6) इसके बाद सिखेम और बेत-मिल्लों के सब नागरिक सिखेम के बड़े पत्थर के निकट, बलूत वृक्ष के पास एकत्र हो गये और उन्होंने अबीमेलेक को राजा घोषित किया।
7) जब योताम को इसकी सूचना मिली, तो वह जा कर गरिज़्ज़ीम पर्वत के षिखर पर खड़ा हो गया। उसने ऊँचे स्वर से लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, ’’सिखेम के नागरिको! मेरी बात सुनो, जिससे प्रभु तुम लोगों की बात सुने।
8) वृक्ष किसी दिन अपने राजा का अभिशेक करने निकले। वे जैतून के पेड़ से बोले, ‘आप हमारे राजा बन जाइए’।
9) किन्तु जैतून वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, ’यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह तेल क्यों छोड़ दूँ, जिसके द्वारा देवताओं और मनुष्यों का सम्मान किया जाता है?
10) तब वृक्ष अंजीर के पेड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’।
11) किन्तु अंजीर वृक्ष ने उन्हें यह उत्तर दिया, ‘यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना बढ़िया मधुर फल क्यों छोड़ दूँ?’
12) इसके बाद वृक्ष अंगूर के पेड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’
13) और अंगूर के पेड़ ने उन्हें यह उत्तर दिया, ’यह क्या! मैं वृक्षों पर राज्य करने के लिए अपना यह रस क्यों छोड़ दूँ, जो देवताओं और मनुष्यों का आनन्दित करता है?-
14) ’’तब सब वृक्ष कँटीले झाड़ से बोले, ’आप हमारे राजा बन जाइए’।
15) कँटीले झाड़ ने वृक्षों को यह उत्तर दिया, ’यदि तुम लोग सचमुच अपने राजा के रूप में मेरा अभिशेक करना चाहते हो, तो मेरी छाया की षरण लेने आओ। नहीं तो, कँटीले झाड़ से आग निकलेगी और लेबानोन के देवदार वृक्षों को भी भस्म कर देगी।’
1) ’’स्वर्ग का राज्य उस भूमिधर के सदृश है, जो अपनी दाखबारी में मज़दूरों को लगाने के लिए बहुत सबेरे घर से निकला।
2) उसने मज़दूरों के साथ एक दीनार का रोज़ाना तय किया और उन्हें अपनी दाखबारी भेजा।
3) लगभग पहले पहर वह बाहर निकला और उसने दूसरों को चैक में बेकार खड़ा देख कर
4) कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ, मैं तुम्हें उचित मज़दूरी दे दूँगा’ और वे वहाँ गये।
5) लगभग दूसरे और तीसरे पहर भी उसने बाहर निकल कर ऐसा ही किया।
6) वह एक घण्टा दिन रहे फिर बाहर निकला और वहाँ दूसरों को खड़ा देख कर उन से बोला, ’तुम लोग यहाँ दिन भर क्यों बेकार खड़े हो’
7) उन्होंने उत्तर दिया, ’इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी में नहीं लगाया’ उसने उन से कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ।
8) ’’सन्ध्या होने पर दाखबारी के मालिक ने अपने कारिन्दों से कहा, ’मज़दूरों को बुलाओ। बाद में आने वालों से ले कर पहले आने वालों तक, सब को मज़दूरी दे दो’।
9) जब वे मज़दूर आये, जो एक घण्टा दिन रहे काम पर लगाये गये थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला।
10) जब पहले मज़दूर आये, तो वे समझ रहे थे कि हमें अधिक मिलेगा; लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला।
11) उसे पाकर वे यह कहते हुए भूमिधर के विरुद्ध भुनभुनाते थे,
12) इन पिछले मज़दूरों ने केवल घण्टे भर काम किया। तब भी आपने इन्हें हमारे बराबर बना दिया, जो दिन भर कठोर परिश्रम करते और धूप सहते रहे।’
13) उसने उन में से एक को यह कहते हुए उत्तर दिया, ’भई! मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ। क्या तुमने मेरे साथ एक दीनार नहीं तय किया था?
