52:13) देखो! मेरा सेवक फलेगा-फूलेगा। वह महिमान्वित किया जायेगा और अत्यन्त महान् होगा।
14) उसकी आकृति इतनी विरूपित की गयी थी कि वह मनुष्य नही जान पड़ता था; लोग देख कर दंग रह गये थे।
15) उसकी ओर बहुत-से राष्ट्र आश्चर्यचकित हो कर देखेंगे और उसके सामने राजा मौन रहेंगे; क्योंकि उनके सामने एक अपूर्व दृश्य प्रकट होगा और जो बात कभी सुनने में नहीं आयी, वे उसे अपनी आँखों से देखेंगे।
53:1) किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया? प्रभु का सामर्थ्य किस पर प्रकट हुआ है?2) वह हमारे सामने एक छोटे-से पौधे की तरह, सूखी भूमि की जड़ की तरह बढ़ा। हमने उसे देखा था; उसमें न तो सुन्दरता थी, न तेज और न कोई आकर्षण ही।
3) वह मनुष्यों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत था, शोक का मारा और अत्यन्त दुःखी था। लोग जिन्हें देख कर मुँह फेर लेते हैं, उनकी तरह ही वह तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था।
4) परन्तु वह हमारे ही रोगों का अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे।
5) हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कूकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दण्ड वह भोगता था, उसके द्वारा हमें शान्ति मिली है और उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं।
6) हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सब के पापों का भार डाला है।
7) वह अपने पर किया हुआ अत्याचार धैर्य से सहता गया और चुप रहा। वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने की तरह और ऊन कतरने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुँह नहीं खोला।
8) वे उसे बन्दीगृह और अदालत ले गये; कोई उसकी परवाह नहीं करता था। वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया है और वह अपने लोगों के पापों के कारण मारा गया है।
9) यद्यपि उसने कोई अन्याय नहीं किया था और उसके मुँह से कभी छल-कपट की बात नहीं निकली थी, फिर भी उसकी कब्र विधर्मियों के बीच बनायी गयी और वह धनियों के साथ दफ़नाया गया है।
10) प्रभु ने चाहा कि वह दुःख से रौंदा जाये। उसने प्रायश्चित के रूप में अपना जीवन अर्पित किया; इसलिए उसका वंश बहुत दिनों तक बना रहेगा और उसके द्वारा प्रभु की इच्छा पूरी होगी।
11) उसे दुःखभोग के कारण ज्योति और पूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा। उसने दुःख सह कर जिन लोगों का अधर्म अपने ऊपर लिया था, वह उन्हें उनके पापों से मुक्त करेगा।
12) इसलिए मैं उसका भाग महान् लोगों के बीच बाँटूँगा और वह शक्तिशाली राजाओं के साथ लूट का माल बाँटेगा; क्योंकि उसने बहुतों के अपराध अपने ऊपर लेते हुए और पापियों के लिए प्रार्थना करते हुए अपने को बलि चढ़ा दिया और उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई।
4:14) हमारे अपने एक महान् प्रधानयाजक हैं, अर्थात् ईश्वर के पुत्र ईसा, जो आकाश पार कर चुके हैं। इसलिए हम अपने विश्वास में सुदृढ़ रहें।
15) हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।
16) इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।
5:5) इसी प्रकार, मसीह ने अपने को प्रधानयाजक का गौरव नहीं प्रदान किया। ईश्वर ने उन से कहा, - तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम्हें उत्पन्न किया है।
6) अन्यत्र भी वह कहता है- तुम मेलखिसेदेक की तरह सदा पुरोहित बने रहोगे।
7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।
8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।
9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
18:1) यह सब कहने के बाद ईसा अपने शिष्यों के साथ केद्रेान नाले के उस पार गये। वहाँ एक बारी थी। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ उस में प्रवेश किया।
2) उनके विश्वासघाती यूदस को भी वह जगह मालूम थी, क्योंकि ईसा अक्सर अपने शिष्यों के साथ वहाँ गये थे।
3) इसलिये यूदस पलटन और महायाजकों तथा फ़रीसियों के भेजे हुये प्यादों के साथ वहाँ आ पहुँचा। वे लोग लालटेनें मशालें और हथियार लिये थे।
4) ईसा, यह जान कर कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी आगे बढे और उन से बोले, "किसे ढूढतें हो?"
