23) जो पुत्र को अस्वीकार करता है, उस में पिता का निवास नहीं है। जो पुत्र को स्वीकार करता है, उस में पिता का निवास है।
24) जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, वह तुम में बनी रहे। जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, यदि वह तुम में बनी रहेगी, तो तुम भी पुत्र तथा पिता में बने रहोगे।
25) मसीह ने हम से जो प्रतिज्ञा की, वह है- अनन्त जीवन।
26) मैंने ये बातें तुम को उन लोगों के विषय में लिखीं हैं, जो तुम्हें भटकाना चाहते हैं।
27) तुम लोगों को मसीह से जो पवित्र आत्मा मिला, वह तुम में विद्यमान रहता है; इसलिए तुम को किसी अन्य गुरु की आवश्यकता नहीं। वह तुम्हें सब कुछ सिखलाता है। उसकी शिक्षा सत्य है, असत्य नहीं। तुम उस शिक्षा के अनुसार मसीह में बने रहो।
28) बच्चो! अब तुम उन में बने रहो, जिससे जब वह प्रकट हों, तो हमें पूरा भरोसा हो और उनके आगमन पर उन से अलग होने की निराशा न हो।
20) तो उसने यह साक्ष्य दिया- उसने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया कि मैं मसीह नहीं हूँ।
21) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘तो क्या? क्या आप एलियस हैं?’’ उसने कहा, ‘‘में एलियस नहीं हूँ’’। ‘‘क्या आप वह नबी हैं?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘नहीं’’।
22) तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘तो आप कौन हैं? जिन्होंने हमें भेजा, हम उन्हें कौनसा उत्तर दें? आप अपने विषय में क्या कहते हैं?’’
23) उसने उत्तर दिया, ‘‘मैं हूँ- जैसा कि नबी इसायस ने कहा हैं- निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज़ः प्रभु का मार्ग सीधा करो’’।
24) जो लोग भेजे गये है, वे फ़रीसी थे।
25) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘यदि आप न तो मसीह हैं, न एलियस और न वह नबी, तो बपतिस्मा क्यों देते हैं?’’
26) योहन ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘मैं तो जल में बपतिस्मा देता हूँ। तुम्हारे बीच एक हैं, जिन्हें तुम नहीं पहचानते।
27) वह मेरे बाद आने वाले हैं। मैं उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।’’
28) यह सब यर्दन के पास बेथानिया में घटित हुआ, जहाँ योहन बपतिस्मा देता था।
योहन बप्तिस्ता का जीवन इतना आदर्श और अनुकरणीय था कि लोग सोचने लगते हैं कि कहीं यही तो प्रतिज्ञात मसीह नहीं? उनके जीवन, उनके कार्यों, उनके शक्तिशाली वचनों के कारण लोगों उन्हीं को मसीह समझने लगे थे। इसलिए यहूदी यह पता लगाना चाहते थे कि कहीं यही तो वह मसीह नहीं जिसके लिए वे सदियों से इंतज़ार कर रहे थे? अतः वे कुछ लोगों को यह पता लगाने के लिए योहन के पास भेजते हैं। योहन बप्तिस्ता से पूछे गए उनके सवाल लोगों के मनोभाव को व्यक्त करते हैं। लेकिन योहन स्पष्ट रूप से लोगों को बताते हैं कि वह मसीह होने के बिलकुल भी योग्य नहीं हैं, वह तो उनके चरणों की धूल के समान हैं। वह अपनी पहचान के बारे में स्पष्ट थे कि उनकी पहचान मात्र एक आवाज़ है, एक अग्रदूत है, जो लोगों को मसीह का स्वागत करने के लिए तैयार करने आया है।
आज भी लोग सच्चे ईश्वर, येसु ख्रिस्त की उपस्थिति को पहचान नहीं पाते। हम दुनिया में यहाँ-वहाँ भटकते और बहुत सी वस्तुओं और स्वयंभू गुरुओं के जाल में फँस जाते हैं। केवल प्रभु येसु ही मार्ग, सत्य और जीवन हैं, प्रभु येसु के अलावा हमारी आत्मा के सच्चे मुक्तिदाता को हम और कहीं नहीं पा सकते क्योंकि इस संसार में येसु नाम के सिवा हमें कोई भी नाम नहीं दिया गया है। हमें अपने मुक्तिदाता को पहचानना है और उसके पास आना है, केवल वही हमें सच्चा जीवन और शांति दे सकते हैं। वही एकमात्र सच्चा ईश्वर है जिसके लिए हमारे मन और आत्मा प्यासी है।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
John the Baptist lived so radical and authentic life that people thought he could be the promised messiah. Because of way of life, his actions, his powerful words, people identified him with messiah. So the Jews want to make sure that whether he is the one for whom they were waiting for generations. They sent some people to find out. Those questions asked to John the Baptist, voiced the people’s confusion. He clearly tells and clarifies that he is nowhere even close to being a messiah. He is clear of his identity that he is only a voice, a precursor to prepare the people for the messiah.
Even today people get confused to identify and recognise the presence of true God, Lord Jesus Christ. We run around, and get attracted to and distracted by many things and by self-claimed gurus. Only Christ is the truth, way and life, nowhere else can we find true saviour of our souls then Jesus because no other name is given to us under heaven except Jesus. We need to know our saviour deeply and come unto him, he will give us true life and peace. He is the one for whom our hearts and souls long.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)