13) ईश्वर ने मृत्यु नहीं बनायी; वह प्राणियों की मृत्यु से प्रसन्न नहीं होता।
14) उसने सब कुछ की सृष्टि इसलिए की है कि वह अस्तित्व में बना रहे। संसार में जो कुछ है, वह हितकर है; उस में कहीं भी घातक विष नहीं। अधोलोक पृथ्वी पर शासन नहीं करता;
15) क्योंकि न्याय का कभी अन्त नहीं होगा।
23) ईश्वर ने मनुष्य को अमर बनाया; उसने उसे अपना ही प्रतिरूप बनाया।
24) शैतान की ईर्ष्या के कारण ही मृत्यु संसार में आयी है। जो लोग शैतान का साथ देते हैं, वे अवश्य ही मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।
7) आप लोग हर बात में- विश्वास, अभिव्यक्ति, ज्ञान, सब प्रकार की धर्म-सेवा और हमारे प्रति प्रेम में बढ़े-चढ़ें हैं; इसलिए आप लोगों को इस परोपकार में भी बड़ी उदारता दिखानी चाहिए।
9) आप लोग हमारे प्रभु ईसा मसीह की उदारता जानते हैं। वह धनी थे, किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बन गये, जिससे आप उनकी निर्धनता द्वारा धनी बन गये।
13) मैं यह नहीं चाहता कि दूसरों को आराम देने से आप लोगों को कष्ट हो। यह बराबरी की बात है।
14) इस समय आप लोगों की समृद्धि उनकी तंगी दूर करेगी, जिससे किसी दिन उन की समृद्धि आपकी तंगी दूर कर दे और इस तरह बराबरी हो जाये।
15) जैसा कि लिखा है-जिसने बहुत बटोरा था, उसके पास अधिक नहीं निकला और जिसने थोड़ा बटोरा था, उसके पास कम नहीं निकला।
21) जब ईसा नाव से उस पार पहॅूचे, तो समुद्र के तट पर उनके पास एक विशाल जनसमूह एकत्र हो गया।
22) उस समय सभागृह का जैरूस नाम एक अधिकारी आया। ईसा को देख कर वह उनके चरणों पर गिर पड़ा
23) और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’’मेरी बेटी मरने पर है। आइए और उस पर हाथ रखिए, जिससे वह अच्छी हो जाये और जीवित रह सके।’’
24) ईसा उसके साथ चले। एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली और लोग चारों ओर से उन पर गिरे पड़ते थे।
25) एक स्त्री बारह बरस से रक्तस्राव से पीडि़त थी।
26) अनेकानेक वैद्यों के इलाज के कारण उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा था और सब कुछ ख़र्च करने पर भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ था।
27) उसने ईसा के विषय में सुना था और भीड़ में पीछे से आ कर उनका कपड़ा छू लिया,
28) क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी, ’यदि मैं उनका कपड़ा भर छूने पाऊॅ, तो अच्छी हो जाऊँगी’।
29) उसका रक्तस्राव उसी क्षण सूख गया और उसने अपने शरीर में अनुभव किया कि मेरा रोग दूर हो गया है।
30) ईसा उसी समय जान गये कि उन से शक्ति निकली है। भीड़ में मुड़ कर उन्होंने पूछा, ’’किसने मेरा कपड़ा छुआ?’’
31) उनके शिष्यों ने उन से कहा, ’’आप देखते ही है कि भीड़ आप पर गिरी पड़ती है। तब भी आप पूछते हैं- किसने मेरा स्पर्श किया?’’
32) जिसने ऐसा किया था, उसका पता लगाने के लिए ईसा ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी।
33) वह स्त्री, यह जान कर कि उसे क्या हो गया है, डरती- काँपती हुई आयी और उन्हें दण्डवत् कर सारा हाल बता दिया।
34) ईसा ने उस से कहा, ’’बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ और अपने रोग से मुक्त रहो।’’
35) ईसा यह कह ही रहे थे कि सभागृह के अधिकारी के यहाँ से लोग आये और बोले, ’’आपकी बेटी मर गयी है। अब गुरुवर को कष्ट देने की ज़रूरत ही क्या है?’’