14) अपनी मजदूरी लो और जाओ। मैं इस पिछले मजदूर को भी तुम्हारे जितना देना चाहता हूँ।
15) क्या मैं अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर सकता? तुम मेरी उदारता पर क्यों जलते हो?
16) इस प्रकार जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और जो अगले है, पिछले हो जायेंगे।’’
आज का दृष्टान्त येसु के उन दृष्टान्तों में से एक है जिस पर लोग अक्सर नकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन मजदूरों ने दिनभर मेहनत की उनके साथ जिन्होंने एक घंटे तक काम किया उनकी तुलना में अन्याय हुआ क्योंकि सबों को सामान वेतन दिया गया था। हालांकि, मालिक ने पूरे दिन काम करने वालों के साथ अन्याय नहीं किया; उसने उन्हें एक दिन के काम के लिए एक दिन की मजदूरी दी। कहानी में आश्चर्य की बात यह है कि नियोक्ता उन लोगों के साथ असाधारण रूप से उदार था जिन्होंने एक घंटे तक काम किया। साथ ही उन्हें एक दिन का वेतन भी देता है। उसने किसी के साथ कोई अन्याय नहीं किया गया, लेकिन कुछ मज़दूर आश्चर्यजनक और असाधारण उदारता के हितग्राही बने थे यह कुछ लोगों के लिए एक प्रकार से अचरज और जलन का कारण बन गया था।
इस दृष्टान्त की शुरूआत इस वाक्यांश के साथ होती है - 'स्वर्ग का राज्य ऐसा है...' कहानी की दुनिया में ईश्वर का संसार परिलक्षित होता है; नियोक्ता का चरित्र किसी न किसी रूप में ईश्वर को दर्शाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि येसु कह रहे हैं कि ईश्वर की उदारता हमें हमेशा आश्चर्यचकित करेगी। हमारे साथ व्यवहार करने का ईश्वर का तरीका उस सीमा को तोड़ देता है जिसे मनुष्य न्यायसंगत और उचित समझेंगे। ईश्वर हमारे लिए जो कुछ करता है वह उससे कहीं अधिक है जो हम ईश्वर के लिए कर सकते हैं। हमने जो कमाया है या जिसके लायक है, उसके आधार पर ईश्वर हमसे सम्बन्ध या नाता रखता। ईश्वर का उदार प्रेम एक शुद्ध उपहार है; यह किये गए श्रम का पुरस्कार नहीं है। हम दिन के एक छोर से दूसरे छोर तक प्रभु की सेवा करते हैं, न कि उसका प्यार हासिल करने या अर्जित करने के लिए, बल्कि उस प्यार के लिए आभारी प्रतिक्रिया के रूप में।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतThis is one of the parables of Jesus that people often react negatively to. There is a feeling that the workers who worked all done were hard done by because those who worked for the last hour were given the same wage. However, in the world of the story, the employer did not treat those who worked all day unjustly; he gave them a day’s wages for a day’s work. The surprise in the story is that the employer was exceptionally generous with those who worked for an hour, giving them a day’s wages as well. No injustice was done to anyone, but some of the workers were the recipients of a surprising and extravagant generosity.
Jesus began this parable, with the phrase, ‘the kingdom of heaven is like…’ The world of God is reflected in the world of the story; the character of the employer reflects God in some way. Jesus appears to be saying that God’s generosity will always take us by surprise. God’s way of dealing with us breaks the bounds of what humans would consider just and fair. What God does for us far exceeds what we might do for God. God does not relate to us on the basis of what we have earned or deserved. God’s generous love is pure gift; it is not a reward for labour rendered. We serve the Lord from one end of the day to the other not to gain or earn his love but in grateful response for the love already given to us long before we could do anything.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya