चक्र ’अ’ - 01 जनवरी



ईशमाता कुँवारी मरियाम का पर्व

📒 पहला पाठ: गणना 6:22-27

22) प्रभु ने मूसा से कहा,

23) ''हारून और उसके पुत्रों से कहो - इस्राएलियों को आशीर्वाद देते समय यह कहोगे :

24) 'प्रभु तुम लोगों को आशीर्वाद प्रदान करे और सुरक्षित रखे।

25) प्रभु तुम लोगों पर प्रसन्न हो और तुम पर दया करे।

26) प्रभु तुम लोगों पर दयादृष्टि करे और तुम्हें शान्ति प्रदान करे।'

27) वे इस प्रकार इस्राएलियों के लिए मुझ से प्रार्थना करें और मैं उन्हें आशीर्वाद प्रदान करूँगा।

📕 दूसरा पाठ :गलातियों 4:4-7

4) किन्तु समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधीन रहे,

5) जिससे वह संहिता क अधीन रहने वालों को छुड़ा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र बन जायें।

6) आप लोग पुत्र ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने हमारे हृदयों में अपने पुत्र का आत्मा भेजा है, जो यह पुकार कर कहता है -’’अब्बा! पिता!’’ इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।

7) इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 2:16-21

16) वे शीघ्र ही चल पड़े और उन्होंने मरियम, यूसुफ़, तथा चरनी में लेटे हुए बालक को पाया।

17) उसे देखने के बाद उन्होंने बताया कि इस बालक के विषय में उन से क्या-क्या कहा गया है।

18) सभी सुनने वाले चरवाहों की बातों पर चकित हो जाते थे।

19) मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी।

20) जैसा चरवाहों से कहा गया था, वैसा ही उन्होंने सब कुछ देखा और सुना; इसलिए वे ईश्वर का गुणगान और स्तुति करते हुए लौट गये।

21) आठ दिन बाद बालक के ख़तने का समय आया और उन्होंने उसका नाम ईसा रखा। स्वर्गदूत ने गर्भाधान के पहले ही उसे यही नाम दिया था।

मनन-चिंतन 01

अगर आप साधारण विश्वासियों से पूछेंगे कि आप माँ मरियम को ईश्वर की माता क्यों मानते हैं, तो शिक्षित विश्वासी लोग शायद आप को जवाब देंगे कि माँ मरियम ने येसु को जन्म दिया; येसु ईश्वर हैं और इसलिए माँ मरियम ईश्वर की माँ हैं। लेकिन अगर हम प्रभु येसु से ही पूछते हैं कि आप माँ मरियम को अपनी माँ क्यों मानते हैं तो येसु हम से कहेंगे कि उन्होंने ईश्वर के वचन को विनम्रता से स्वीकार किया, उसे अपने हृदय में संचित रखा और उसका अपने जीवन में पालन किया। प्रभु कहते हैं, “मेरी माता और मेरे भाई वही है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं (लूकस 8:21)।

दरअसल जब कभी कोई अपनी माता के बारे में सोचता है, शायद ही वह इस बात को याद करता है कि उसने मुझे जन्म दिया है, बल्कि माँ के प्यार, बलिदान की भावना, ममता तथा कुर्बानियों को ही याद करता है।

आज हम ईशमाता कुँवारी मरियम का त्योहार मना रहे हैं। यह त्योहार हमें यह बताता है कि ईश्वर कितने उदार है, कि ईश्वर की आज्ञाओं का विनम्रता के साथ पालन करने वालों को ईश्वर कितना ऊपर उठाते हैं। अपनी सृष्टि में से ही किसी को वे माँ कहते हैं और उन्हें आदर और सम्मान से विभूषित करते हैं। वे उन्हीं से सीखने और अन्य मानवों की तरह उनके गर्भ में नौ महीनों तक रहते हैं।

कई बार हम प्रार्थना करते हैं, “हे परमेशवर की पवित्र माँ हमारे लिए प्रार्थना कर, कि हम ख्रीस्त की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जायें”। माता मरियम अपने आप को प्रभु की दासी मानती हैं। यह उनकी विनम्रता का प्रमाण है। इस विनम्रता के कारण वे ईश्वर की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन गयी। इसी कारण ईश्वर ने माँ मरियम को सभी मानवों में धन्य बनाया। माँ मरियम स्वयं यह घोषित करती हैं कि सर्वशक्तिमान ने ही उन्हें महान बना दिया है।

संत लूकस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के प्रवचन सुन कर, उससे प्रभावित हो कर “भीड़ में से कोई स्त्री उन्हें सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में बोल उठी, ’’धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है!” (लूकस 11:27) लेकिन प्रभु की प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिए। उन्होंने उत्तर दिया, “ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं” (लूकस 11:28)।

हमें भी मातृत्व को गर्भधारण तथा स्तनपान कराने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। मातृत्व एक काम नहीं है बल्कि एक संबंध है। हाँलाकि नाभिरज्जु (umbilical cord) बच्चे के जन्म के समय काट दिया जाता है, विश्वासी लोग ईशवचन के द्वारा जो संबंध स्थापित करते हैं, वह बना रहता तथा दिन प्रतिदिन मजबूत होता जाता है। माँ को केवल बच्चों तथा पति के लिए काम करते रहने वाली एक महिला के रूप में देखना एक बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण है। आज के समाज की यह वास्त्तविकता है कि माताओं को वह स्थान नहीं दिया जाता है जो असल में उनका है।

माँ मरियम उन सब महिलाओं का प्रतीक है जो माँ होने के कारण बलिदान, उदारता, ममता तथा समर्पण का जीवन बिताती हैं। जब ईश्वर ने स्त्री की सृष्टि की थी, तब उन्होंने उसे एक ’उपयुक्त सहयोगी’ (उत्पत्ति 2:18) के रूप में सृष्ट किया था। हम भी दृढ़संकल्प करें कि हम भी माँ मरियम के समान विनम्र और उदार बनें ताकि उन्हीं के समान ईश्वर के कृपापात्र बन सकें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया

मनन-चिंतन 02

आज हम ईशमाता मरियम के साथ नए साल की शुरुआत कर रहे हैं। हम उन्हें ईश्वर के पवित्र वचन पर मनन करते हुए पाते हैं। यह किसी भी ख्रीस्तीय विश्वासी के लिए एक आदर्श है। यह केवल एक पल का कार्य नहीं है, बल्कि एक निरंतर स्वभाव है। स्तोत्रकार कहता है, “जो प्रभु का नियम हृदय से चाहता और दिन-रात उसका मनन करता है, वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया, जो समय पर फल देता है, जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह मनुष्य जो भी करता है, सफल होता है।” (स्तोत्र 1:2-3) विधि-विवरण 4:4 में प्रभु का वचन कहता है,"जो अपने प्रभु-ईश्वर के प्रति ईमानदार बने रहे, तुम सब-के-सब आज तक जीवित हो।"। वास्तव में जीवित रहने के लिए हमें जीवन के स्रोत ईश्वर से जुडे रहने की आवश्यकता है। यह वही है जो कुँवारी मरियम ने ईश्वर के वचन को अपने दिल में रखकर किया था। शारीरिक रूप से प्रभु येसु नौ महीने तक मरियम के कोख में थे, लेकिन आध्यात्मिक रूप से वे माता मरियम में हमेशा थे। जैसा कि हम नए साल की शुरुआत कर रहे हैं, आइए हम भी इस वर्ष के दौरान येसु से हमेशा जुड़े रहने का दृढ़संकल्प करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today we begin the New Year with Mary, the Mother of God. We find her pondering over the Word of God. This is a great disposition for any Christian. It is not just a one time action, but a continual disposition. The Psalmist says, “their delight is in the law of the Lord, and on his law they meditate day and night. They are like trees planted by streams of water, which yield their fruit in its season, and their leaves do not wither. In all that they do, they prosper.” (Ps 1:2-3) In Deut 4:4 the Word of God says, “those of you who held fast to the Lord your God are all alive today”. To be truly alive we need to be glued to God, the source of life. This is what our Lady did by treasuring the Word of God in her heart. Physically Jesus was in her for nine months, but spiritually He was in her all through her life. As we begin the New Year, let us resolve to be glued to Jesus during the course of this year.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!