4) घबराये हुए लोगों से कहो- “ढारस रखों डरो मत! देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है।“
5) तब अन्धों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हरिण की तरह छलाँग भरेगा। और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी।
6) मरुस्थल में जल की धाराएँ फूट निकलेंगी, रेतीले मैदानों में नदियाँ बह जायेंगी,
7) सूखी धरती झील बन जायेगी और प्यासी धरती में झरने निकलेंगे। जहाँ पहले सियारों की माँद थी, वहाँ सरकण्डे और बेंत उपजेंगे।
1) भाइयो! आप लोग हमारे महिमान्वित प्रभु ईसा मसीह में विश्वास करते हैं, इसलिए भेदभाव और चापलूसी से दूर रहें।
2) मान लें कि आप लोगों की सभा में सोने की अंगूठी और कीमती वस्त्र पहने कोई व्यक्ति प्रवेश करता है और साथ ही फटे-पुराने कपड़े पहने कोई कंगाल।
3) यदि आप कीमती वस्त्र पहने व्यक्ति का विशेष ध्यान रख कर उस से कहें- "आप यहाँ इस आसन पर विराजिए" और कंगाल से कहें- "तुम वहाँ खड़ रहो" या "मेरे पांवदान के पास बैठ जाओ"।
4) तो क्या आपने अपने मन में भेदभाव नहीं आने दिया और गलत विचार के अनुसार निर्णय नहीं दिया।
5) प्यारे भाइयो! सुन लें। क्या ईश्वर ने उन लोगों को नहीं चुना है, जो संसार की दृष्टि में दरिद्र हैं, जिससे वे विश्वास के धनी हो जायें और उस राज्य के उत्तराधिकारी बनें, जिसे असने अपने भक्तों को प्रदान करने की प्रतिज्ञा की है?
31) ईसा तीरूस प्रान्त से चले गये। वे सिदोन हो कर और देकापोलिस प्रान्त पार कर गलीलिया के समुद्र के पास पहुँचे।
32) लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उन्होंने यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए।
33) ईसा ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया।
34) फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्होंने आह भरी और उससे कहा, "एफ़ेता", अर्थात् "खुल जा"।
35) उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्धन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोला।
36) ईसा ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें, परन्तु वे जितना ही मना करते थे, लोग उतना ही इसका प्रचार करते थे।
37) लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। वे कहते थे, "वे जो कुछ करते हैं, अच्छा ही करते है। वे बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।"
आज के सुसमाचार में हम एक बहरे और गूँगे व्यक्ति को देखते हैं जिसे प्रभु येसु चंगाई प्रदान करने का चमत्कार करते हैं। प्रभु येसु के हर चमत्कार के पीछे कुछ न कुछ कारण होता है। कभी प्रभु येसु पिता ईश्वर के सन्देश व इस दुनिया में स्वयं के आने के उद्देश्य को भली-भाँति समझाना चाहते हैं, इसलिये चमत्कार करते हैं (देखिये योहन 9:1-7)। तो कभी अपने मानव स्वभाव के भावुक पहलू को प्रकट करने के लिये (देखिये लूकस 7:11-17)। इसको हम यों भी समझ सकते हैं कि जिस परिस्थिति में चमत्कार किया जाता है, उस परिस्थिति को उत्पन्न करने में ईश्वर की कुछ न कुछ भूमिका भी हो सकती है। उदाहरण के लिए जैसे ईश्वर किसी व्यक्ति का ध्यान एक विशेष पहलू या आदत या जीवन के बारे में खींचना चाहते हैं तो हो सकता है उस व्यक्ति के साथ ऐसी घटना घटे कि उसे उसमें ईश्वर का वह प्रयोजन समझ में आये या उसके द्वारा दूसरों को कोई सन्देश मिले।
