चक्र ’अ’ - वर्ष का उन्नीसवाँ समान्य इतवार



📒 पहला पाठ :राजाओं का पहला ग्रन्थ 19:9a.11-13a

9) एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी।

11) प्रभु ने उस से कहा, ‘‘निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।

12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।

13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया।

📕 दूसरा पाठ : रोमियों 9: 1-5

1) मैं मसीह के नाम पर सच कहता हूँ और मेरा अन्तःकरण पवित्र आत्मा से प्रेरित हो कर मुझे विश्वास दिलाता है कि मैं झूठ नहीं बोलता-

2) मेरे हृदय में बड़ी उदासी तथा निरन्तर दुःख होता है।

3) मैं अपने रक्त-सम्बन्धी भाइयों के कल्याण के लिए मसीह से वंचित हो जाने के लिए तैयार हूँ।

4) वे इस्राएली हैं। ईश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें ईश्वर के सान्निध्य की महिमा, विधान, संहिता, उपासना तथा प्रतिज्ञाएं मिली है।

5) कुलपति उन्हीं के हैं और मसीह उन्हीं में उत्पन्न हुए हैं। मसीह सर्वश्रेष्ठ हैं तथा युगयुगों तक परमधन्य ईश्वर हैं। आमेन।

📙 सुसमाचार :मत्ती 14:22-33

22) इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा करदेंगे।

23) ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे़। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।

24) नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।

25) रात के चैथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।

26) जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, ’’यह कोई प्रेत है‘‘, डर के मारे चिल्ला उठे।

27) ईसा ने तुरन्त उन से कहा, ’’ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।‘‘

28) पेत्रुस ने उत्तर दिया, ’’प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए‘‘।

29) ईसा ने कहा, ’’आ जाओ‘‘। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;

30) किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ’’प्रभु! मुझे बचाइए’’।

31) ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, ’’अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?’’

32) वे नाव पर चढे और वायु थम गयी।

33) जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया ’’आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं’’।

📚 मनन-चिंतन

आज के पाठ हमें ईश्वर के स्वभाव के दर्शन कराते हैं। पहले पाठ में हम नबी एलियस को देखते हैं जो आँधी-तूफ़ान या भूकम्प या अग्नि में ईश्वर के दर्शन नहीं करते बल्कि मंद समीर के झोंके में ईश्वर को पाते हैं। दूसरे पाठ में सन्त पौलुस अपने इस्राएली भाइयों के लिए दुःख व्यक्त करते हैं कि उनके पास सब कुछ था, वे चुनी हुई प्रजा थे लेकिन फिर भी उन्होंने प्रभु ख्रिस्त को नहीं स्वीकारा जो सदा सर्वदा सारी सृष्टि के प्रभु और उद्धारकर्ता हैं। आज का सुसमाचार हमें प्रभु येसु की झलक दिखलाता है, समुद्र और वायु भी जिनके वश में है, वह ना केवल सारी मानव जाति के बल्कि समस्त प्राकृतिक शक्तियों के भी प्रभु हैं।

प्रेरित संत थोमस जो सुसमाचार प्रचार के लिए हमारे देश भारत आए थे, उनके बारे में एक दिलचस्प घटना प्रचलित है। यह घटना उस समय घटी जब वह केरल प्रान्त के पालयुर नामक स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि तालिकुलम (तालाब) में कुछ पुजारी लोग सूर्य देवता को तर्पण कर रहे थे। उसने उनसे पूछा कि सूर्य देवता उनके तर्पण को स्वीकार क्यों नहीं कर रहे क्योंकि जल नीचे गिर जाता था। लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसा सम्भव नहीं है कि जल नीचे ना आये, तब सन्त थोमस ने कुछ जल लिया और उसे ऊपर की ओर उछाला और जल की बूँदे चमकते मोतियों की तरह बीच हवा में ही ठहर गयीं। तब उन ब्राह्मण पुजारियों ने सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास किया, जो सारी सृष्टि का संचालन करता है, और जिसके वश में सब कुछ, सूर्य, चंद्रमा धरती आदि है। वह तालाब, वह स्थान और वह चर्च जिसकी स्थापना सन्त थोमस ने की, आज भी केरल में विध्यमान है।