36) ईसा ने उनकी बात सुन कर सभागृह के अधिकारी से कहा, ’’डरिए नहीं। बस, विश्वास कीजिए।’’
37) ईसा ने पेत्रुस, याकूब और याकूब के भाई योहन के सिवा किसी को भी अपने साथ आने नहीं दिया।
38) जब वे सभागृह के अधिकारी के यहाँ पहुँचे, तो ईसा ने देखा कि कोलाहल मचा हुआ है और लोग विलाप कर रहे हैं।
39) उन्होंने भीतर जा कर लोगों से कहा, ’’यह कोलाहल, यह विलाप क्यों? लड़की मरी नहीं, सो रही है।’’
40) इस पर वे उनकी हँसी उड़ाते रहे। ईसा ने सब को बाहर कर दिया और वह लड़की के माता-पिता और अपने साथियों के साथ उस जगह आये, जहाँ लड़की पड़ी हुई थी।
41) लड़की का हाथ पकड़ कर उस से कहा, ’तालिथा कुम’’। इसका अर्थ है- ओ लड़की! मैं तुम से कहता हूँः उठो।
42) लड़की उसी क्षण उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी, क्योंकि वह बारह बरस की थी। लोग बड़े अचम्भे में पड़ गये।
43) ईसा ने उन्हें बहुत समझा कर आदेश दिया कि यह बात कोई न जान पाये और कहा कि लड़की को कुछ खाने को दो।
आज के पाठों में हमें जीवन का उपहार दोनों शारीरिक और अध्यात्मिक, जिसे ईश्वर ने हमें दिया है, के बारे में बताया गया है। वे हमें प्रेरित और चुनौती देता है कि हम कृतज्ञ बनकर अपने शरीर और आत्मा में ईश्वर के वरदान और स्वास्थ्य को जिम्मेदारी के साथ निभायें।
आज के पहले पाठ में प्रज्ञा ग्रन्थ हमें बताता है कि ईश्वर ने हमें जीवन और स्वास्थ्य दिया है, और शैतान की ईष्या के कारण बीमारी और मृत्यु उत्पन्न हुई। पाठ हमें आगे बताता है कि हमारे इस संसार में जीवन का उददेश्य इस पृथ्वी पर ईश्वर को जानना, प्रेम करना और उसकी सेवा एक स्वच्छ शरीर और आत्मा से उनके अमर जीवन का सहभागी बनना।
आज के दूसरे पाठ मे संत पौलुस कहते हैं कि कुरिन्थ के ख्रीस्तीय समुदाय को उनके समृध्दि, उनके तंगी में आये यहुदी भाइयो एवं बाहनों। जो योरूशालेम में उनके प्रति दया और सहानुभूति दिखाते हैं, जिसे प्रभु येसु ने अपनी स्वास्थ्य सेवा में प्रदर्शित किया था। संत पौलुस उनसे कहते हैं कि वे उदार हदय से तगीं में आये भाई-बहनों के लिए चन्दा जमा करें।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के दो चमत्कारों पर प्रकाश डाला गया है, रक्तस्राव से पीड़ित महिला का स्वास्थ्य जो रक्तस्राव के बीमारी से पीड़ित थी और जैरूस की बेटी का मृत्यु से जीवन में वापस आना। ये दोनों उपचार शिक्षा देता है कि प्रभु येसु जीवन चाहते हैं, एक भरपुर जीवन जो ईश्वर अपने बच्चों के लिए देता है। दोनों उपचार प्रभु येसु के उदारता, दयालुता और सहानुभूति को प्रकट करता है, जिससे मनुष्य को प्रभु की दैवी शक्ति और हमारे प्रभु की अनन्त दया का प्रमाण देते हैं। ये दोनों चमत्कार प्रभु द्वारा पुरूस्कार के लिए किया गये, सभाग्रह के शासक और रक्तस्राव से पीड़ित महिला द्वारा विश्वास कर सकें।
✍फादर आइजक एक्काToday is the thirteenth Sunday of the year. Today’s readings speak about gift of life both physical and spiritual which God has given us. They urge and challenge us to be grateful for our health in body and soul and to use God’s gifts of life and health responsibly.
Today’s first reading taken from the book of Wisdom tells us that God has given us life and health and it is Satan’s jealousy which produced illness and death. The readings also further tell the goal of our life is to know, to love and to serve God here on earth with perfect health in body and soul and share immortal life forever.
In today’s second reading Paul tells the Corinthian Christian community to show their impoverished, suffering Jewish brothers and sisters in Jerusalem the kindness and compassion which Jesus expressed in his healing ministry. Paul asks the community to be generous in their contributions to a fund collected for these suffering brothers and sisters.
In today’s gospel Jesus’ two miracles have been highlighted: healing of a woman who suffered from a chronic bleeding disease and the returning of the dead daughter of Jairus to life. These both healings teach us that Jesus wills life, the full life, for all God’s children. These healings also reveal Jesus as a generous, kind and compassion God who wills that men should live their lives fully. They also give us further proof of the divine power and infinite mercy of our saviour. These miracles were performed by Jesus as a reward for trusting faith of the synagogue ruler and of the woman with a haemorrhage.
✍ -Fr. Isaac Ekka