एवं मानवों के प्रति अपना प्रेम दिनों दिन बढते जाना ही सबसे ज्यादा जरूरी है और आगमन काल का उद्येश्य है।

4. हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभायें, आलसीपन और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को छोड दें, परिवार की देखरेख करें, अपनी कमाई का रोटी खायें (1थेसलनीकियों (3:12)।

5. येसु मसीह के अधिकार से दी जाती कलीसिया की शिक्षा को ध्यान में रखें और उसके अनुसरण करें।

“ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें...” (1थेसलनीकियों 4:3)।

यह आगमन काल हमारे लिए पवित्र बनने एवं हमारे ख्रीस्तीय जीवन में प्रगति लाने का सुअवसर बन जाये।

फादर डोमिनिक थॉमस – जबलपूर धर्मप्रान्त


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