5) उन्होंने उत्तर दिया, "ईसा नाज़री को"। ईसा ने उन से कहा, "मैं वही हूँ"। वहाँ उनका विश्वासघाती यूदस भी उन लोगों के साथ खडा था।
6) जब ईसा ने उन से कहा, ’मैं वही हूँ’ तो वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पडे।
7) ईसा ने उन से फि़र पूछा, "किसे ढूढते हो?" वे बोले, "ईसा नाजरी को"।
8) इस पर ईसा ने कहा, "मैं तुम लोगों से कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। यदि तुम मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।"
9) यह इसलिये हुआ कि उनका यह कथन पूरा हो जाये- तूने मुझ को जिन्हें सौंपा, मैंने उन में से एक का भी सर्वनाश नहीं होने दिया।
10) उस समय सिमोन पेत्रुस ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चलाकर उसका दाहिना कान उडा दिया। उस नौकर का नाम मलखुस था।
11) ईसा ने पेत्रुस से कहा, "तलवार म्यान में कर लो। जो प्याला पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे नहीं पिऊँ?"
12) तब पलटन, कप्तान और यहूदियों के प्यादों ने ईसा को पकड कर बाँध लिया।
13) वे उन्हें पहले अन्नस के यहाँ ले गये; क्योंकि वह उस वर्ष के प्रधानयाजक कैफस का ससुर था।
14) यह वही कैफस था जिसने यहूदियों को यह परामर्श दिया था- अच्छा यही है कि राष्ट्र के लिये एक ही मनुष्य मरे।
15) सिमोन पेत्रुस और एक दूसरा शिष्य ईसा के पीछे-पीछे चले। यह शिष्य प्रधानयाजक का परिचित था और ईसा के साथ प्रधानयाजक के प्रांगण में गया,
16) किन्तु पेत्रुस फाटक के पास बाहर खडा रहा। इसलिये वह दूसरा शिष्य जो प्रधानयाजक का परिचित था, फि़र बाहर गया और द्वारपाली से कहकर पेत्रुस को भीतर ले आया।
17) द्वारपाली ने पेत्रुस से कहा, "कहीं तुम भी तो उस मनुष्य के शिष्य नहीं हो?" उसने उत्तर दिया, "नहीं हूँ"।
18) जाड़े के कारण नौकर और प्यादे आग सुलगा कर ताप रहे थे। पेत्रुस भी उनके साथ आग तापता रहा।
19) प्रधानयाजक ने ईसा से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षा के विषय में पूछा।
20) ईसा ने उत्तर दिया, "मैं संसार के सामने प्रकट रूप से बोला हूँ। मैंने सदा सभागृह और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी एकत्र हुआ करते हैं, शिक्षा दी है। मैंने गुप्त रूप से कुछ नहीं कहा।
21) यह आप मुझ से क्यों पूछते हैं? उन से पूछिये जिन्होंने मेरी शिक्षा सुनी है। वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा।"
22) इस पर पास खडे प्यादों में से एक ने ईसा को थप्पड मार कर कहा, “तुम प्रधानयाजक को इस तरह जवाब देते हो?“
23) ईसा ने उस से कहा, "यदि मैंने गलत कहा, तो गलती बता दो और यदि ठीक कहा तो, मुझे क्यों मारते हो?"
