चक्र ’अ’ - पेन्तेकोस्त रविवार - जागरण



पहलापाठ - 1 : उत्पत्ति ग्रन्थ 11:1-9

1) समस्त पृथ्वी पर एक ही भाषा और एक ही बोली थी।

2) पूर्व में यात्रा करते समय लोग शिनआर देश के एक मैदान में पहुँचे और वहाँ बस गये।

3) उन्होंने एक दूसरे से कहा, ''आओ! हम ईटें बना कर आग में पकायें''। - वे पत्थर के लिए ईट और गारे के लिए डामर काम में लाते थे। -

4) फिर वे बोले, ''आओ! हम अपने लिए एक शहर बना लें और एक ऐसी मीनार, जिसका शिखर स्वर्ग तक पहुँचे। हम अपने लिए नाम कमा लें, जिससे हम सारी पृथ्वी पर बिखर न जायें।''

5) तब ईश्वर उतर कर वह शहर और वह मीनार देखने आया, जिन्हें मनुष्य बना रहे थे,

6) और उसने कहा, ''वे सब एक ही राष्ट्र हैं और एक ही भाषा बोलते हैं। यह तो उनके कार्यों का आरम्भ-मात्र है। आगे चल कर वे जो कुछ भी करना चाहेंगे, वह उनके लिए असम्भव नहीं होगा।

7) इसलिए हम उतर कर उनकी भाषा में ऐसी उलझन पैदा करें कि वे एक दूसरे को न समझ पायें।''

8) इस प्रकार ईश्वर ने उन्हें वहाँ से सारी पृथ्वी पर बिखेरा और उन्होंने अपने शहर का निर्माण अधूरा छोड़ दिया।

9) उस शहर का नाम बाबेल रखा गया, क्योंकि ईश्वर ने वहाँ पृथ्वी भर की भाषा में उलझन पैदा की और वहाँ से मनुष्यों को सारी पृथ्वी पर बिखेर दिया।

अथवा - पहला पाठ - 2 : निर्गमन ग्रन्थ 19:3-8,16-20

3) मूसा ईश्वर से मिलने के लिए पर्वत पर चढ़ा और ईश्वर ने वहाँ उससे कहा, ''तुम याकूब के घराने से यह कहोगे और इस्राएल के पुत्रों को यह बता दोगे-

4) तुम लोगों ने स्वयं देखा है कि मैंने मिस्र के साथ क्या-क्या किया और मैं किस तरह तुम लोगों को गरुड़ के पंखों पर बैठा कर यहाँ अपने पास ले आया।

5) यदि तुम मेरी बात मानोगे और मेरे विधान के अनुसार चलोगे, तो तुम सब राष्ट्रों में से मेरी अपनी प्रजा बन जाओगे; क्योंकि समस्त पृथ्वी मेरी है।

6) तुम मेरे लिए याजकों का राजवंश तथा पवित्र राष्ट्र बन जाओगे। यही सन्देश इस्राएल के पुत्रों को सुनाओ।''

7) मूसा ने लौट कर प्रजा के नेताओं को बुलाया और जो कुछ प्रभु ने उस से कहा था, वह सब उनके सामने प्रस्तुत किया।

8) सब लोगों ने एक स्वर से यह उत्तर दिया, ''ईश्वर जो कुछ कहता है, हम वह सब पूरा करेंगे।''

16) तीसरे दिन प्रातःकाल बादल गरजे, बिजली चमकी, पर्वत पर काले बादल छा गये और तुरही का प्रचण्ड निनाद सुनाई पड़ा-शिविर में सभी लोग काँपने लगे।

17) तब मूसा ईश्वर से भेंट करने के लिए लोगों को शिविर से बाहर ले गया और वे पहाड़ के नीचे खडे हो गये। सीनई पर्वत धुएँ से ढका हुआ था, क्योंकि ईश्वर अग्नि के रूप में उस पर उतरा था।

18) धुआँ भट्ठी के धुएँ की तरह ऊपर उठ रहा था और सारा पहाड़ जोर से काँप रहा था।

19) तुरही का निनाद बढ़ता जा रहा था। मूसा बोला और ईश्वर ने उसे मेघगर्जन में से उत्तर दिया।

20) ईश्वर सीनई पर्वत की चोटी पर उतरा और उसने मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर गया।

अथवा - पहला पाठ - 3 : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 37:1-14

1) प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा और प्रभु के आत्मा ने मुझे ले जा कर एक घाटी में उतार दिया, जो हड्डियों से भरी हुई थी।

