13) क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारा दाहिना हाथ पकड़ कर तुम से कहता हूँ- मत डरो, देखो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।
14) याकूब! तुम कीड़े-जैसे हो गये हो। इस्राएल! तुम शव-जैसे हो गये हो। प्रभु कहता है- मैं तुम्हारी सहायता करूँगा, इस्राएल का परमपावन प्रभु तुम्हारा उद्धारक है।
15) मैं तुम, को दँवरी का यन्त्र बनाता हूँ- नया, दुधारा और पैना। तुम पहाड़ों को दाँव कर चूर-चूर करोगे और पहाड़ियों को भूसी बना दोगे।
16) तुम उन्हें ओसाओगे- हवा उन्हें उड़ा ले जायेगी और आँधी उन्हें छितरा देगी। तुम प्रभु में आनन्द मनाओगे और इस्राएल के परमपावन ईश्वर पर गौरव करोगे।
17) “दरिद्र पानी ढूँढते हैं और पाते नहीं, उनकी जीभ प्यास के मारे सूख गयी है। मैं, प्रभु, उनकी दुहाई पर ध्यान दूँगा; मैं, इस्राएल का ईश्वर, उन्हें नहीं त्यागूँगा।
18) मैं उजाड़ पहाड़ियों पर से नदियाँ और घाटियों में जलधाराएँ बहा दूँगा। मैं मरुभूमि को झील बनाऊँगा और सूखी भूमि को जलस्रोतों से भर दूँगा।
19) मैं मरुभूमि में देवदार, बबूल, मेंहदी और जैतून लगा दूँगा। मैं उजाड़खण्ड में खजूर, चीड़ और चनार के वृक्ष लगाऊँगा।
20) इस प्रकार सब देख कर जानेंगे, सब उस पर विचार कर स्वीकार करेंगे कि प्रभु ने यह सब किया है, इस्राएल के परमपावन ईश्वर ने इसकी सृष्टि की है।“
11) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ। फिर भी, स्वर्ग राज्य में जो सबसे छोटा है, वह योहन से बड़ा है।
12) ’’योहन बपतिस्ता के समय से आज तक लोग स्वर्गराज्य के लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं।
13) ’’योहन तक के नबी, और संहिता भी, सब-के-सब राज्य के विषय में केवल भविष्य वाणी कर सके।
14) तुम चाहो, तो मेरी बात मान लो कि योहन वही एलियस है, जो आने वाला था।
15) जिसके कान हों, वह सुन ले।