10) प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,
11) “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिन्ह माँगो“।
12) आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।“
13) इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?
14) प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है - एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’
38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।