1) यदि आप लोगों के लिए मसीह के नाम पर निवेदन तथा प्रेमपूर्ण अनुरोध कुछ महत्व रखता हो और आत्मा में सहभागिता, हार्दिक अनुराग तथा सहानुभूति का कुछ अर्थ हो,
2) तो आप लोग एकचित? एक हृदय तथा एकमत हो कर प्रेम के सूत्र में बंध जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण कर दें।
3) आप दलबन्दी तथा मिथ्याभिमान से दूर रहें। हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे।
4) कोई केवल अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
12) फिर ईसा ने अपने निमन्त्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमन्त्रण दे कर बदला चुका दें।
13) पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अन्धों को बुलाओ।
14) तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरूत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।"