चक्र ’अ’ -चालीसा काल का पाँचवाँ इतवार



📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल 37:12-14

12) तुम उन से कहोगे, ’प्रभु यह कहता है: मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।

13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया’।"

📕 दूसरा पाठ : रोमियों 8:8-11

8) जो लोग शरीर की वासनाओं से संचालित हैं, उन पर ईश्वर प्रसन्न नहीं होता।

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

10) यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्वरूप शरीर भले ही मर जाये, किन्तु पापमुक्ति के फलस्वरूप आत्मा को जीवन प्राप्त है।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।

📙 सुसमाचार : योहन 11:1-45 अथवा 11:3-7,17,20-27, 33-45

1) बेथानिया का निवासी लाज़रुस नामक व्यक्ति बीमार पड गया।

2) वेथानिया मरियम और उसकी बहन मरथा का गाँव था। यह वही मरियम थी, जिसने इत्र से प्रभु का विलेपन किया और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। उसका भाई लाज़रुस बीमार था।

3) इसलिये बहनों ने ईसा को कहला भेजा, प्रभु! देखिये, जिसे आप प्यार करते हैं, वह बीमार है।

4) ईसा ने यह सुनकर कहा, "यह बीमारी मृत्यु के लिये नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा के लिये आयी है। इसके द्वारा ईश्वर का पुत्र महिमान्वित होगा।"

5) ईसा मरथा, उसकी बहन मरियम और लाज़रुस को प्यार करते थे।

6) यह सुनकर कि लाज़रुस बीमार है, वे जहाँ थे, वहाँ और दो दिन रह गये।

7) किन्तु इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "आओ! हम फिर यहूदिया चलें"।

8) शिष्य बोले, "गुरुवर! कुछ ही दिन पहले तो यहूदी लोग आप को पत्थरों से मार डालना चाहते थे और आप फिर वहीं जा रहे हैं।"

9) ईसा ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घण्टें नहीं होते? जो दिन में चलता है, वह ठोकर नहीं खाता, क्योंकि वह इस दुनिया का प्रकाश देखता है।

10) परन्तु जो रात में चलता है, वह ठोकर खाता है, क्योंकि उसे प्रकाश नहीं मिलता।"

11) इतना कहने के बाद वे फिर उन से बोले, "हमारा मित्र लाज़रुस सो रहा है। मैं उसे जगाने जा रहा हूँ।"

12) शिष्यों ने कहा, "प्रभु! यदि वह सो रहा है तो अच्छा हो जायेगा।"

13) ईसा ने यह उसकी मृत्यु के विषय में कहा था, लेकिन उनके शिष्यों ने समझा कि वह नींद के विश्राम के विषय में कह रहे हैं।

14) इसलिये ईसा ने उन से स्पष्ट शब्दों में कहा, "लाजरुस मर गया है।

15) मैं तुम्हारे कारण प्रसन्न हूँ कि मैं वहाँ नहीं था, जिससे तुम लोग विश्वास कर सको। आओ, हम उसके पास चलें।"

16) इस पर थोमस ने, जो यमल कहलाता था, अपने सहशिष्यों से कहा, "हम भी चलें और इनके साथ मर जायें।"

17) वहाँ पहुँचने पर ईसा को पता चला कि लाजरुस चार दिनों से कब्र में है।

18) बेथानिया येरूसालेम से दो मील से भी कम दूर था,

19) इसलिये भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिये बहुत से यहूदी मरथा और मरियम से मिलने आये थे।

20) ज्यों ही मरथा ने यह सुना कि ईसा आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। मरियम घर में ही बैठी रहीं।

21) मरथा ने ईसा से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता

22) और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा।“

23) ईसा ने उसी से कहा “तुम्हारा भाई जी उठेगा“।

24) मरथा ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अंतिम दिन के पुनरुथान के समय जी उठेगा“।

25) ईसा ने कहा, "पुनरुथान और जीवन में हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा

26) और जो मुझ में विश्वास करते हुये जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?"

27) उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु! मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।"

28) वह यह कह कर चली गयी और अपनी बहन मरियम को बुला कर उसने चुपके से उस से कहा, "गुरुवर आ गये हैं, तुम को बुलाते हैं।"

29) यह सुनते ही वह उठ खडी हुई और ईसा से मिलने गयी।

30) ईसा अब तक गाँव नहीं पहुँचें थे। वह उसी स्थान पर थे, जहाँ मरथा उन से मिली थी।

31) जो यहूदी लोग संवेदना प्रकट करने के लिये मरियम के साथ घर में थे, वे यह देख कर कि वह अचानक उठकर बाहर चली गयी उसके पीछे हो लिये क्योंकि वे समझते थे कि वह कब्र पर रोने जा रही है।

32) मरियम उस जगह पहुँची, जहाँ ईसा थे। उन्हें देखते ही वह उनके चरणेां पर गिर पडी और बोली, "प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।"

33) ईसा उसे और उसके साथ आये हुये यहूदियों को रोते देखकर, बहुत व्याकुल हो उठे और आह भर कर

34) बोले तुम लोगों ने उसे कहाँ रखा हैं? उन्होनें कहा, "प्रभु! आइये और देखिये।"

35) ईसा रो पडे।

36) इस पर यहूदियों ने कहा, "देखो! वे उसे कितना प्यार करते थे";

37) किन्तु कुछ लोगो ने कहा, "इन्होंने तो अन्धे को आँखें दी। क्या वे उस को मृत्यु से नही बचा सकते थे।"

38) कब्र के पास पहुँचने पर ईसा फिर बहुत व्याकुल हो उठे। वह कब्र एक गुफा थी जिसके मुँह पर एक बडा पत्थर रखा हुआ था।

39) ईसा ने कहा, पत्थर हटा दो। मृतक की बहन मरथा ने उन से कहा, "प्रभु! अब तो दुर्गन्ध आती होगी। आज चैथा दिन है।"

40) ईसा ने उसे उत्तर दिया, "क्या मैंने तुम से यह नहीं कहा कि यदि तुम विश्वास करोगी तो ईश्वर की महिमा देखोगी?"

41) इस पर लोगों ने पत्थर हटा दिया। ईसा ने आँखें उपर उठाकर कहा, "पिता! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ; तूने मेरी सुन ली है।

42) मैं जानता था कि तू सदा मेरी सुनता है। मैंने आसपास खडे लोगो के कारण ही ऐसा कहा, जिससे वे विश्वास करें कि तूने मुझे भेजा है।"

43) इतना कहने के बाद ईसा ने ऊँचें स्वर से पुकारा, "लाजरुस! बाहर निकल आओ!"

44) मृतक बाहर निकला। उसके हाथ और पैर पटिटयों से बँधे हुये थे और उसके मुख पर अँगोछा लपेटा हुआ था। ईसा ने लोगो से कहा, इसके बन्धन खोल दो और चलने-फिरने दो।

45) जो यहूदी मरियम से मिलने आये थे और जिन्होंने ईसा का यह चमत्कार देखा, उन में से बहुतों ने उन में विश्वास किया।

📚 मनन-चिंतन

कलीसिया चाहती है कि आज हम लाज़रुस के जीवन-दान पर मनन्‍-चिंतन करें। पवित्र वचन कहता है कि लाज़रुस के गंभीर रूप से बीमार होने के बारे में सुनने के दो दिन बाद ही येसु उससे मिलने के लिए निकलते हैं। दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं। पहली, देरी का मतलब यह नहीं है कि प्रभु हमारा ख्याल नहीं करते हैं; इसके विपरीत वे एक बड़े चमत्कार की योजना बना रहे हैं। दूसरी, प्रभु ईश्वर के कार्य करने के अपने समय होते हैं। हमें उम्मीद के साथ उनका इंतजार करते रहना होगा।

लाज़रुस को एक बार फिर सांसारिक जीवन में वापस लाया गया। वह पुनरुत्थान नहीं थी बल्कि सांसारिक जीवन में वापस लौटना था। उसके सांसारिक जीवन का समय बढ़ाया गया। कुछ वर्षों के बाद लाज़रुस की फिर से मृत्यु हो गई। लेकिन येसु ने उस मौके का इस्तेमाल लोगों को मृतकों के पुनरुत्थान के बारे में सिखाने के लिए किया जब हम अनंत जीवन में प्रवेश करेंगे। 1कुरिन्थियों 15 में, संत पौलुस पुनरुत्थान के बाद के जीवन का वर्णन करते हैं। हमारी चिंता सांसारिक जीवन की आयु बढ़ाने की नहीं, बल्कि संतों और स्वर्गदूतों के साथ शाश्वत जीवन प्राप्त करने की होनी चाहिए। फिलिप्पियों 1: 21-24 में संत पौलुस कहते हैं, " मेरे लिए तो जीवन है-मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति। किन्तु यदि मैं जीवित रहूँ, तो सफल परिश्रम कर सकता हूँ, इसलिए मैं नहीं समझ पाता कि क्या चुनूँ। मैं दोनों ओर खिंचा हुआ हूँ। मैं तो चल देना और मसीह के साथ रहना चाहता हूँ। यह निश्चय ही सर्वोत्तम है; किन्तु शरीर में मेरा विद्यमान रहना आप लोगों के लिए अधिक हितकर है।”

एक और संदेश हमें आज ग्रहण करना चाहिए कि प्रभु के लिए कोई स्थिति निराशाजनक नहीं है। लाज़रुस को दफनाने के चार दिन बाद जीवन में वापस लाया गया था। स्तोत्रकार कहता है, “मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता रहा; उसने झुक कर मेरी पुकार सुनी। उसने मुझे विनाश के गर्त से, दलदल से कीच से निकाला। उसने मेरे पैर चट्टान पर टिकाकर मुझे दृढ़ कदमों से आगे बढ़ने दिया।“ (स्तोत्र 40:1-2)

आइए हम प्रभु में हमारी आशा की पुन: पुष्टि करें और हम में से प्रत्येक के लिए उनके पूर्वप्रबंध में आनन्दित हों।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today the Church wants us to reflect over the raising of Lazarus. The first point that strikes anyone is the delay in Jesus’ visit to the family he loved. Even after getting the news of the serious illness of Lazarus Jesus stayed on where he was for two more days. Two things become clear to us here. First, delay does not mean that God is not bothered; on the contrary He is planning a greater miracle. Second, God has His own time to intervene. We need to wait on him with undying hope.

Lazarus was brought back to earthly life once again. That was not resurrection but resuscitation. His earthly life was prolonged. After a few years Lazarus died again. But Jesus used that occasion to teach the people about the resurrection from the dead when we shall enter into eternal life. In 1Cor 15, St. Paul describes life after resurrection. Our concern should not be to prolong the earthly life, but to attain the eternal life with the saints and the angels. In Phil 1:21-24 St. Paul says, “For to me, living is Christ and dying is gain. If I am to live in the flesh, that means fruitful labor for me; and I do not know which I prefer. I am hard pressed between the two: my desire is to depart and be with Christ, for that is far better; but to remain in the flesh is more necessary for you.”

Another message we should take home today is that there is no hopeless situation for God. Lazarus was brought back to life four days after his burial. The Psalmist says, “I waited patiently for the Lord; he inclined to me and heard my cry. He drew me up from the desolate pit, out of the miry bog, and set my feet upon a rock, making my steps secure.” (Ps 40:1-2).

Let us reaffirm our hope in the Lord and rejoice in his concern for each one of us.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!