24) इसके बाद अन्नस ने बाँधें हुये ईसा को प्रधानयाजक कैफस के पास भेजा।
25) सिमोन पेत्रुस उस समय आग ताप रहा था। कुछ लोगों ने उस से कहा, "कहीं तुम भी तो उसके शिष्य नहीं हो?" उसने अस्वीकार करते हुये कहा, "नहीं हूँ"।
26) प्रधानयाजक का एक नौकर उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका कान पेत्रुस ने उडा दिया था। उसने कहा, "क्या मैंने तुम को उसके साथ बारी में नहीं देखा था?
27) पेत्रुस ने फिर अस्वीकार किया और उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी।
28) तब वे ईसा को कैफस के यहाँ से राज्य पाल के भवन ले गये। अब भोर हो गया था। वे भवन के अन्दर इसलिये नहीं गये कि अशुद्व न हो जायें, बल्कि पास्का का मेमना खा सकें।
29) पिलातुस बाहर आकर उन से मिला और बोला, "आप लोग इस मनुष्य पर कौन सा अभियोग लगाते हैं?"
30) उन्होने उत्तर दिया, "यदि यह कुकर्मी नहीं होता, तो हमने इसे आपके हवाले नहीं किया होता"।
31) पिलातुस ने उन से कहा, "आप लोग इसे ले जाइए और अपनी संहिता के अनुसार इसका न्याय कीजिये।" यहूदियों ने उत्तर दिया, "हमें किसी को प्राणदंण्ड देने का अधिकार नहीं है"।
32) यह इसलिये हुआ कि ईसा का वह कथन पूरा हो जाये, जिसके द्वारा उन्होने संकेत किया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी।
33) तब पिलातुस ने फिर भवन में जा कर ईसा को बुला भेजा और उन से कहा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?"
34) ईसा ने उत्तर दिया, "क्या आप यह अपनी ओर से कहते हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?"
35) पिलातुस ने कहा, "क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे ही लोगों और महायाजकों ने तुम्हें मेरे हवाले किया। तुमने क्या किया है।"
36) ईसा ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।"
37) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, "तो तुम राजा हो?" ईसा ने उत्तर दिया, "आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिये जन्मा और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य पेश कर सकूँ। जो सत्य के पक्ष में है, वह मेरी सुनता है।"
38) पिलातुस ने उन से कहा, "सत्य क्या है?" वह यह कहकर फिर बाहर गया और यहूदियों के पास आ कर बोला, "मैं तो उस में कोई दोष नहीं पाता हूँ,
39) लेकिन तुम्हारे लिये पास्का के अवसर पर एक बन्दी को रिहा करने का रिवाज है। क्या तुम लोग चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?"
40) इस पर वे चिल्ला उठे, "इसे नहीं, बराब्बस को"। बराब्बस डाकू था।
19:1) तब पिलातुस ने ईसा को ले जा कर कोडे लगाने का आदेश दिया।
2) सैनिकेां ने काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रख दिया और उन्हें बैंगनी कपडा पहनाया।
3) फिर वे उनके पास आ-आ कर कहते थे, "यहूदियों के राजा प्रणाम!" और वे उन्हें थप्पड मारते जाते थे।
4) पिलातुस ने फिर बाहर जा कर लोगों से कहा, "देखो मैं उसे तुम लोगों के सामने बाहर ले आता हूँ, जिससे तुम यह जान लो कि मैं उस में कोई दोष नहीं पाता"।
5) तब ईसा काँटों का मुकुट और बैगनी कपडा पहने बाहर आये। पिलातुस ने लोगों से कहा, "यही है वह मनुष्य!"
