12) बेतेल के याजक अमस्या ने आमोस से कहा, ‘‘नबी! यहाँ से चले जाओ। यूदा के देश भाग जाओ। वहाँ भवियवाणी करते हुए अपनी जीविका चलाओ।
13) बेतेल में भवियवाणी करना बन्द करो; क्योंकि यह तो राजकीय पुण्य-स्थान है, यह राज मन्दिर है।’’
14) आमेास ने अमस्या को यह उत्तर दिया, ‘‘मैं न तो नबी था और न नबी की सन्तान। मैं चरवाहा था और गूलर के पेड़ छाँटने वाला।
15) मैं झुण्ड चरा ही रहा था कि प्रभु ने मुझे बुलाया मुझ से यह कहा, ‘जाओ! मेरी प्रजा इस्राएल के लिए भवियवाणी करो’।
3) धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।
4) उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।
5) उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार
6) अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,
7) जो अपने रक्त द्वारा हमें मुक्ति अर्थात् अपराधों की क्षमा दिलाते हैं। यह ईश्वर की अपार कृपा का परिणाम है,
8) जिसके द्वारा वह हमें प्रज्ञा तथा बुद्धि प्रदान करता रहता है।
9 (9-10) उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार निश्चय किया था कि वह समय पूरा हो जाने पर स्वर्ग तथा पृथ्वी में जो कुछ है, वह सब मसीह के अधीन कर एकता में बाँध देगा। उसने अपने संकल्प का यह रहस्य हम पर प्रकट किया है।
11 (11-12) ईश्वर सब बातों में अपने मन की योजना पूरी करता है। उसके अनुसार उसने निर्धारित किया है कि हम (यहूदी) मसीह द्वारा बुलाये जायें और हम लोगों के कारण उसकी महिमा की स्तुति हो। हम लोगों ने तो सब से पहले मसीह पर भरोसा रखा था।
13) आप लोगों ने भी सत्य का वचन, अपनी मुक्ति का सुसमाचार, सुनने के बाद मसीह में विश्वास किया है और आप पर उस पवित्र आत्मा की मुहर लग गयी, जिसकी प्रतिज्ञा की गयी थी।
14) वह हमारी विरासत का आश्वासन है और ईश्वर की प्रजा की मुक्ति की तैयारी, जिससे उसकी महिमा की स्तुति हो।
7) ईसा शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव घूमते थे। वे बारहों को अपने पास बुला कर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे।
8) ईसा ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिए कुछ भी नहीं ले जायें- न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा।
9) वे पैरों में चप्पल बाँधें और दो कुरते नहीं पहनें
10) उन्होंने उन से कहा, ’’जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो!
11) यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।’’
12) वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश दिया,
13) बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।
पिछले इतवार के सुसमाचार में हमने प्रभु को लोगों द्वारा तिरस्कृत हुए पाया। इसलिए हम आज के सुसमाचार में प्रभु को अपनी रणनीति बदलते हुए देखते है। प्रभु अपने शिष्यों को स्वर्गराज्य के रह्स्यों की शिक्षा दे कर दो दो करके भेजते हैं। इससे प्रभु हमें एक सीख जरूर देते हैं कि जब भी हम कुछ कार्य करने निकलते हैं तो हमारे पास एक वैकल्पिक योजना होनी चाहिए। एक नहीं चले तो दूसरा चलेगा। अपने शिष्यों को भेजते समय प्रभु द्वारा दिये गये अनुदेशों या हिदायतों पर हम आज मनन चिन्तन करेंगे।
1. साधारण जीवन शैली
2. अच्छे लोगों की संगति
3. तिरस्कृति में धूल झाडना
4. लोगों को चंगा करना
