2) पुत्रों! पिता की शिक्षा ध्यान से सुनो; उसका पालन करने में तुम्हारा कल्याण है।
3) प्रभु का आदेश है कि सन्तान अपने पिता का आदर करें ; उसने माता केा अपने बच्चों पर अधिकार दिया है।
4) जो अपने पिता पर श्रद्धा रखता है, वह अपने पापों का प्रायश्चित करता है
5) और जो अपनी माता का आदर करता है, वह मानो धन का संचय करता है।
6) जो अपने पिता का सम्मान करता है, उसे अपनी ही सन्तान से सुख मिलेगा और जब वह प्रार्थना करता है, तो ईश्वर उसकी सुन लेगा।
12) अपने पिता के अपमान पर गौरव मत करो, उसका अपयश तुम को शोभा नहीं देता।
13) पिता का सम्मान मनुष्य का गौरव है और माता का अपयश पुत्र को शोभा नहीं देता।
14) पुत्र! अपने बूढ़े पिता की सेवा करो। जब तक वह जीता रहता है, उसे उदास मत करो।
12) आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।
13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।
14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।
15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।
16) मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करें। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञ हृदय से ईश्वर के आदर में भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें।
17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।
18) जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिए उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें।
19) पति अपनी पत्नियों को प्यार करें और उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं करें।
20) बच्चे सभी बातों में अपने माता-पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है ।
21) पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।
(13) उनके जाने के बाद प्रभु का दूत यूसुफ़ को स्वप्न में दिखाई दिया और यह बोला "उठिए! बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र देश भाग जाइए। जब तक मैं आप से न कहूँ वहीं रहिए क्योंकि हेरोद मरवा डालने के लिए बालक को ढूँढ़ने वाला है।
(14) यूसुफ़ उठा और उसी रात बालक और उसकी माता को ले कर मिस्र देश चल दिया।
(15) वह हेरोद की मृत्यु तक वहीं रहा जिससे नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये - मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।
(19) हेरोद की मृत्यु के बाद प्रभु का दूत मिस्र देश में यूसुफ़ को स्वप्न में दिखाई दिया और(20) यह बोला, "उठिए! बालक और उसकी माता को ले कर इस्राएल देश चले जाइए, क्योंकि वे जो बालक के प्राण लेना चाहते थे मर चुके हैं।"
(21) यूसुफ़ उठा और बालक तथा उसकी माता को ले कर इस्राएल देश चला आया।
(22) उसने सुना कि अरखेलौस अपने पिता के स्थान पर यहूदिया में राज्य करता है; इसलिए उसे वहाँ जाने में डर लगा और स्वप्न में वह चेतावनी पा कर गलीलिया चला गया।
(23) वहाँ वह नाज़रेत नामक नगर में जा बसा। इस प्रकार नबियों का यह कथन पूरा हुआ - यह नाज़री कहलायेगा।