1) वह मुझे पूर्वी फाटक तक ले गया
2) और मैंने पूर्व की ओर से आती हुई इस्राएल के ईश्वर की महिमा देखी। उसके साथ-साथ समुद्र-गर्जन की-सी आवाज सुनाई पड़ी और पृथ्वी उसकी महिमा से आलोकित हो उठी।
3) जो दृश्य मैं देख रहा था, वह उसी के सदृश था, जिसे मैंने उस समय देखा था, जब प्रभु नगर का विनाश करने आया था और उस दृश्य के सदृश, जिसे मैंने कबार नदी के पास देखा था। मैं मुँह के बल गिर पड़ा।
4) प्रभु की महिमा पूर्वी फाटक से हो कर मंदिर में आ पहुँची।
5) आत्मा मुझे उठा कर मन्दिर के भीतरी प्रांगण में ले गया और मैंने देखा कि मन्दिर प्रभु की महिमा से भरा जा रहा है।
6) वह व्यक्ति मेरी बगल में खड़ा रहा और मैंने मन्दिर में से किसी को मुझ से यह कहते सुना।
7) उसने मुझ से कहा, ’’मानवपुत्र! यही मेरे सिंहासन का स्थान है। यही मेरा पावदान है। मैं सदा इस्राएलियों के बीच निवास करूँगा।
1) उस समय ईसा ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा,
2) ’’शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,
3) इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वह करते और मानते रहो; परंतु उनके कर्मों का अनुसरण न करो,
4) क्योंकि वे कहते तो हैं, पर करते नहीं। वे बहुत-से भारी बोझ बाँध कर लोगों के कन्धों पर लाद देते हैं, परंतु स्वंय उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते।
5) वे हर काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए करते हैं। वे अपने तावीज चैडे़ और अपने कपड़ों के झब्बे लम्बे कर देते हैं।
6) भोजों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना,
7) बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरुवर कहलाना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।
8) ’’तुम लोग ’गुरुवर’ कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि एक ही गुरू है और तुम सब-के-सब भाई हो।
9) पृथ्वी पर किसी को अपना ’पिता’ न कहो, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।
10 ’आचार्य’ कहलाना भी स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह।
11) जो तुम लोगों में से सब से बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने।
12) जो अपने को बडा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा। और जो अपने को छोटा मानता है, वह बडा बनाया जायेगा।