चक्र ’अ’ -पुण्य गुरुवार



पहला पाठ : निर्गमन 12:1-8,,11-14

1) प्रभु ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा,

2) ''यह तुम्हारे लिए आदिमास होगा; तुम इसे वर्ष का पहला महीना मान लो।

3) इस्राएल के सारे समुदाय को यह आदेश दो - इस महीने के दसवें दिन हर एक परिवार एक एक मेमना तैयार रखेगा।

4) यदि मेमना खाने के लिए किसी परिवार में कम लोग हों, तो जरूरत के अनुसार पास वाले घर से लोगों को बुलाओ। खाने वालों की संख्या निश्चित करने में हर एक की खाने की रुचि का ध्यान रखो।

5) उस मेमने में कोई दोश न हो। वह नर हो और एक साल का। वह भेड़ा हो अथवा बकरा।

6) महीने के दसवें दिन तक उसे रख लो। शाम को सब इस्राएली उसका वध करेंगे।

7) जिन घरों में मेमना खाया जायेगा, दरवाजों की चौखट पर उसका लोहू पोत दिया जाये।

8) उसी रात बेखमीर रोटी और कड़वे साग के साथ मेमने का भूना हुआ मांस खाया जायेगा।

11) तुम लोग चप्पल पहन कर, कमर कस कर तथा हाथ में डण्डा लिये खाओगे। तुम जल्दी-जल्दी खाओगे, क्योंकि यह प्रभु का पास्का है।

12) उसी रात मैं, प्रभु मिस्र देश का परिभ्रमण करूँगा, मिस्र देश में मनुष्यों और पशुओं के सभी पहलौठे बच्चों को मार डालूँगा और मिस्र के सभी देवताओं को भी दण्ड दूँगा।

13) तुम लोहू पोत कर दिखा दोगे कि तुम किन घरों में रहते हो। वह लोहू देख कर मैं तुम लोगों को छोड़ दूँगा, इस तरह जब मैं मिस्र देश को दण्ड दूँगा, तुम विपत्ति से बच जाओगे।

14) तुम उस दिन का स्मरण रखोगे और उसे प्रभु के आदर में पर्व के रूप में मनाओगे। तुम उसे सभी पीढ़ियों के लिए अनन्त काल तक पर्व घोषित करोगे।

दूसरा पाठ : 1 कुरिन्थियों 11:23-26

23) मैंने प्रभु से सुना और आप लोगों को भी यही बताया कि जिस रात प्रभु ईसा पकड़वाये गये, उन्होंने रोटी ले कर

24) धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे तोड़ कर कहा-यह मेरा शरीर है, यह तुम्हारे लिए है। यह मेरी स्मृति में किया करो।

25) इसी प्रकार, ब्यारी के बाद उन्होंने प्याला ले कर कहा- यह प्याला मेरे रक्त का नूतन विधान है। जब-जब तुम उस में से पियो, तो यह मेरी स्मृति में किया करो।

26) इस प्रकार जब-जब आप लोग यह रोटी खाते और वह प्याला पीते हैं, तो प्रभु के आने तक उनकी मृत्यु की घोषणा करते हैं।

सुसमाचार : सन्त योहन 13:1-15

1) पास्का पर्व का पूर्व दिन था। ईसा जानते थे कि मेरी घडी आ गयी है और मुझे यह संसार छोडकर पिता के पास जाना है। वे अपनों को, जो इस संसार में थे, प्यार करते आये थे और अब अपने प्रेम का सब से बडा प्रमाण देने वाले थे।

2) शैतान व्यारी के समय तक सिमोन इसकारियोती के पुत्र यूदस के मन में ईसा को पकडवाने का विचार उत्पन्न कर चुका था।

3) ईसा जानते थे कि पिता ने मेरे हाथों में सब कुछ दे दिया है, मैं ईश्वर के यहाँ से आया हूँ और ईश्वर के पास जा रहा हूँ।

4) उन्होनें भोजन पर से उठकर अपने कपडे उतारे और कमर में अंगोछा बाँध लिया।

5) तब वे परात में पानी भरकर अपने शिष्यों के पैर धोने और कमर में बँधें अँगोछे से उन्हें पोछने लगे।

6) जब वे सिमोन पेत्रुस के पास पहुचे तो पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु! आप मेंरे पैर धोते हैं?"

7) ईसा ने उत्तर दिया, "तुम अभी नहीं समझते कि मैं क्या कर रहा हूँ। बाद में समझोगे।"

8) पेत्रुस ने कहा, "मैं आप को अपने पैर कभी नहीं धोने दूँगा"। ईसा ने उस से कहा, "यदि मैं तुम्हारे पैर नहीं धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जायेगा।

9) इस पर सिमोन पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु! तो मेरे पैर ही नहीं, मेरे हाथ और सिर भी धोइए"।

10) ईसा ने उत्तर दिया, "जो स्नान कर चुका है, उसे पैर के सिवा और कुछ धोने की ज़रूरत नहीं। वह पूर्ण रूप से शुद्व है। तुम लोग शुद्ध हो, किन्तु सब के सब नहीं।"

11) वे जानते थे कि कौन मेरे साथ विश्वास घात करेगा। इसलिये उन्होने कहा- तुम सब के सब शुद्ध नहीं हो।

12) उनके पैर धोने के बाद वे अपने कपडे पहनकर फिर बैठ गये और उन से बोले, "क्या तुम लोग समझते हो कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है?

13) तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ।

14) इसलिये यदि मैं- तुम्हारे प्रभु और गुरु- ने तुम्हारे पैर धोये है तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये।

15) मैंने तुम्हें उदाहरण दिया है, जिससे जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया वैसा ही तुम भी किया करो।

📚 मनन-चिंतन

आज का दिन उस दिन का स्मरण दिन है जब येसु ने कू्रस मरण से पूर्व अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोजन किया था। आज का दिन संसार भर में पुण्य गुरुवार के रूप में बनाया जाता है। आज के दिन दो महत्वपूर्ण वृत्तांत हुई थी। पहला वृत्तांत शिष्यों के पैर धोने के द्वारा स्वामित्व की नयी परिभाषा और दूसरा पवित्र यूख्रीस्त की स्थापना और इन दोनो के वृतांतो के द्वारा पुराहिताई की स्थापना।

इस सांसारिक शरीर को छोड़ने से पूर्व, येसु चाहते थे कि वे मानवता के लिए एक ठोस और गहन चीज देकर जाये। स्वामित्व या नेतृत्व के विषय में उनकी शिक्षा पूरे मिशन कार्यों में हमेशा से ही सेवकाई या सेवा भरी नेतृत्व रही है। वे मत्ती 29:26 में कहते है ‘‘तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगो में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने।’’ यह शिक्षा उन्होने स्वयं गुरु होते हुए भी अपने शिषयों के पैर धोते हुए करके दिखाया। वह हमें शिक्षा देते है कि उनका मिशन कार्य विनम्रता भरा मिशन कार्य है और हमें यह भी शिक्षा देते है कि जिस प्रकार मैने तुम्हारे साथ किया वैसे दूसरों के साथ करों। वे हमें सिखाते है कि हम अपने सभी कार्य विनम्रता भरे दिल से करें न की घमण्ड और अंहकार से भरकर।

दूसरा ठोस चीज़ जो उन्होनें हमें दिया हैं वह है यूख्रीस्त, जब उन्होने रोटी तथा उसके पश्चात् दाखरस लिया, उन्होने यह नहीं कहा कि यह मेरे शरीर के समान है या ये मेरे रक्त के समान है, परन्तु उन्होने कहा, ‘‘यह मेरा शरीर है,’’ उसके पश्चात् ‘‘यह मेरा रक्त है’’। वे हमारे लिए अपनी दिव्य उपस्थिति को देकर गये। उन्हे ज्ञात था कि वे हमारे साथ ज्यादा समय तक अपने जिस्मानी शरीर में उपस्थित नहीं रह पायेंगे इसलिए उन्होनें पवित्र यूख्रीस्त में अपनी अमिट उपस्थिति को हमारे लिए छोड़ कर गये।

इन दोनो वृतांतों के बाद येसु अपने शिष्यों से कहते है इसी प्रकार किया करों। पैर धोने के पश्चात् वे कहते है, ‘‘मैंने तुम्हे उदाहरण दिया है, जिससे मैंने तुम्हारे साथ किया वैसा ही तुम भी किया करो‘’ और पवित्र यूख्रीस्त की स्थापना के बाद वे कहते है, ‘‘तुम मेरी स्मृति में यह किया करों।’’ ये घटनाओं एवं कथनों के द्वारा पुरोहिताई की स्थापना होती हैं। जिसके बाद से आज तक पवित्र यूख्रीस्त का समारोह मनाया जाता है। काथलिक कलीसिया में पुरोहित के अगुवाई द्वारा प्रत्येक मिस्सा के भाग में उस अंतिम भोज को मनाया जाता है।

ये दोनो वृतांत इस संसार में विश्वासियों के लिए बल और साहस का स्रोत हैं। प्रत्येक यूख्रीस्तीय समारोह हमें येसु के उपस्थिति से भर देता है। आईये हम हर एक यूख्रीस्तीय समारोह को भक्ति और आदर के साथ मनायें क्योंकि यूख्रीस्त में येसु हमारे साथ रहते है। यूख्रीस्त में प्रभु को सम्पूर्ण आदर और महिमा मिलें। आमेन

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

This day is remembered as the day when Jesus had the last supper or last meal with his disciples before his death on the cross. This day is celebrated as Maundy Thursday. On this day two important events have taken place. First is the new teaching of leadership by washing the feet of the disciples and second is the institution of the Holy Eucharist and both this event leads to the institution of the priesthood.

Before leaving the physical body, Jesus wanted to give very deep and tangible thing to the humanity. His teaching about the leadership is always a servant leadership throughout his ministry. He says in Mt 20:26 “It will not be so among you; but whoever wishes to be great among you must be your servant.” This was demonstrated by Jesus being the teacher himself washes the feet of the disciples. He teaches us that his ministry is the ministry with humility and teaches us that what I have done to you, you should do to others. He teaches us to do his ministry with humility of heart, not with pride and ego.

Another tangible thing what he gave us is the Eucharist, When he took the bread and later wine, He did not said this is like my body or this is like my blood, but He said “This is my body” and later “This is my blood”. He left behind him the divine presence for us. He knew that He will no longer be present physically with us so He left for us his physical presence in the Holy Eucharist.

After both the events He says to his disciples do likewise. After washing of the feet He said “For I have set you an example that you also should do as I have done to you,” and after the institution of Holy Eucharist He said “do this in memory of me.” This led to the institution of the priesthood. Where after holy Eucharist is celebrated till date. The Last Supper is celebrated daily in the Catholic Church as part of every Mass presided by a Priest.

These two incidents, is the source of strength and courage in this world. Let us celebrate each Eucharist with devotion and reverence because Jesus is with us in the Eucharist. Let all the honour and praise be to God in the holy Eucharist.

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!