8) मैं अपने प्रियतम की आवाज सुन रही हूँ- देखो! वह पर्वतों पर उछलते-कूदते, पहाड़ियों को लाँघते हुए आ रहा है।
9) मेरा प्रियतम चिकारे के सदृश है अथवा तरूण मृग के सदृश। देखो! वह हमारी दीवार के ओट में खड़ा है, वह खिड़की से ताक रहा है, वह जाली में से झाँक रहा है।
10) मेरा प्रियतम बोल रहा है। वह मुझ से यह कहता है,
11) ‘‘प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो। देखो! शीतकाल बीत गया है, वर्षा-ऋतु समाप्त हो गयी है।
12) पृथ्वी पर फूल खिनने लगे हैं। गीत गाने का समय आ गया है और हमारे देश में कपोत की कूजन सुनाई दे रही है।
13) अंजीर के पेड़ में नये फल लग गये हैं और दाखलताओं के फूल महक रहे है। प्रिये! सुन्दरी! उठो, मेरे साथ चलो।
14) चट्टानों की दरारों में, पर्वतों की गुफाओें में छिपने वाली, मेरी कपोती! मुझे अपना मुख दिखाओे, अपनी आवाज़ सुनने दो, क्योंकि तुम्हारा कण्ठ मधुर है और तुम्हारा मुख सुन्दर है।‘‘
14) सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरूसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।
15) प्रभु ने तेरा दण्डादेश रद्द किया और तेरे शत्रुओं को भगा दिया है। प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है।
16) विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। उस दिन येरूसालेम से कहा जायेगा-"सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।
17) वह विजयी योद्धा है। वह तेरे कारण आनन्द मनायेगा, वह अपने प्रेम से तुझे नवजीवन प्रदान करेगा,
18) वह उत्सव के दिन की तरह तेरे कारण आनन्दविभोर हो जायेगा।" मैं तेरी विपत्ति को दूर करूँगा, मैं तेरा कलंक मिटा दूँगा।
39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।
40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।
41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।
42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!
43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?
44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।
45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’