5) संसार का विजयी कौन है? केवल वही, जो यह विश्वास करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं।
6) ईसा मसीह जल और रक्त से आये - न केवल जल से, बल्कि जल और रक्त से। आत्मा इसके विषय में साक्ष्य देता है, क्योंकि आत्मा सत्य है।
7) इस प्रकार ये तीन साक्ष्य देते हैं-
8) आत्मा, जल और रक्त और तीनों एक ही बात कहते हैं।
9) हम मनुष्यों का साक्ष्य स्वीकार करते हैं, किन्तु ईश्वर का साक्ष्य निश्चय ही कहीं अधिक प्रामाणिक है। ईश्वर ने अपने पुत्र के विषय में साक्ष्य दिया है।
10) जो ईश्वर के पुत्र में विश्वास करता है, उसके हृदय में ईश्वर का वह साक्ष्य विद्यमान है। जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता, वह उसे झूठा समझता है; क्योंकि वह पुत्र के विषय में ईश्वर का साक्ष्य स्वीकार नहीं करता
11) और वह साक्ष्य यह है - ईश्वर ने अपने पुत्र द्वारा हमें अनन्त जीवन प्रदान किया है।
12) जिसे पुत्र प्राप्त है, उसे वह जीवन प्राप्त है और जिसे पुत्र प्राप्त नहीं है, उसे वह जीवन प्राप्त नहीं।
13) तुम सभी ईश्वर के पुत्र के नाम में विश्वास करते हो। मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ, जिससे तुम यह जानो कि तुम्हें अनन्त जीवन प्राप्त है।
12) किसी नगर में ईसा के पास एक मनुष्य आया, जिसका शरीर कोढ़ से भरा हुआ था। वह ईसा को देख कर मुँह के बल गिर पड़ा और विनय करते हुए यह बोला, "प्रभु! आप चाहें, तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं।
13) ईसा ने हाथ बढ़ा कर यह कहते हुए उसका स्पर्श किया, "मैं यही चाहता हूँ-शुद्ध जो जाओ"। उसी क्षण उसका कोढ़ दूर हो गया।
14) ईसा ने उसे किसी से कुछ न कहने का आदेश दिया और कहा, "जा कर अपने को याजक को दिखाओ और अपने शुद्धीकरण के लिए मूसा द्वारा निर्धारित भेंट चढ़ाओं, जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये"
15) ईसा की ख्याति बढ़ रहीं थी। भीड़-की-भीड़़ उनका उपदेश सुनने और अपने रोगों से छुटकारा पाने के लिए उनके पास आती थी,
16) और वे अलग जा कर एकान्त स्थानों में प्रार्थना किया करते थे।
हमारे आज के मनन-चिंतन में प्रभु येसु आज एक कोढ़ी को चंगा करते हैं। पुराने ज़माने में कोढ़ एक भयंकर बीमारी के रूप में जाना जाता था। जिन लोगों को यह रोग हो जाता तो वे ना केवल शारीरिक रूप से कष्ट उठाते क्योंकि उनकी शरीर गलकर सड़ने लगता, बल्कि वे समाज और धर्म से बहिष्कृत किए जाने का दर्द भी सहते थे। उन्हें शापित मानकर समाज और लोगों से दूर निकाल दिया जाता था। वे एक मारे हुए इंसान से भी बदतर थे, ना उनके पास स्वास्थ्य था, ना समाज में कोई स्थान, ना इंसान जैसी गरिमा और ना ही आरामदायक या सम्माजनक मृत्यु ही उन्हें नसीब होती थी। वह कोढ़ी प्रभु येसु से आग्रह करता है, “यदि आप चाहें तो मुझे चंगा कर सकते हैं।” वह ईश्वर जो मानवजाति को बचाने के लिए धरती पर आए, वह इस कोढ़ी को बचना नहीं चाहेंगे? आप उनसे आग्रह करके देखिए, वह आपके लिए जो उत्तम है वही करेंगे।
उस कोढ़ी को चंगा कर प्रभु ना केवल उसे अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करते हैं बल्कि उसके सामाजिक जीवन को चंगा करते हैं। वह उसके अंदर ईश्वर की संतान होने की गरिमा को पुनः स्थापित करते हैं। इस दुनिया में उनके आने का यही मक़सद है, संसार की मुरझायी हुई मानवता को पुनर्जीवित करने और प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर के प्रतिरूप को पुनर्स्थापित करने के लिए। आज भी वह अथक इसी काम में लगे रहते हैं। हे प्रभु इस दुनिया में आकर हमें पुनः चंगा करने और मानवीय गरिमा प्रदान करने के लिए आपको धन्यवाद। आमेन।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Jesus heals a leper in today’s reflection for us. Leprosy was a horrible disease in olden days. People who had this disease suffered not only physically as their skin got rotten and their wounds would not heal. They also suffered alienation from the society and religion. They were considered outcast and sent away from the people and society. They were worse than a dead person, they had no health, no place in the society, no dignity as human beings not even a peaceful death. This leper asks Jesus, “If you choose, you can make me clean.” How God, who came to save humanity wouldn’t choose to save this leper? You ask him and he will always choose what is best for you.
By healing the leper Jesus not only restores his health but restores his social status, making him acceptable in society again. He restores his human dignity as image of God and child of God. This is the very purpose of his coming to heal the broken humanity and restore the image of God in each and every child of his. He continues to work tirelessly. Thank you Jesus for coming into this world and giving us new life and restoring our dignity. Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)