18) “पिछली बातें भुला दो, पुरानी बातें जाने दो।
19) देखो, मैं एक नया कार्य करने जा रहा हूँ। वह प्रारम्भ हो चुका है। क्या तुम उसे नहीं देखते? मैं मरुभूमि में मार्ग बनाऊँगा और उजाड़ प्रदेश में पथ तैयार करूँगा।
21) मैंने यह प्रजा अपने लिए बनायी है। यह मेरा स्तुतिगान करेगी।
22) “याकूब! तुमने मेरा नाम नहीं लिया। इस्राएल! तुमने मेरी परवाह नहीं की।
24) तुमने अपने खर्च से मुझे सुगन्धित द्रव्य नहीं चढ़ाया; तुमने अपने बलि-पशुओं से मुझे तृप्त नहीं किया। किन्तु तुमने अपने पापों का बोझ मुझ पर डाला और अपने अपराधों से मुझे खिजाया।
25) “मैं वही हूँ, जो अपने नाम के कारण तुम्हारे सब अपराध धो डालता है। मैं तुम्हारे पाप फिर याद नहीं करता।
18) ईश्वर की सच्चाई की शपथ! मैंने आप लोगों को जो सन्देश दिया, उस में कभी ’हाँ’ और कभी ’नहीं’-जैसी बात नहीं है;
19) क्योंकि सिल्वानुस, तिमथी और मैंने आपके बीच जिनका प्रचार किया, उन ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह में कभी ’हाँ’ और कभी ’नहीं’-जैसी बात नहीं - उन में मात्र ’हाँ’ है।
20) उन्हीं में ईश्वर की समस्त प्रतिज्ञाओं की ’हाँ’ विद्यमान है, इसलिए हम ईश्वर की महिमा के लिए उन्हीं के द्वारा ’आमेन’ कहते हैं।
21) ईश्वर आप लोगों के साथ हम को मसीह में सुदृढ़ बनाये रखता है और उसी ने हमारा अभिशेक किया है।
22) उसी ने हम पर अपनी मुहर लगायी और अग्रिम के रूप में हमारे हृदयों को पवित्र आत्मा प्रदान किया है।
1) जब कुछ दिनों बाद ईसा कफ़रनाहूम लौटे, तो यह खबर फैल गयी कि वे घर पर हैं
2) और इतने लोग इकट्ठे हो गये कि द्वार के सामने जगह नहीं रही। ईसा उन्हें सुसमाचार सुना ही रहे थे कि
3) कुछ लोग एक अर्ध्दांगरोगी को चार आदमियों से उठवा कर उनके पास ले आये।
4) भीड़ के कारण वे उसे ईसा के सामने नहीं ला सके; इसलिए जहाँ ईसा थे, उसके ऊपर की छत उन्होंने खोल दी और छेद से अर्ध्दांगरोगी की चारपाई नीचे उतार दी।
5) ईसा ने उन लोगों का विश्वास देख कर अर्ध्दांगरोगी से कहा, "बेटा! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"।
6) वहाँ कुछ शास्त्री बैठे हुए थे। वे सोचते थे- यह क्या कहता है?
7) यह ईश-निन्दा करता है। ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?
8) ईसा को मालूम था कि वे मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं। उन्होंने शास्त्रियों से कहा, "मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?
9) अधिक सहज क्या है- अर्ध्दांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’?
10) परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है"- वे अर्ध्दांगरोगी से बोले-
11) "मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ"।
12) वह उठ खड़ा हुआ और चारपाई उठा कर तुरन्त सब के देखते-देखते बाहर चला गया। सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की स्तुति की- हमने ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा।