9) "आइए, मैं आप को दुल्हन, मेमने की पत्नी के दर्शन कराऊँगा।’’
10) मैं आत्मा से आविष्ट हो गया और स्वर्गदूत ने मुझे एक विशाल तथा ऊँचे पर्वत पर ले जा कर पवित्र नगर येरुसालेम दिखाया। वह ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतर रहा था।
11) वह ईश्वर की महिमा से विभूषित था और बहुमूल्य रत्न तथा उज्ज्वल सूर्यकान्त की तरह चमकता था।
12) उसके चारों ओर एक बड़ी और उँची दीवार थी, जिस में बारह फाटक थे और हर एक फाटक के सामने एक स्वर्गदूत खड़ा था। फाटकों पर इस्राएल के बारह वंशों के नाम अंकित थे।
13) पूर्व की आरे तीन, उत्तर की और तीन, पश्चिम की आरे तीन और दक्षिण की ओर तीन फाटक थे।
14) नगर की दीवार नींव के बारह पत्थरों पर खड़ी थी और उन पर मेमने के बारह प्रेरितों के नाम अंकित थे।
45) फिलिप नथानाएल से मिला और बोला, ‘‘मूसा ने संहिता में और नबियों ने जिनके विषय में लिखा है, वही हमें मिल गये हैं। वह नाज़रेत-निवासी, यूसुफ के पुत्र ईसा हैं।’’
46) नथानाएल ने उत्तर दिया, ‘‘क्या नाज़रेत से भी कोई अच्छी चीज़ आ सकती है?’’ फिलिप ने कहा, ‘‘आओ और स्वयं देख लो’’।
47) ईसा ने नथानाएल को अपने पास आते देखा और उसके विषय में कहा, ‘‘देखो, यह एक सच्चा इस्राएली है। इस में कोई कपट नहीं।’’
48) नथानाएल ने उन से कहा, ‘‘आप मुझे कैसे जानते हैं?’’ ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘फिलिप द्वारा तुम्हारे बुलाये जाने से पहले ही मैंने तुम को अंजीर के पेड़ के नीचे देखा’’।
49) नथानाएल ने उन से कहा, ‘‘गुरुवर! आप ईश्वर के पुत्र हैं, आप इस्राएल के राजा हैं’’।
50) ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘मैंने तुम से कहा, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा, इसीलिए तुम विश्वास करते हो। तुम इस से भी महान् चमत्कार देखोगे।’’
51) ईसा ने उस से यह भी कहा, ‘‘मैं तुम से यह कहता हूँ- तुम स्वर्ग को खुला हुआ और ईश्वर के दूतों को मानव पुत्र के ऊपर उतरते-चढ़ते हुए देखोगे’’।
बार्थोलोम्यू की पहचान पारंपरिक रूप से ननाथानिएल से की गई है जिनका आज हम पर्व मना रहे हैं , वे बारह प्रेरितों में से एक हैं। येसु आज के सुसमाचार में उसकी तारीफ करते हुए कहते हैं - यह एक सच्चा इसरायली है इसमें कोई कपट नहीं है। नासरत के बारे में उनकी नकारात्मक राय कि 'क्या नासरत से कुछ अच्छा आ सकता है?', कम से कम, एक ईमानदार राय थी; यह वही मत था जो वह वास्तव में वह मानता था। नतनएल ने येसु से मिलकर यह स्वीकार किया कि नासरत के बारे में उसकी राय गलत थी। उसने देखा कि नासरत का येसु कोई और नहीं बल्कि खुद ईश्वर का पुत्र और इस्राएल का राजा है।
किसी व्यक्ति या स्थान के बारे में हमारी राय वास्तविकता के बजाय हमारे पूर्वाग्रहों से बनी है, यह पहचानने के लिए दिल और आत्मा की उदारता की आवश्यकता होती है। नतनएल की ईमानदारी और हृदय की उदारता उनके इस पर्व के दिन हमें प्रेरणा देती है। आज के सुसमाचार के अंत में येसु ने उससे एक बड़ा वादा किया - 'तुम इससे भी बड़ी चीजें देखोगे ... तुम स्वर्ग को खुला हुआ और मनुष्य के पुत्र के पर, ईश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर चढ़ते उतरते हुए देखोगे'। हम हमारी प्रार्थनाओं और अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों में येसु के करीबीपन का एहसास कर सकते हैं। लेकिन यीशु हमें आश्वासन देते है कि देखने और अनुभव करने के लिए और भी बहुत कुछ है। हम जितने हमारी आध्यात्मिकता में गहरे होते जायेंगे येसु उतने ही अधिक हमें अपने दिव्य व स्वर्गिक अनुभव प्रदान करेंगे।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतBartholomew has been traditionally identified with Nathanael who features in our gospel reading this morning. Jesus pays him a lovely compliment, ‘Here is an Israelite, incapable of deceit’ or ‘in whom there is no deceit’. Jesus admired his openness and honesty. Even his dusty opinion about Nazareth, ‘Can anything good come out of Nazareth?’ was, at least, an honest opinion; it was what he believed. Nathanael went on to recognize that his honest opinion about Nazareth was a mistaken one. He came to see that Jesus from Nazareth was none other than the Son of God and the King of Israel.
It takes a generosity of heart and spirit to recognize when we have got it wrong, to recognize that our opinion of some person or place has been shaped by our prejudices rather than by reality. Nathanael’s honesty and generosity of heart can be an inspired to us on this his feast day. The final word of the gospel reading, however, is given to Jesus, not to Nathanael. It takes the form of that wonderful promise Jesus makes to him, ‘You will see greater things… You will see heaven laid open and, above the Son of Man, the angels of God ascending and descending’. We may have a certain insight into Jesus, a certain appreciation of him, like Nathanael, but Jesus assures us that there is so much more to see and appreciate. In our relationship with Jesus, we are always only towards the beginning of our journey. There are always ‘greater things’ to see.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya