चक्र - ब - सत्रहवाँ सामान्य इतवार



पहला पाठ : राजाओं का दुसरा ग्रन्थ 4:42-44

42) एक मनुष्य बाल-शालिशा से आया और उसने ईश्वर -भक्त को प्रथम फल के रूप में जौ की बीस रोटियाँ और नये अनाज का बोरा दिया। तब एलीशा ने कहा ‘‘लोगों को खाने के लिए दे दो’’

43) किन्तु उसके नौकर ने कहा, ‘‘मैं इतने को ही एक सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘लोगों को खाने के लिए दो, क्योंकि प्रभु ने यह कहा है- वे खायेंगे और उस में से कुछ बच भी जायेगा’’।

44) उसने लोगों को खिलाया। उन्होंने खा लिया और जैसा कि प्रभु ने कहा था, उस में से कुछ बच भी गया।

दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:1-6

1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें - यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।

2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें

3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।

5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।

6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 6:1-15

1) इसके बाद ईसा गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पर गये।

2) एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने वे चमत्कार देखे थे, जो ईसा बीमारों के लिए करते थे।

3) ईसा पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये।

4) यहूदियों का पास्का पर्व निकट था।

5) ईसा ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है। उन्होंने फिलिप से यह कहा, ‘‘हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?’’

6) उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वे तो जानते ही थे कि वे क्या करेंगे।

7) फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके’’।

8) उनके शिष्यों में एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अन्द्रेयस ने कहा,

9) ‘‘यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह अतने लोगों के लिए क्या है,’’

10) ईसा ने कहा, ‘‘लोगों को बैठा दो’’। उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हज़ार थी।

11) ईसा ने रोटियाँ ले लीं, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा भर बँटवाया। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं।

12) जब लोग खा कर तृत्त हो गये, तो ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ‘‘बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न हो’’।

13) इस लिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे।

14) लोग ईसा का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, ‘‘निश्चय ही यह वे नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं’’।

15) ईसा समझ गये कि वे आ कर मुझे राजा बनाने के लिए पकड़ ले जायेंगे, इसलिए वे फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।


मनन-चिंतन

एक बार एक चित्रकार वेदी पर चित्र बना रहे थे। चित्र पूरा होने पर लोग देखने आये। लोगों ने वेदी के चित्र पर एक टोकरी में चार रोटी और दो मच्छलियों का चित्र देखा। सब लोग उनसे पूछने लगे कि टोकरी में पॉंचवीं रोटी कहॉं गायब हो गयी। तब उसने कहा कि टोकरी की पॉंचवीं रोटी पवित्र यूखारिस्त है जो वेदी पर चढ़ायी जाती है।

आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को पॉंच रोटियों और दो मच्छलियों से पॉंच हजार लोगों को खिलाते हुए पाते है। इस चमत्कार के एक प्रमुख बिन्दु पर आज हम मनन चिन्तन करेंगे।

उदारता से प्रचुरता की ओर और

आजकल फ्री या डिस्काउंट का नाम सुनते ही लोग इक्कट्ठा हो जाते हैं। प्रभु के पास इक्कट्ठा हुई भीड भी कुछ इस तरह की थी। वे प्रभु से कुछ पाना चाहते थे और प्रभु के चमत्कार देखना चाहते थे। येसु ने एक बहुत बडा चमत्कार उनके सामने किया। चमत्कार की शुरूआत एक छोटे लडके से होती है, जो अपने पास की पॉंच रोटियॉं और दो मच्छलियॉं दूसरों के साथ बाटने को तैयार हुआ। जब उस लडके ने अपनी पॉंच रोटियॉं और दो मच्छलियॉं बडी उदारता से दी तो वहॉं पर इक्कट्ठे पॉंच हजार से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिला।

बाईबिल में हम देखते हैं कि जितने लोगों ने उदारता का भाव अपनाया उन सब को प्रभु का आर्शीवाद मिला। उत्पत्ति ग्रंथ 13:9 में हम देखते है कि जब जमीन के बटवारे का समय आया तो इब्राहीम अपने भांजे लोट से कहते है कि ‘‘सारा प्रदेश तुम्हारे सामने है। हम एक दूसरे से अलग हो जायें यदि तुम बाएं जाओगे तो मैं दाहिने जाऊॅंगा और यदि दाहिने जाओगे तो मैं बाएं जाऊॅंगा’’। बडा होने के कारण इब्राहीम अच्छी जगह चुन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बडी उदारता से उन्होंने लोट को स्थान चुनने का अधिकार दिया। प्रभु ने इब्राहिम और उसके पूरे वंशजों को आर्शीवाद दिया। एक व्यक्ति की उदारता से उनके पूरे वंशजों को प्रचुरता की आशिष मिली।

राजाओं के पहले ग्रंथ 17:7 एवं आगे वाक्यांशों में एक और घटना हम पाते हैं। सरेप्ता की विधवा ने नबी एलियस को बहुत ही उदारता से अपनी आखरी रोटी खिलायी और प्रभु ने उसको प्रचुर मात्रा में आशिष दी। 16वें वाक्यांश में लिखा है कि ‘‘न तो बरतन में आटा समाप्त हुआ और न तेल की कुप्पी खाली हुई।

स्कूल के recess (अवकाश) के समय मैंने यह देखा है कि कुछ बच्चे टिफिन में जो खाने की चीज लाते हैं उसको कभी कभी सात या आठ दोस्तों को बांटते हैं और उनके लिए एक छोटा सा हिस्सा ही मिलता है या कभी-कभी तो वे स्वयं ही भूखे रह जाते हैं। लेकिन उनके चेहरे की मुस्कुराहट यह बताती है कि वे बहुत खुश हैं। आज की स्वार्थी दुनिया में ये बच्चे हमारे लिए एक नमूना है।

आज कल लोग इतने स्वार्थी हो गये हैं कि वे गरीब लाचार और भिखरियों से भी उनका सामान छीनने की कोशिश करते हैं। दूसरे लोगों को देने से हमें दो फायदे होते हैं। एक हमारे लिये खुशी की बात होती है कि हमने गरीबों के लिए कुछ दिया है और दूसरा यह है कि उनको हमारे द्वारा कुछ फायदा होता है। उनकी प्रार्थना और आर्शीवाद हमें मिलते रहते हैं। जब देने की बात होती है तो हमेशा हम पैसों के बारे में सोचते हैं। लेकिन हम पैसों के अलावा बहुत कुछ लोगों को दे सकते हैं। हमारा समय, हमारा ज्ञान, हमारी क्षमता, हमारी मीठी बातें आदि हम दूसरे लोगों के साथ बाट सकते हैं। अगर प्रभु ने खुद अपना जीवन न्यौछावर करके हमारे लिए पवित्र यूखारिस्त की स्थापना की तो क्या हम प्रभु के लिए कुछ दे सकते है? आईए हम दूसरों से लेने से ज्यादा उनको देना सीखे और लोगों से और प्रभु से आर्शीवाद प्राप्त करे क्योंकि प्रभु ने कहा है कि ‘‘जो इन छोटों में से किसी को एक प्याला ठंडा पानी भी इसलिए पिलायेगा कि वह मेरा शिष्य है, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।’’

फादर मेलविन चुल्लिकल


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