14) सियोन यह कह रही थी, “प्रभु ने मुझे छोड़ दिया है। प्रभु ने मुझे भुला दिया है।“
15) “क्या स्त्री अपना दुधमुँहा बच्चा भुला सकती है? क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा।
1) लोग हमें मसीह के सेवक और ईश्वर के रहस्यों के कारिन्दा समझे।
2) अब कारिन्दा से यह आशा की जाती है कि वह ईमानदार निकले।
3) मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं कि आप लोग अथवा मनुष्यों का कोई न्यायालय मुझे योग्य समझे। मैं स्वयं भी अपना न्याय नहीं करता।
4) मैं अपने में कोई दोष नहीं पाता, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि मैं निर्दोष हूँ। प्रभु ही मेरे न्यायकर्ता हैं।
5) इसलिए प्रभु के आने तक कोई किसी का न्याय नहीं करे। वह अन्धकार के रहस्य प्रकाश में लायेंगे और हृदयों के गुप्त अभिप्राय प्रकट करेंगे। उस समय हर एक को ईश्वर की ओर से यथायोग्य श्रेय दिया जायेगा।
24) "कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन - दोनों की सेवा नहीं कर सकते।
25) मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो- न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनें। क्या जीवन भोजन से बढ कर नहीं ? और क्या शरीर कपडे से बढ़ कर नहीं?
26) आकाश के पक्षियों को देखो। वे न तो बोते हैं, न लुनते हैं और न बखारों में जमा करते हैं। फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है, क्या तुम उन से बढ़ कर नहीं हो?
27) चिंता करने से तुम में से कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढा सकता है?
28) और कपडों की चिन्ता क्यों करते हो? खेत के फूलों को देखो। वे कैसे बढ़ते हैं! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं।
29) फिर भी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि सुलेमान अपने पूरे ठाट-बाट में उन में से एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था।
30) रे अल्पविश्वासियों! खेत की घास आज भर है और कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी। यदि उसे भी ईश्वर इस प्रकार सजाता है, तो वह तुम्हें क्यों नहीं पहनायेगा?
31) इसलिए यह कहते हुए चिंता मत करो- हम क्या खायें, क्या पियें, क्या पहनें।
32) इन सब चीजों की खोज में गैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की ज़रूरत है।
33) तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।
34) कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा। आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।