1) भाइयो! आप लोग हम से यह शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं कि किस प्रकार चलना और ईश्वर को प्रसन्न करना चाहिए और आप इसके अनुसार चलते भी हैं। अन्त में, हम प्रभु ईसा के नाम पर आप से आग्रह के साथ अनुनय करते हैं कि आप इस विषय में और आगे बढ़ते जायें।
2) आप लोग जानते हैं कि मैंने प्रभु ईसा की ओर से आप को कौन-कौन आदेश दिये।
3) ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें।
4) आप में प्रत्येक धर्म और औचित्य के अनुसार अपने लिए एक पत्नी ग्रहण करे।
5) गैर-यहूदियों की तरह, जो ईश्वर को नहीं जानते, कोई भी वासना के वशीभूत न हो।
6) कोई भी मर्यादा का उल्लंघन न करे और इस सम्बन्ध में अपने भाई के प्रति अन्याय नहीं करे; क्योंकि प्रभु इन सब बातों का कठोर दण्ड देता है, जैसा कि हम आप लोगों को स्पष्ट शब्दों में समझा चुके हैं।
7) क्योंकि ईश्वर ने हमें अशुद्धता के लिए नहीं, पवित्रता के लिए बुलाया;
8) इसलिए जो इस आदेश का तिरस्कार करता है, वह मनुष्य का नहीं, बल्कि ईश्वर का तिरस्कार करता है, जो आप को अपना पवित्र आत्मा प्रदान करता है।
1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।
2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।
3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।
4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।
5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।
6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’
7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।
8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।
9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’
10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।
11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।
12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता’।
13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।
येसु ने अक्सर ईश्वर के राज्य को विवाह भोज के रूप में लोगों के सामने पेश किया । इसमें ईश्वर को दूल्हे के रूप में और परमेश्वर के लोगों को उनकी की दुल्हन के रूप में बताया गया है। ऐसा ही चित्रण हमें नबियों के ग्रंथों में भी मिलता है। सुसमाचारों में येसु को भी कभी-कभी दिव्य दूल्हे के रूप में चित्रित किया जाता है; योहन बपतिस्ता को चौथे सुसमाचार में दूल्हे के मित्र के रूप में वर्णित किया गया है। आज के सुसमाचार में येसु जो दृष्टान्त बताते हैं, उसमे वे हम से कहते हैं कि हमें दुनिया के अंत में प्रभु के दूल्हे के सामान आगमन हेतु तैयार रहने की आवश्यकता है।
दूल्हे का स्वागत करने के लिए नियुक्त की गई दस कुवंरिंयों में से केवल पाँच अपनी मशालें जलाकर तैयार थीं। यह दृष्टांत हम सभी से आह्वान करता है कि हम अपनी मशालें जलाके रखें ताकि जब प्रभु हमारे जीवन के अंत में आयें तो वह हमें तैयार जाएँ। हमारी मशालों को जलाए रखने का क्या मतलब है? इससे पहले मत्ती के सुसमाचार में, पर्वत प्रवचन की शुरुआत में, यीशु ने हमें अपने भले कामों, प्रेम, दया और न्याय के कामों के द्वारा अपने अपनी ज्योति को दुनियां में चमकते रखने के लिए आह्वान किया था। पौलुस ने पहले पाठ में इसे वह जीवन बताया है जो ईश्वर हमसे चाहते हैं। यह एक ऐसा जीवन है जो हमें प्रभु के आने के लिए हर समय तैयार रखेगा। तो आइये हम हमारे भले कार्यों की मशाल हमेशा जलाये रखें और मसीह के आगमन के लिए सदा तैयार रहें।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतJesus often spoke of the kingdom of God as a wedding feast. It connected in with the understanding of God as the bridegroom and of the people of God as God’s bride, which is often found in the books of the prophets. In the gospels Jesus is sometimes portrayed as the divine bridegroom; John the Baptist is described in the fourth gospel as the friend of the bridegroom. The parable Jesus speaks in this morning’s gospel reading is about the coming of the Lord, of the bridegroom, at the end of time, and the need to be ready for his coming.
Of the five bridesmaids assigned to welcome the bridegroom, only five of them were ready with their torches lighting. The parable calls on all of us to keep our own torches lighting so that when the Lord comes at the end of our lives he will find us ready. What does it mean to keep our torches lighting? Earlier in Matthew’s gospel, at the beginning of the Sermon on the Mount, Jesus called on us to let our light shine by means of our good works, works of love, mercy and justice. This is what Paul refers to in the first reading as ‘the life that God wants. It is the kind of life which will keep us ready at all times for the Lord’s coming.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya