वर्ष -1, इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : 1 थेसलनीकियों 2:9-13

9) भाइयो! आप को हमारा कठोर परिश्रम याद होगा। आपके बीच सुसमाचार का प्रचार करते समय हम दिन-रात काम करते रहे, जिससे किसी पर भार न डालें।

10) आप, और ईश्वर भी, इस बात के साक्षी हैं कि आप विश्वासियों के साथ हमारा आचरण कितना पवित्र, धार्मिक और निर्दोष था।

11) आप जानते हैं कि हम पिता की तरह आप में प्रत्येक को

12) उपदेश और सान्त्वना देते और अनुरोध करते थे कि आप उस ईश्वर के योग्य जीवन बितायें, जो आप को अपने राज्य की महिमा के लिए बुलाता है।

13) हम इसलिए निरन्तर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि जब आपने इस से ईश्वर का सन्देश सुना और ग्रहण किया, तो आपने उसे मनुष्यों का वचन नहीं; बल्कि -जैसा कि वह वास्तव में है- ईश्वर का वचन समझकर स्वीकार किया और यह वचन अब आप विश्वासियों में क्रियाशील है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती 23:27-32

27) ’’ढोंगी शास्त्रियों ओर फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुती हुई कब्रों के सदृश हो, जो बाहर से तो सुन्दर दीख पड़ती हैं, किन्तु भीतर से मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गन्दगी से भरी हुई हैं।

28) इसी तरह तुम भी बाहर से लागों को धार्मिक दीख पड़ते हो, किन्तु भीतर से तुम पाखण्ड और अधर्म से भरे हुए हो।

29) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम नबियों के मकबरे बनवा कर और धर्मात्माओं के स्मारक सँवार कर

30) कहते हो, ’’यदि हम अपने पुरखों के समय जीवित होते, तो हम नबियों की हत्या करने में उनका साथ नहीं देते’।

31) इस तरह तुम लोग अपने विरुद्ध यह गवाही देते हो कि तुम नबियों के हत्यारों की संतान हो।

32) तो, अपने पुरखों की कसर पूरी कर लो।

📚 मनन-चिंतन

खुद की निजी छवि और बाहरी दिखावट इस समय हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण मूल्य माने जाते हैं। यहाँ अच्छा दिखने पर जोर दिया जाता है, और लोग अच्छा दिखने के लिए बहुत कुछ करते हैं। अच्छा दिखने के लिए संसाधनों का आज पूरा बाजार भरा पड़ा है। सुसमाचार में, येसु बाहर के बजाय जो भीतर है उसके महत्व पर प्रकाश डालते हैं। लोग अंदर से कैसे हैं ये उनके बाहरी प्रकटीकरण से ज़्यादा मायने रखता है।

क्रूस पर से लटकते हुए यीशु सबसे अनाकर्षक व विरूपित रूप में प्रकट हुए। फिर भी, यही वह क्षण था जब उनके भीतर मानव जाती के लिए जो प्रेम था वह अपने चरम पर था। गरीब विधवा जिसने मंदिर के खजाने में तांबे के दो सिक्के डाले थे, वह संसार की निगाहों में एक तुच्छ व्यक्ति लग रही थी जो एक तुच्छ राशि का योगदान कर रही थी। तौभी यीशु ने इस स्त्री के भीतर के उदार हृदय, को असाधारण रूप से देखा, और उसने अपने शिष्यों को बुलाया और इस सचाई को उनको बताया की बहार से उस विधवा ने न के बराबर दान दिया है परन्तु भीतर से उसने अपना सब कुछ दान कर दिया है।

आज का सुसमाचार हमें अपने दिखावे के बजाये हमारे हृदय में प्रेम की गुणवत्ता पर अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


Image and appearance are important values in our culture at the moment. There is an emphasis on looking well, and people can go to great lengths to look well. In the gospel reading, Jesus highlights the importance of what is within rather than what is without. How people are within themselves rather than how they appear to others is what matters. Jesus himself appeared at his most unattractive as he hung dying from the cross. Yet, that was the moment when the love that was within him was at its most intense.

The poor widow who put two copper coins into the Temple treasury looked an insignificant figure contributing an insignificant amount of money. Yet Jesus saw through the unexceptional appearance of this woman to the generous heart within, a heart like his own, and he called over his disciples so that they could learn from her. Appearances can be deceptive. In the case of the scribes and Pharisees in today’s gospel reading there was less there than met the eye. In the case of the widow and Christ crucified there was more than met the eye. The gospel reading this morning encourages us not to work so much on our appearances as on what is within, the quality of the love in our heart.

-Fr. Preetam Vasuniya


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Praise the Lord!