सन्त आइरेनियुस का कहना है, ’’ईश्वर की महिमा इसमें है कि इन्सान पूर्ण रूप से जीवित हो।’’ इसे और साधारण भाषा में समझे तो यों कहेंगे ’कोई इन्सान ज़िन्दादिल है, स्वस्थ है, पूर्ण है, वही ईश्वर की महिमा को प्रकट करता है, क्योंकि हम सब ईश्वर के प्रतिरूप हैं और ईश्वर में कुछ भी कमी नहीं है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि लोग उस बहरे व्यक्ति को लेकर आते हैं जो गूँगा भी था। हम ज़रा और गहराई से उस व्यक्ति के बारे में सोचें। अगर कोई व्यक्ति बहरा है तो स्वाभाविक तौर से इसकी बहुत अधिक सम्भावना है कि वह व्यक्ति गूँगा भी हो क्योंकि प्रारम्भ में जब हम भाषा सीखते हैं तो अक्सर उसे सुनकर सीखते हैं। बाद में पढना-लिखना सीखते हैं और उस भाषा को और गहराई से व अन्य भाषाओं को भी सीखते हैं। उसके अलावा बोल-चाल के लिये शब्दों में ताल-मेल, उच्चारण, आवाज़ की तीव्रता, पिच आदि भी मायने रखते हैं। बहरे व्यक्ति को यह सब सीखना कठिन है, अतः वे स्वभावतः कुछ बोलना भी नहीं सीख पाते।
एक बहरा व्यक्ति अगर सुन नहीं सकता तो उसके लिये आधी दुनिया तो यों ही कट जाती है। लोग अपने बारे में क्या व्यक्त कर रहे हैं, बहरा व्यक्ति ना तो उसे समझ पाता है और न स्वयं को व्यक्त कर पाता है। अपनी अवाज़, अपनी भावनायें, अपना सुख-दुःख वह दूसरों के साथ नहीं बाँट सकता और न दूसरों के सुख-दुःख को समझ सकता है। आधुनिक युग में तकनीक के आगमन से ऐसे व्यक्तियों का जीवन अत्यन्त सुगम हो गया है लेकिन पुराने ज़माने में हालात बहुत बदतर थे। प्रभु येसु अक्सर व्यक्ति की परेशानी को महसूस कर उसे दूर कर देते थे। गूँगों को वाणी देना, बहरों को कान देना, अन्धों को रोशनी देना, लँगडों को चंगा करना ये सब मसीह के आगमन के लक्षण हैं। क्योंकि ईश्वर किसी को भी कष्ट में नहीं देख सकता। मनुष्यों के दुःख दूर करने, उन्हें मुक्ति प्रदान करने ही प्रभु येसु को पिता ईश्वर ने इस दुनिया में भेजा है।
हम प्रभु येसु के अनुयायी हैं, हम मसीह के प्रतिनिधि हैं। आज की दुनिया में हम हर जगह देखते हैं, सत्य को दबाया जाता है, कमजोरों पर अत्याचार किया जाता है, निर्बलों को परेशान किया जाता है। समाचार पत्र, दूरदर्शन समाचार आदि इसी प्रकार की खबरों से भरे पड़े हैं। उनमें से बहुत से अपराध या बुरे कर्म ऐसे हैं जिनके लिये अगर किसी ने आवाज़ उठाई होती तो वे अपराध किये ही नहीं जाते। अगर आस-पास के लोग गूँगे-बहरे नहीं बन जाते तो शायद किसी निर्दोष की रक्षा हो सकती थी। क्या आज हमें अपनी अन्तरात्मा का बहरापन और गूँगापन प्रभु येसु से दूर कराने की ज़रूरत तो नहीं है? क्या हम दूसरों के कष्टों और दुःखों को सुनते और समझते हैं? क्या हम मानव जीवन को नई राह दिखाने के लिये पिता ईश्वर के प्रतिनिधि बनने के लिये तैयार हैं? ईश्वर हमारी अन्तरात्मा के कान और जीभ के बन्धन खोल दे।
✍फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)