6) महायाजक और प्यादे उन्हें देखते ही चिल्ला उठे, "इसे क्रूस दीजिये! इसे क्रूस दीजिये!" पिलातुस ने उन से कहा, "इसे तुम्हीं ले जाओ और क्रूस पर चढाओ। मैं तो इस में कोई दोष नहीं पाता।"
7) यहूदियों ने उत्तर दिया, "हमारी एक संहिता है और उस संहिता के अनुसार यह प्राणदंण्ड के योग्य है, क्योंकि इसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया है।"
8) पिलातुस यह सुनकर और भी डर गया।
9) उसने फिर भवन के अन्दर जा कर ईसा से पूछा, "तुम कहाँ के हो?" किन्तु ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया।
10) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, "तुम मुझ से क्यों नहीं बोलते? क्या तुम यह नहीं जानते कि मुझे तुम को रिहा करने का भी अधिकार है और तुम को क्रूस पर चढ़वाने का भी?
11) ईसा ने उत्तर दिया, "यदि आप को ऊपर से अधिकार न दिया गया होता तो आपका मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये जिसने मुझे आपके हवाले किया, वह अधिक दोषी है।"
12) इसके बाद पिलातुस ईसा को मुक्त करने का उपाय ढूँढ़ता रहा, परन्तु यहूदी यह कहते हुये चिल्लाते रहे, "यदि आप इसे रिहा करते हैं, तो आप कैसर के हितेषी नहीं हैं। जो अपने को राजा कहता है वह कैसर का विरोध करता है।"
13) यह सुनकर पिलातुस ने ईसा को बाहर ले आने का आदेश दिया। वह अपने न्यायासन पर उस जगह, जो लिथोस-त्रोतोस, और इब्रानी में गबूबथा, कहलाती है, बैठ गया।
14) पास्का की तैयारी का दिन था। लगभग दोपहर का समय था। पिलातुस ने यहूदियों से कहा, "यही ही तुम्हारा राजा!"
15) इस पर वे चिल्ला उठे, "ले जाइये! ले जाइए! इसे क्रूस दीजिये!" पिलातुस ने उन से कहा क्या, "मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढवा दूँ?" महायाजकों ने उत्तर दिया, "कैसर के सिवा हमारा कोई राजा नहीं"।
16) तब पिलातुस ने ईसा को कू्रस पर चढाने के लिये उनके हवाले कर दिया।
17) वे ईसा को ले गये और वह अपना कू्रस ढोते हुये खोपडी की जगह नामक स्थान गये। इब्रानी में उसका नाम गोलगोथा है।
18) वहाँ उन्होंने ईसा को और उनके साथ और दो व्यक्तियों को कू्रस पर चढाया- एक को इस ओर, दूसरे को उस ओर और बीच में ईसा को।
19) पिलातुस ने एक दोषपत्र भी लिखवा कर क्रूस पर लगवा दिया। वह इस प्रकार था- "ईसा नाज़री यहूदियों का राजा।"
20) बहुत-से यहूदियों ने यह दोषपत्र पढा क्योंकि वह स्थान जहाँ ईसा कू्स पर चढाये गय थे, शहर के पास ही था और दोष पत्र इब्रानी, लातीनी और यूनानी भाषा में लिखा हुआ था।
21) इसलिये यहूदियों के महायाजकों ने पिलातुस से कहा, "आप यह नहीं लिखिये- यहूदियों का राजा; बल्कि- इसने कहा कि मैं यहूदियों का राजा हूँ"।
22) पिलातुस ने उत्तर दिया, "मैंने जो लिख दिया, सो लिख दिया।"
23) ईसा को कू्रस पर चढाने के बाद सैनिकों ने उनके कपडे ले लिये और कुरते के सिवा उन कपडों के चार भाग कर दिये- हर सैनिक के लिये एक-एक भाग। उस कुरते में सीवन नहीं था, वह ऊपर से नीचे तक पूरा-का-पूरा बुना हुआ था।
24) उन्होंने आपस में कहा, "हम इसे नहीं फाडें। चिट्ठी डालकर देख लें कि यह किसे मिलता है। यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उन्होंने मेरे कपडे आपस में बाँट लिये और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली। सैनिकेां ने ऐसा ही किया।
25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।
26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, "भद्रे! यह आपका पुत्र है"।
27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, "यह तुम्हारी माता है"। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।
28) तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, "मैं प्यासा हूँ"।
29) वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।
30) ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, "सब पूरा हो चुका है"। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।
31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।
32) इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।
33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;
34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।
35) जिसने यह देखा है, वही इसका साक्ष्य देता है, और उसका साक्ष्य सच्चा है। वह जानता है कि वह सच बोलता है, जिससे आप लोग भी विश्वास करें।
36) यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उसकी एक भी हड्डी नहीं तोडी जायेगी;
37) फिर धर्मग्रन्थ का एक दूसरा कथन इस प्रकार है- उन्होंने जिसे छेदा, वे उसी की ओर देखेगें।
38) इसके बाद अरिमथिया के यूसुफ ने जो यहूदियों के भय के कारण ईसा का गुप्त शिष्य था, पिलातुस से ईसा का शब ले जाने की अनुमति माँगी। पिलातुस ने अनुमति दे दी। इसलिये यूसुफ आ कर ईसा का शव ले गया।
39) निकोदेमुस भी पहुँचा, जो पहले रात को ईसा से मिलने आया था। वह लगभग पचास सेर का गंधरस और अगरू का सम्मिश्रण लाया।
40) उन्होंने ईसा का शव लिया और यहूदियों की दफन की प्रथा के अनुसार उसे सुगंधित द्रव्यों के साथ छालटी की पट्टियों में लपेटा।
41) जहाँ ईसा कू्रस पर चढाये गये थे, वहाँ एक बारी थी और उस बारी में एक नयी कब्र, जिस में अब तक कोई नहीं रखा गया था।
42) उन्होंने ईसा को वहीं रख दिया, क्योंकि वह यहूदियों के लिये तेयारी का दिन था और वह कब्र निकट ही थी।
अगर हम अपने आप से पूछे कि इस संसार में किसकी मृत्यु बहुत ही अप्रत्याशित, दुखद, अनुपयुक्त और अन्यायपूर्ण थी? हम में से सभी का जवाब होगा येसु की मृत्यु। संसार भर कम से कम सभी का यह तो मानना है कि येसु एक धर्मी व्यक्ति था, एक सच्चा और अच्छा व्यक्ति था, जिसने हमेशा लोगो के लिए अच्छा किया, सभी से प्रेम किया। येसु के बारे में कम से कम किसी के अंदर बुरी धारणा तो नहीं होगी।
इस संसार में आकर येसु ने अपने शिक्षा, चमत्कारों और अपने जीवन के द्वारासभी के लिए अच्छा किया, परन्तु इसके बदले उन्हें कू्रस का दुःख, चालीस कोड़ो का दर्द, लोगों की यातना और तिरस्कार सहते हुए कू्रस पर निर्वस्त्र एक अपराधी के रूप में मरना पड़ा। आज का दिन सम्पूर्ण कलीसिया पूण्य शुक्रवार के रूप में मनाती है, वह दिन जब येसु अपने कंधों पर शरी कू्रस उठाकर कलवारी तक जाते है और कू्रस पर मर जाते है।
येसु का क्रूस मरण शिष्यों के लिए एक दर्दभरा अनुभव था। येसु का इस प्रकार की मृत्यु से वे टूट गयें, भिखर गये, हैरान और स्तब्ध रह गये थे। उन्होनें कभी नहीं सोचा था कि वह व्यक्ति जो उनके लिए रब्बी और मसीहा उसकी मृत्यु इस प्रकार होगी, एक अपराधी के समान।
जब हम प्रभु येसु की मृत्यु पर मनन करते हैं तब हमें अपनी जीवन स्थिति के बारे में आभास होता है कि किस प्रकार हमारा जीवन कितनी कमजोरियॉं भरा और पापमय है फिर भी आरामदायक जीवन जी रहें है। परंतु जिसने सबकुछ अच्छा किया उसको दर्दभरा मृत्यु मिला। सवाल यह उठता है कि क्यो एक भले व्यक्ति या प्रभु को इतना दर्दभरा मृत्यु सहना पड़ा। इसका उत्तर हम सब हैं। येसु हमारे लिए इस प्रकार मरा। जिस कू्रस पर हमें लटकना था येसु अपने ऊपर लेकरा हमारे पापों का बदला अपने खून से चुका देते है। 1 पेत्रुस 2:24 मे हम पढ़ते हैं, ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को कू्रस के काठ पर ले गये जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें’’, इब्रा. 13:12 में हम पाते हैं, ‘‘ईसा ने फाटक के बाहर दुःख भोगा, जससे वे अपने रक्त द्वारा जनता को पवित्र करें।’’ प्रका. 1ः5 में हम पढ़ते हैं, ‘‘उन्होने अपने रक्त से हमें पापों से मुक्त किया।’’ ये वचन हमें बताते हैं कि येसु के लहु बहाने के द्वारा हमें जो सजा हमारे पापों के लिए मिलने वाली थी उससे हम मुक्त हो गये और पवित्र हो गये हैं।