सारी सृष्टि को बनाने के बाद ईश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की। ईश्वर ने मनुष्य को सृष्टि में उसकी देख-भाल करने के लिए बनाया, लेकिन धीरे-धीरे मनुष्य शक्ति का भूखा, स्वार्थी और लालची बनता गया। उसने सृष्टि को अपने वश में करना प्रारम्भ कर दिया, प्रकृति और जीव-जंतुओं पर राज करना शुरू कर दिया। यह क्रम आज भी जारी है, और इसी कारण कभी-कभी प्रकृति मनुष्य के विरुद्ध उठ खड़ी होती है, और भारी विनाश करती है जो मनुष्य के सामर्थ्य से परे है। मनुष्य प्राकृतिक शक्तियों से डरना शुरू कर देता है और ईश्वर की बनायी हुई प्रकृति को ईश्वर की तरह मानने लगता है, यहाँ तक कि ईश्वर के स्थान पर प्रकृति की ही पूजा करने लगता है। जहाँ उसे ईश्वर से डरना चाहिए, वह ईश्वर द्वारा बनयी हुई चीज़ों से डरने लगता है। ईश्वर सब कुछ को अपने वश में करता और सब कुछ का संचालन करता है; मनुष्य नहीं, प्राकृतिक शक्तियाँ नहीं, बल्कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ही सब कुछ का स्वामी है।

प्रकृति के द्वारा हम उसके रचियेता के दर्शन कर सकते हैं, लेकिन हमें सृष्टि की नहीं सृष्टिकर्ता की पूजा-आराधना करनी है। हम सन्त पेत्रुस को देखते हैं जो हमेशा सबसे आगे रहता है, अपने विश्वास की घोषणा करने में, प्रभु येसु द्वारा कोई सवाल करने पर उसका जवाब देने में भी सबसे आगे रहता है। आज के सुसमाचार में वह प्रभु येसु की तरह पानी पर चलना चाहता है, लेकिन जब वह तूफ़ान और उमड़ती लहरों को देखता है तो उसका ध्यान प्रभु येसु से हटकर समुद्र और लहरों पर (सृष्टिकर्ता से हटकर सृष्टि की ओर) चला जाता है और वह डगमगा जाता है, और डूबने लगता है। आइए हम अपना विश्वास प्रभु में रखें और उसी से डरें। हमारा ध्यान सब कुछ के सृष्टिकर्ता और स्वामी पर हो ना कि उसकी बनायी हुई वस्तुओं पर। आइए हम प्रभु येसु को अपने जीवन का और हम जो कुछ भी करते हैं, उस सब का स्वामी बनायें और हमारे जीवन की सारी आँधी और तूफ़ान अपने आप थम जाएँगे। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today’s readings give a glimpse of the nature of God. In the first reading we see prophet Elijah encounters God not in strong heavy winds, or in earthquake or fire but in a tiny whispering sound. In the second reading St. Paul expresses his anguish for his brethren Israelites for having everything, being specially chosen people and yet they could not accept Christ, the master and God forever. The gospel gives us the glimpse of Jesus being the master of the sea and winds and Lord of not only humanity but even of the powerful natural forces.

There is very interesting story of St. Thomas, the apostle who was sent to India, when he reached a place called Palayur in Kerala. He saw some Brahmins doing Tarpanam (offering water to the sun god) in Talikulam. He asked them why their offering was not accepted by the sun god, because the water came down. But they said it is not possible, then St. Thomas took water and threw it up, and it remained up, like glittering drops. The Brahmins then believed in Almighty God, who controls whole creation, even sun, moon and earth. The place, the pond and church he established are still there in Kerala.

Man was created after the whole beautiful creation. He was placed amidst the creation to take care of the creation, but slowly he became ambitious and power crazy. He started to subdue the creation, control the nature and creatures. It continues even today, and because of that sometimes creation retorts and goes beyond man’s control. Man starts fearing the natural forces and even stars treating God’s creation like god, replacing the True God. Where he should fear God, he fears created things. It is God who controls everything; it is not man, it is not natural forces, it is God, the master of the universe.

Through the creation we can encounter the creator, but it is the creator whom we need to worship. We see Peter who was always forward and proclaiming his faith, and answering all questions before anybody else could. In the gospel today he happily wants to walk on water like Jesus, but when he looks at the fierce winds and waves, his focus changes from Jesus to the sea and waves (from creator to the creation), and he starts stumbling. Let us put our trust in God, fear Him alone. Let our focus be the creator and master of everything rather than his created things. Let us make Jesus as the master of our lives and everything that we do, and all storms and waves will be calmed down. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!