2) उसने मुझे उनके बीच चारों ओर घुमाया। वे हाड्डियाँ बड़ी संख्या में घाटी के धरातल पर पड़ी हुई थीं और एकदम सूख गयी थीं।

3) उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! क्या इन हाड्डियों में फिर जीवन आ सकता है?" मैंने उत्तर दिया, "प्रभु-ईश्वर! तू ही जानता है"।

4) इस पर उसने मुझ से कहा, "इन हाड्डियों से भवियवाणी करो। इन से यह कहो, ’सूखी’ हड्डियो! प्रभु की वाणी सुनो।

5) प्रभु-ईश्वर इन हड्डियों से यह कहता है: मैं तुम में प्राण डालूँगा और तुम जीवित हो जाओगी।

6) मैं तुम पर स्नायुएँ लगाऊँगा तुम में मांस भरूँगा, तुम पर चमड़ा चढाऊँगा। तुम में प्राण डालूँगा, तुम जीवित हो जाओगी और तुम जानोगी कि मैं प्रभु हूँ।"

7) मैं उसके आदेश के अनुसार भवियवाणी करने लगा। मैं भवियवाणी कर ही रहा था कि एक खडखडाती आवाज सुनाई पडी और वे हाड्डिया एक दूसरी से जुडने लगीं।

8) मैं देख रहा था कि उन पर स्नायुएँ लगीं; उन में मांस भर गया, उन पर चमड़ा चढ गया, किंतु उन में प्राण नहीं थे।

9) उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! प्राणवायु को सम्बोधिक कर भवियवाणी करो। यह कह कर भवियवाणी करो: ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है। प्राणवायु! चारों दिशाओं में आओ और उन मृतकों में प्राण फूँक दो, जिससे उन में जीवन आ जाये।"

10) मैंने उसके आदेशानुसार भवियवाणी की और उन में प्राण आये। वे पुनर्जीवित हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो गयी- वह एक विशाल बहुसंख्यक सेना थी।

11) तब उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! ये हड्डियाँ समस्त इस्राएली हैं। वे कहते रहते हैं- ’हमारी हड्डियाँ सूख गयी हैं। हमारी आशा टूट गय है। हमारा सर्वनाश हो गया है।

12) तुम उन से कहोगे, ’प्रभु यह कहता है: मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।

13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया’।"

अथवा - पहला पाठ - 4 : योएल का ग्रन्थ 3:1-5

1){2:28} "इसके बाद मैं सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ भवियवाणी करेंगे, तुम्हारे बडे-बूढे स्वप्न दखेंगे और तुम तुम्हारे नवयुवकों को दिव्य दर्शन होंगे।

2){2:29} उन दिनों में मैं दास-दासियों पर भी अपना आत्मा उतारूँगा।

3){2:30} मैं आकाश में और पृथ्वी पर ये चिह्न प्रकट करूँगा- रक्त, अग्नि और धुएँ के खम्भे।

4){2:31} प्रभु के महान् तथा भयंकर दिन के आगमन के पहले सूर्य अंधकारमय और चन्द्रमा रक्तमय हो जायेगा।

5){2:32} जो प्रभु के नाम की दुहाई देंगे, वे बच जायेंगे। प्रभु-ईश्वर ने तो कहा है, ’सियोन पर्वत पर’ कुछ लोग बच जायेंगे’ और यूरूसालेम में प्रभु-ईश्वर के चुनिन्दे लोगों का उद्धार होगा।

दूसरा पाठ - 1 : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:22-27

22) हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।

23) हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।

24) हमारी मुक्ति अब तक आशा का ही विषय है। यदि कोई वह बात देखता है, जिसकी वह आशा करता है, तो यह आशा नहीं कही जा सकती।

25) हम उसकी आशा करते हैं, जिसे हम अब तक नहीं देख सके हैं। इसलिए हमें धैर्य के साथ उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

26) आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है।

27) ईश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझाता है कि आत्मा क्या कहता है, क्योंकि आत्मा ईश्वर के इच्छानुसार सन्तों के लिए विनती करता है।

सुसमाचार : सन्त योहन 7:37-39

37) पर्व के अन्तिम और मुख्य दिन ईसा उठ खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, "यदि कोई प्यासा हो, तो वह मेरे पास आये।

38) जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये।" जैसा कि धर्म-ग्रन्थ में लिखा है- उसके अन्तस्तल से संजीवन जल की नदियाँ बह निकलेंगी।

39) उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा। उस समय तक आत्मा प्रदान नहीं किया गया था, क्योंकि ईसा महिमान्वित नहीं हुए थे।


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