12) मूसा ने लोगों से कहा, “इस्राएल! तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम से क्या चाहता है? वह यही चाहता है कि तुम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखो, उसके सब मार्गों पर चलते रहो, उसे प्यार करो, सारे हृदय और सारी आत्मा से अपने प्रभु-ईश्वर की सेवा करो और
13) प्रभु के उन सब आदेशों तथा नियमों का पालन करो, जिन्हें मैं आज तुम्हारे कल्याण के लिए तुम्हारे सामने रख रहा हूँ।
14) आकाश, सर्वाेच्च आकाश, पृथ्वी और जो कुछ उस में है - यह सब तुम्हारे प्रभु ईश्वर का है।
15) फिर भी प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों को प्यार किया और उन को अपनाया है। उनके बाद उसने उनके वंशजों को अर्थात् तुमको सभी राष्ट्रों में से अपनी प्रजा के रूप में चुन लिया, जैसे कि तुम आज हो।
16) अपने हृदयों का खतना करो और हठधर्मी मत बने रहो;
17) क्योंकि तुम्हारा प्रभु ईश्वर ईश्वरों का ईश्वर तथा प्रभुओं का प्रभु है। वह महान् शक्तिशाली तथा भीषण ईश्वर है। वह पक्षपात नहीं करता और घूस नहीं लेता।
18) वह अनाथ तथा विधवा को न्याय दिलाता है, वह परदेशी को प्यार करता है और उसे भोजन-वस्त्र प्रदान करता है।
19) तुम परदेशी को प्यार करो, क्योंकि तुम लोग भी मिस्र में परदेशी थे।
20) तुम अपने प्र्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे, उसकी सेवा करोगे, उस से संयुक्त रहोगे और उसके नाम की शपथ लोगे।
21) तुम को उसकी स्तुति करनी चाहिए। वह तुम्हारा ईश्वर है। उसने तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे लिए महान् तथा विस्मयकायी कार्य सम्पन्न किये हैं।
22) जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र में आए, तो उनकी संख्या सत्तर ही थी और अब तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम लोगों को आकाश के तारों की तरह असंख्य बना दिया है।
22) जब वे गलीलियों में साथ-साथ धूमते थे; तो ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ’’मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जावेगा।
23) वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन जी उठेगा। यह सुनकर शिष्यों को बहुत दुःख हुआ।
24) जब वे कफ़रनाहूम आये थे, तो मंदिर का कर उगाहने वालों ने पेत्रुस के पास आ कर पूछा, ’’क्या तुम्हारे गुरू मंदिर का कर नहीं देते?’’
25) उसने उत्तर दिया, ’’देते हैं’’। जब पेत्रुस घर पहुँचा, तो उसके कुछ कहने से पहले ही ईसा ने पूछा, ’’सिमोन! तुम्हारा क्या विचार है? दुनिया के राजा किन लोगों से चंुगी या कर लेते हैं- अपने ही पुत्रों से या परायों से?’’
26) पेत्रुस ने उत्तर दिया, ’’परायों से’’। इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’तब तो पुत्र कर से मुक्त हैं।
27) फिर भी हम उन लोगों को बुरा उदाहरण नदें; इसलिए तुम समुद्र के किनारे जा कर बंसी डालो। जो मछली पहले फॅसेगी, उसे पकड़ लेना और उसका मुँह खोल देना। उस में तुम्हें एक सिक्का मिलेगा। उस ले लेना और मेरे तथा अपने लिए उन को दे देना।’’
आज के सुसमाचार के दो भाग हैं। पहले भाग में येसु ने अपने आने वाले दुख और मृत्यु की घोषणा की। परिणामस्वरूप, हमें बताया जाता है, शिष्यों पर बड़ा दुख छा गया। उदासी एक सामान्य प्रतिक्रिया है जब हम किसी ऐसे व्यक्ति की विदाई या मृत्यु बारे में सुनते हैं जिसे हम प्यार करते हैं। हम सभी उस तरह की उदासी, से वाकिफ़ हैं जो आज के सुसमाचार में शिष्यों को घेर लेती है। कुछ हद तक, हम भी हमारे जीवन में कई प्रकार से उदासी से घिरे रहते हैं, पर हम विश्वासी ऐसी उदासी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते। हमें उस शक्ति में चलते रहना है जो प्रभु हमें देता है।
आज के सुसमाचार पाठ में, येसु और चेले इस कठोर वास्तविकता के क्षण के बाद भी यात्रा करते रहते हैं। आखिरकार वे सिमोन पेत्रुस के घर कफरनहूम आते हैं। वहाँ, एक अजीब सी घटना घटती है। आधा शेकेल कर वह कर है जो येसु के समय में हर यहूदी, मंदिर के रखरखाव के लिए सालाना चुकाता था। एक ओर येसु कहते हैं कि उन्हें और उनके अनुयायियों को इस कर से छूट प्राप्त है, क्योंकि येसु स्वयं अब नए विधान का मंदिर है। वहीँ दूसरी ओर, यीशु ने पेत्रुस से कर का भुगतान करने के लिए कहा ताकि धार्मिक नेताओं को ठेस न पहुंचे। दूसरे शब्दों में,येसु इस संबंध में स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं, लेकिन फिर इस स्वतंत्रता को एक तरफ रखने की सलाह देते हैं ताकि अनावश्यक गलती न हो। इस तरह येसु हमें याद दिलाते हैं कि हालांकि हम कुछ मामलों में स्वतंत्र हो सकते हैं, कभी-कभी यह सही हो सकता है पर जब दूसरों की भलाई दांव पर हो तो अपनी स्वतंत्रता का उपयोग न करना ही बेहतर होगा।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतToday's gospel has two parts. In the first part, Jesus announced his coming suffering and death. As a result, we are told, great misery fell upon the disciples. Sadness is a normal reaction when we face the departure or death of someone we love. We are all aware of the kind of sadness that surrounds the disciples in today's gospel. To some extent, we too are surrounded by sadness in many ways in our lives, but we believers cannot let such sadness overwhelm us. We have to keep walking in the power that the Lord gives us. In today's gospel, Jesus and the disciples continue to travel through this harsh reality moment. Eventually they come to Capernaum, the home of Simon Peter. There, a strange incident happens. The half-shekel is the tax that each Jewish temple paid annually for the maintenance of the temple in Jesus' time.
On the one hand, Jesus says that he and his followers are exempt from this tax, because Jesus himself is now the temple of the New Testament. On the other hand, Jesus asked Peter to pay the tax so that the religious leaders would not be offended. In other words, Jesus declares independence in this regard, but then advises setting aside this freedom so as not to make unnecessary mistakes. Thus, Jesus reminds us that although we may be free in some respects, it may be right at times, but it is better not to use our freedom when the well-being of others is at stake.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya