2) जिस प्रकार प्रायश्चित्त के बलिदान में चरबी अलग की जाती है, उसी प्रकार दाऊद को इस्राएलियों में से चुना गया था।
3) वह सिंहों के साथ खेलते थे, मानो वे बकरी के बच्चे हों और भालुओें के साथ खेलते थे, मानो वे छोटे मेमने हों।
4) उन्होंने अपनी जवानी में भीमकाय योद्धा को मारा और अपने राष्ट्र का कलंक दूर किया।
5) उन्होंन हाथ से ढेलबाँस का पत्थर मारा और गोलयत का घमण्ड चूर-चूर कर दिया;
6) क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च प्रभु से प्रार्थन की और उसने उनके दाहिने हाथ को शक्ति प्रदान की, जिससे वह बलवान् योद्धा को पछाड़ कर अपनी प्रजा को शक्तिशाली बना सकें।
7) इसलिए लोगों ने उन्हें ’दस हजार का विजेता’ घोषित किया, ईश्वर के आशीर्वाद के कारण उनकी स्तुति की और उन्हें महिमा का मुकुट पहनाया;
8) क्योंकि उन्होंने चारों ओर के शत्रुओें को पराजित किया और अपने फिलिस्तीनी विरोधियों का सर्वनाश किया। उन्होंने सदा के लिए उनकी शक्ति समाप्त कर दी।
9) वह अपने सब कार्यों में धन्यवाद देते हुए परमपावन सर्वोच्च ईश्वर की स्तुति करते रहे।
10) वह अपने सृष्टिकर्ता के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने के लिए सारे हृदय से गीत गाया करते थे।
11) उन्होंने गायकों को नियुक्त किया, जिससे वे वेदी के सामने खड़े हो कर मधुर गान सुनायें।
14) हेरोद ने ईसा की चर्चा सुनी, क्योंकि उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। लोग कहते थे-योहन बपतिस्ता मृतकों में से जी उठा है, इसलिए वह ये महान् चमत्कार दिखा रहा है।
15) कुछ लोग कहते थे- यह एलियस है। कुछ लोग कहते थे- यह पुराने नबियों की तरह कोई नबी है।
16) हेरोद ने यह सब सुन कर कहा, " यह योहन ही है, जिसका सिर मैंने कटवाया है और जो जी उठा है"
17) हेरोद ने अपने भाई फि़लिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ़्त्तार किया और बन्दीगृह में बाँध रखा था; क्योंकि हेरोद ने हेरोदियस से विवाह किया था
18) और योहन ने हेरोद से कहा था, "अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है"।
19) इसी से हेरोदियस योहन से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी,
20) क्योंकि हेरोद योहन को धर्मात्मा और सन्त जान कर उस पर श्रद्धा रखता और उसकी रक्षा करता था। हेरोद उसके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उसकी बातें सुनना पसन्द करता था।
21) हेरोद के जन्मदिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। उस उत्सव के उपलक्ष में हेरोद ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलीलिया के रईसों को भोज दिया।
22) उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अन्दर आ कर नृत्य किया और हेरोद तथा उसके अतिथियों को मुग्ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, "जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्हें दे दॅूंगा",
23) और उसने शपथ खा कर कहा, "जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो, मैं तुम्हें दे दूँगा"।
24) लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, "मैं क्या माँगूं?" उसने कहा, "योहन बपतिस्ता का सिर"।
25) वह तुरन्त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, "मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें"
26) राजा को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्वीकार करना नहीं चाहता था।
27) राजा ने तुरन्त जल्लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। जल्लाद ने जा कर बन्दीगृह में उसका सिर काट डाला
28) और उसे थाली में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया।
29) जब योहन के शिष्यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उसका शव ले गये और उन्होंने उसे क़ब्र में रख दिया।