आज का दिन हमारे लिए पुण्य दिन हैं क्योकि आज के ही दिन हमको मिलने वाली सजा से मुक्त हो गये।
आज हम विशेष रूप से येसु के उस दर्दभरी यात्रा पर मनन करते है जो उन्होने कू्रस उठा कर कलवारी तक की। इस दौरान हम अपने पापो को याद तथा उन पर पश्चाताप करते हुए येसु के बलिदान के लिए धन्यवाद करते है।
हमें येसु के बलिदान को हमेशा याद रखना चाहिए जिससे हम पापों से दूर रहते हुए येसु से प्राप्त कृपा को बनाये रख सकें। प्रभु का दुखभोग एवं मृत्यु हमें विनम्र बनायें। आमेन!
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
If we ask ourselves that in this world whose death was the most unexpected, tragic, undeserved and unjust one? The most probable answer for us would be the death of Jesus. In this world at least Everyone have the opinion about Jesus that he was the righteous person, a good and noble person who did always good for others and loved everyone. No one would say that He was a bad person.
He was a person who came in this world did all the good for everyone through his teachings, miracles, and his very life. But He had to die naked like a criminal on the cross bearing all the pains of cross, pains of 40 lashes, torments and rejection by the crowd. Today the whole church celebrates the day as Good Friday, the day when Jesus bore cross on his shoulder till Calvary and was crucified and died.
Jesus’ death on the cross was the painful experience for the disciples, they were shattered, scattered, shocked and stunned by the death of Jesus like this. They never thought that a person who was their Rabbi and Messiah has to die like this as a criminal.
When we medidate on the death of Jesus, we come to the realization of our situation that instead of our life is full of weaknesses and sinful then also we are in comfortable state; but one who did all good has to die a painful death. Question arises why a good person or God has to die such a painful death. We are the answer for it. He died for each one of us. The cross in which we have to die Jesus took on himself to pay for our sins with his blood. We read in 1Pet 2:24, “He himself bore our sins in his body on the cross, so that, free from sins, we might live for righteousness”, Heb. 13:12 says, “Therefore Jesus also suffered outside the city in order to sanctify the people by his own blood.”, In Rev.1:5 we read, “freed us from our sins by his blood”. These words tell us because of the bloodshed of Jesus what punishment we were supposed to acquire has been cancelled and we became free and holy. Today is the holy day for us because today we attained freedom from the punishment of our sins.
Today in very special way we meditate on the painful journey of Jesus which he went through by carrying the cross till Calvary. Meanwhile we thank Jesus for his sacrifice by meditating on our sins and repenting for them.
We need to always remember the sacrifice of Jesus so that we may remain in the grace received by Jesus by staying away from sins. May the passion and death of Jesus humble us in our life. Amen
✍ -Fr. Dennis Tigga