7) मैंने प्रार्थना की और मुझे विवेक मिला। मैंने विनती की और मुझ पर प्रज्ञा का आत्मा उतरा।
8) मैंने उसे राजदण्ड और सिंहासन से ज्यादा पसन्द किया और उसकी तुलना में धन-दौलत को कुछ नहीं समझा।
9) मैंने उसकी तुलना अमूल्य रत्न से भी नहीं करना चाहा; क्योंकि उसके सामने पृथ्वी का समस्त सोना मुट्ठी भर बालू के सदृश है और उसके सामने चाँदी कीच ही समझी जायेगी।
10) मैंने उसे स्वास्थ्य और सौन्दर्य से अधिक प्यार किया और उसे अपनी ज्योति बनाने का निश्चय किया; क्योंकि उसकी दीप्ति कभी नहीं बुझती।
11) मुझे उसके साथ-साथ सब उत्तम वस्तुएँ मिल गयी और उसके हाथों से अपार धन-सम्पत्ति।
12) क्योंकि ईश्वर का वचन जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है। वह हमारी आत्मा के अन्तरतम तक पहुँचता और हमारे मन के भावों तथा विचारों को प्रकट कर देता है। ईश्वर से कुछ भी छिपा नहीं है।
13) उसी आँखों के सामने सब कुछ निरावरण और खुला है। हमें उसे लेखा देना पड़ेगा।
17) ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, ’’भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
18) ईसा ने उस से कहा, ’’मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।
19) तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।’’
20) उसने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ’’।
21) ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, ’’तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“
22) यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
23) ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, ’’धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!
24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, ’’बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!
25) सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?’’
26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, ’’तो फिर कौन बच सकता है?’’
27) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, ’’मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है’’।
28) तब पेत्रुस ने यह कहा, ’’देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।’’
29) ईसा ने कहा, ’’मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो
30) और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन।
ईश्वर ने हम मनुष्यों को अपने प्रतिरूप बनाया है और हमे स्वतंत्रता प्रदान की है जिससे हम बिना किसी बंधन, बिना किसी दबाव के, खुल के जी सके और अपने मन, विवेक और ज्ञान के अनुसार जीवन जी सकें और कार्य कर सकें। विधि-विवरण ग्रंथ 30:19 कहता है, ‘‘मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ - मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें।’’ हमारे समक्ष दोनो हैं जीवन और मृत्यु और हम किसे चुनते हैं यह हम प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है। आज का सुसमाचार हमें इसी चुनाव के विषय में बताता है।
आज के सुसमाचार में हम एक ऐसे व्यक्ति के विषय में जानते हैं जो कि एक गुणवत्ता भरा या उत्कृष्ट जीवन व्यतीत कर रहा था, परंतु उसे अनंत जीवन की आस थी। संत मत्ती के सुसमाचार में इस व्यक्ति को नवयुवक की सन्ज्ञा दी गई हैं जिसके पास आगे का पूरा जीवन हैं। उपदेशक ग्रंथ 12:1 कहता है, ‘‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृष्टिकर्ता को याद रखों’’। अक्सर हम देखते हैं कि मनुष्य ईश्वर की शरण उम्र ढलने पर या कुछ संकट आने पर जाता है परन्तु इस युवक के पास पूरी जिंदगी रहने के बावजूद भी वह प्रभु की शरण में जाने की सोचता है। संत लूकस का सुसमाचार इस व्यक्ति को कुलीन अर्थात् सुशील या उच्च वर्ग के व्यक्ति की संज्ञा देता है, इसका मतलब यह कि वह व्यक्ति अपने आचरण या अपने काबिलियत के कारण किसी उच्च पद में पद्स्थ था। यह व्यक्ति एक धनी व्यक्ति था। अक्सर लोग धन होने का गलत अर्थ निकालते हैं। धनी होना पाप या गलत नहीं। वचन हमें यह नहीं कहता कि धन सभी बुराईयो की जड़ है परंतु कहता है, ‘‘धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है।’’ (1 तिमथी 6:10)। यह व्यक्ति एक नैतिक जीवन जी रहा था, वह आज्ञाओं का पालन करता आ रहा था, जैसे हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, किसी को न ठगना, माता-पिता का आदर करना। यह बताता है कि उस मनुष्य का जीवन एक अच्छा जीवन था और उसके पास वह सब कुछ था जो कि एक साधारण मनुष्य इस जीवन में चाहता है, परंतु यह सब होने के बावजूद भी यह व्यक्ति कुछ कमी महसूस करता है। इसलिए वह येसु के पास अनंत जीवन, अनंत आनंद की तलाश में आता है। अक्सर हम देखते कि लोग अपना सारा समय, उम्र धन कमाने में लगा देते है और जब वे उसे प्राप्त कर लेते हैं तब भी उन्हें उनका जीवन खाली ही लगता है। यही उस धनी व्यक्ति के साथ भी हुआ। इसलिए व येसु के पास आता है।
संत योहन का सुसमाचार 3:16, ‘‘ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करें।’’ यह वचन बताता है कि ईश्वर के पुत्र में विश्वास करनें से हम अनंत जीवन प्राप्त कर सकते हैं केवल अच्छें कार्य या अच्छे बने रहकर ही नही। ‘‘ईश्वर ने अपने पुत्र द्वारा हमें अनन्त जीवन प्रदान किया है। जिसे पुत्र प्राप्त है, उसे वह जीवन प्राप्त है और जिसे पुत्र प्राप्त नहीं है, उसे जीवन प्राप्त नहीं (1 योहन 5:11)। ‘‘मैं तुम्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँ।’’(योहन 10:58)। ‘‘जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है’’(योहन 3:38)। ‘‘वे तुझे, एक ही सच्चे ईश्वर को और ईसा मसीह को, जिसे तूने भेजा है जान लें- यही अनन्त जीवन है’’(योहन 17:3)। ये सभी वचन बताते हैं कि प्रभु येसु ही अनंत जीवन है, जो अनंत जीवन प्रदान करतें है, जो उन पर विश्वास करता हैं, अनुसरण करता है उसे अनंत जीवन प्राप्त है।
उस धनी व्यक्ति को मालूम था कि येसु के द्वारा उसे अनंत जीवन प्राप्त हो सकता है, इसलिए वह दौड़कर येसु के पास आता है। प्रभु उस के मन के विचारो और कमी को समझ जाते है। इसलिए वह उन्हें सीधे रूप से नही कहते जैसे कि वह अक्सर कहते थे, ‘‘मेरे पीछे चले आओ’’ या ‘‘मेरा अनुसरण करों’’ परंतु प्रभु ने उस मनुष्य के मन को समझकर उससे कहा, ‘‘जाओ, अपना सब कुछ बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।’’
प्रभु उसके सामने अनंत जीवन पाने के लिए एक चुनाव रखते हैः धन या ईसा का अनुसरण। वह व्यक्ति ईसा का अनुसरण करना भी चाहता परंतु धन को छोड़ना भी नहीं चाहता था। परंतु वचन कहता है,‘‘कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन- दोनों की सेवा नहीं कर सकते।’’ (मत्ती 6:24)। उस व्यक्ति ने येसु को छोड़ धन का चुनाव किया और उदासीन होकर अनंत जीवन पाने का अवसर को खो दिया। क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है (1 तिमथी 6:10)। ईश्वर धन-सम्पत्ति, आलीशान घर, आधुनिक उपकरण होने के विरुद्ध नहीं अपितु उनके प्रति अत्याधिक लगाव और ईश्वर को छोड़ उन पर निर्भरता के विरुद्ध है। ईश्वर माता-पिता, भाई-बहनों के विरुद्ध में नहीं हैं परन्तु वे ईश्वर से परित्याग या विमुखता के विरुद्ध में है (मारकुस 10:29-30)।
येसु उसे ज्ञात कराना चाहते थे कि उसका मन बँटा हुआ है। वह अपने धन पर आश्रित है। येसु चाहते थे कि वह अपना जीवन ईश्वर को सम्पूर्ण रूप से अर्पित करें और ईश्वर पर आश्रित जीवन बितायें। परंतु उसने धन पर निर्भर होना स्वीकारा। अक्सर हम मनुष्य अपनी धन-सम्पत्ति, कला, ज्ञान, कौशल, बुद्धि, समझदारी पर ज्यादा निर्भर रहते है, जिस कारण हम ईश्वर को समय न देकर ईश्वर से दूर चले जाते है।
आज के सुसमाचार के विपरीत एक और उदाहरण है जो हमें ईश्वर की कृपा का वर्णन बताता है, और वह है विश्वास के पिता इब्राहीम का उदाहरण। हम जानते हैं कि इब्राहीम की कोई संतान नहीं थी। जब इब्राहीम की कोई संतान नहीं थी तो वह अधिकतर समय ईश्वर के साथ व्यतीत करता था- ईश्वर के साथ चलना, बाते करना आदि। परंतु जब उसे ईश्वर द्वारा एक पुत्र प्राप्त होता हैं तो वह उस पुत्र के प्रेम में मुग्ध हो जाता है और धीरे-धीरे वह ईश्वर को छोड़ अपने पुत्र के साथ ज्यादा समय बिताने लगता है। ईश्वर उसके ईश्वरीय प्रेम और विश्वास की परीक्षा लेने हेतु उसे अपने पुत्र की बलि चढ़ाने को कहते हैं। हम जान सकते हैं कि उस पिता की क्या मनोव्यथा रही होगी, जिसे बरसों बाद एक पुत्र प्राप्त हुआ परंतु उसे उसको त्यागना होगा। इस दुविधा भरे क्षण में वह अपने पुत्र को छोड़ ईश्वर की आज्ञा को चुनता है और वह इस चुनाव में ईश्वर को तो पाता ही है परंतु अपने पुत्र को भी पाता हैं।
अक्सर मनुष्य सोचता है कि अगर मैं ईश्वर का अनुसरण करुँगा या उसकी आज्ञाओं पर चलूँगा तो बहुत कुछ खोना पडे़गा परंतु वह यह नही समझता कि ईश्वर को पाने से वह सब कुछ को पा लेता है जैसे कि इब्राहीम ने पाया परंतु उस धनी व्यक्ति ने सब कुछ पाकर भी खो दिया। ‘‘जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।’’ (मत्ती 16:25) अर्थात् जो इस संसार में ईश्वर के लिए सबकुछ खो देता है वह असलियत में खोता नहीं परंतु उससे कही गुणा ज्यादा और कीमती चीज़ पाता है। ईसा ने कहा, ’’ मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ ही साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन’’ (मारकुस 10:29-30)।
✍फ़ादर डॆनिस तिग्गा