1. साधारण जीवन शैली :- एक बार एक व्यक्ति एक ऋषि के दर्शन करने आया और वह उस संत का कमरा देख कर चकित हो गया। उसके कमरें में एक भी फर्नीचर नहीं था। उसने ऋषि से पूछा कि यह बहुत बुरी बात है कि आपके घर में मेहमान को बिठाने के लिए एक कुर्सी तक नहीं है। तो साधू ने उनसे पूछा आपकी कुर्सी कहाँ है? उसने कहा कि मुझे कुर्सी की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं एक मुसाफिर हूँ। तब ऋषि ने उनसे कहा कि मैं भी इस संसार में एक मुसाफिर हूँ।
रेल गाडी के डिब्बे में कई जगह हम यह लिखा हुआ पाते हैं – Less luggage, more comfort - जितना कम वजन उतना आराम। आज के सुसमाचार में प्रभु यही बात अपने शिष्यों को समझाते हैं कि सुसमाचार प्रचार करते समय हम अपने आप को जितना विमुक्त रखते हैं, वह काम उतना ज़्यादा आसान बनता है। प्रभु अपने शिष्यों को मौलिक या बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित कर देते हैं। उनका मतलब यह था कि एक सुसमाचार प्रचारक का मन और हृदय हमेशा प्रभु पर और केवल प्रभु पर निर्भर रहना चाहिए।
2. अच्छे लोगों की संगति :- हम तारामंडल में काले छेद के बारे में ये पढ़ते हैं। उनके पास इतनी ताकत होती है कि आस पास से गुजरने वाले हर तारे को अपनी ओर आकर्षित करके एक चक्की की तरह काम करते हुए उसे काला कर देता है। इसी प्रकार जब हम बुरे या गलत लोगों की संगति में आते है तब हम भी उसके जैसे बदल सकते हैं। इसीलिए प्रभु उन्हें चेतावनी देते हुए कहते हैं कि गाँव छोडने तक उन्हें अच्छे लोगों की संगति में रहना है।
3. धूल झाडना :- यहूदी लोग दूसरे गैरयहूदियों के देश घूमकर वापस आते समय उनके पैर और कपडे से धूल झाडने की एक प्रथा प्रचलित थी। इसी परंपरा को याद दिलाते हुए प्रभु अपने शिष्यों से कहते हैं कि जो उनका प्रवचन को अस्वीकार करते हैं, जो उनकी निन्दा करते हैं, जो उन पर विश्वास नहीं करते हैं, उनके वहाँ ठहरने की ज़रूरत नहीं है। आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि इस्राएल के राजा येरोबाम यहूदियों को आराधना के लिए येरूसलेम नहीं भेजता है बल्कि अपने देश में बाल देवता के लिए मंदिर बना कर लोगों को बाल देवता की आराधना करने के लिए बाध्य करता है। ना नबी आमोस ने इसके विरुध्द आवाज उठायी और न ही बतेल मंदिर के अमासिया ने उनकी निन्दा की। ईश्वरीय कार्य में निन्दा या तिरस्कार हमें मिलते रहेंगे लेकिन लोगों को चेतावनी देना हमारा कर्तव्य है। धूल झाडना एक प्रकार का चेतावनी है।
4. लोगों को चंगा करना :- आज की दुनिया को चंगाई की जरूरत है क्योंकि लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों से गुजर रहे हैं। शारीरिक और मानसिक बीमारियों की चंगाई के अतिरिक्त आज समाज के हर क्षेत्र में फैल रही सामाजिक बीमारियों को भी चंगाई की आवश्यकता है। समाज में एक दूसरे के प्रति नफरत भेदभाव के व्यवहार, असहिष्णुता, नैतिक मूल्यों का उडेल, धोखेबाजी और अस्वस्थ प्रतियोगिता आदि इसके कुछ उदाहरण है। प्रभु ने हमें सबको इन बीमारियों से चंगाई प्रदान करने का माध्यम बनाया हैं।
हमें अपनी इस बुलाहट को पहचानना जरूरी है। हम प्रभु के इस मिशन-कार्य को गंभीरता से लें। लोगों की निन्दा से हताश न होते हुए अच्छे लोगों की संगति में रहते हुए प्रभु की योजना के अनुसार हम काम करते रहें, लोगों को और समाज को चंगाई देते रहें। प्रभु आज हम से यही अपेक्षा करते हैं।
✍फादर मेलविन चुल्लिकल