10) मूसा और हारून ने फिराउन के सामने ये सब चमत्कार दिखाये। परन्तु प्रभु ने फिराउन का हृदय कठोर कर दिया था। उसने इस्राएलियों को अपने देश से जाने की आज्ञा नहीं दी।
1) प्रभु ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा,
2) ''यह तुम्हारे लिए आदिमास होगा; तुम इसे वर्ष का पहला महीना मान लो।
3) इस्राएल के सारे समुदाय को यह आदेश दो - इस महीने के दसवें दिन हर एक परिवार एक एक मेमना तैयार रखेगा।
4) यदि मेमना खाने के लिए किसी परिवार में कम लोग हों, तो जरूरत के अनुसार पास वाले घर से लोगों को बुलाओ। खाने वालों की संख्या निश्चित करने में हर एक की खाने की रुचि का ध्यान रखो।
5) उस मेमने में कोई दोश न हो। वह नर हो और एक साल का। वह भेड़ा हो अथवा बकरा।
6) महीने के दसवें दिन तक उसे रख लो। शाम को सब इस्राएली उसका वध करेंगे।
7) जिन घरों में मेमना खाया जायेगा, दरवाजों की चौखट पर उसका लोहू पोत दिया जाये।
8) उसी रात बेखमीर रोटी और कड़वे साग के साथ मेमने का भूना हुआ मांस खाया जायेगा।
9) इस में से कच्चा या उबला हुआ कुछ मत खाओं, बल्कि सिर, पैरों और अँतड़ियों के साथ पूरे को आग में भून कर खाओं।
10) अगले दिन के लिए कुछ भी नहीं रखा जायेगा। जो कुछ बच गया हो, उसे भोर के पहले ही जला दोगे।
11) तुम लोग चप्पल पहन कर, कमर कस कर तथा हाथ में डण्डा लिये खाओगे। तुम जल्दी-जल्दी खाओगे, क्योंकि यह प्रभु का पास्का है।
12) उसी रात मैं, प्रभु मिस्र देश का परिभ्रमण करूँगा, मिस्र देश में मनुष्यों और पशुओं के सभी पहलौठे बच्चों को मार डालूँगा और मिस्र के सभी देवताओं को भी दण्ड दूँगा।
13) तुम लोहू पोत कर दिखा दोगे कि तुम किन घरों में रहते हो। वह लोहू देख कर मैं तुम लोगों को छोड़ दूँगा, इस तरह जब मैं मिस्र देश को दण्ड दूँगा, तुम विपत्ति से बच जाओगे।
14) तुम उस दिन का स्मरण रखोगे और उसे प्रभु के आदर में पर्व के रूप में मनाओगे। तुम उसे सभी पीढ़ियों के लिए अनन्त काल तक पर्व घोषित करोगे।
1) ईसा किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खेतों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्यों को भूख लगी और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे।
2) यह देख कर फ़रीसियों ने ईसा से कहा, ’’देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, आपके शिष्य वही कर रहे हैं’’।
3) ईसा ने उन से कहा, ’’क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथियों को भूख लगी, तो दाऊद ने क्या किया था?
4) उन्होंने ईश-मन्दिर में जा कर भेंट की रोटियाँ खायीं। याजकों को छोड़ न तो उन को उन्हें खाने की आज्ञा थी और न उनके साथियों को।
5) अथवा क्या तुम लोगों ने संहिता में यह नहीं पढ़ा कि याजक विश्राम के दिन का नियम तोड़ते तो हैं, पर दोषी नहीं होते?
6) मैं तुम से कहता हूँ- यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान् है।
7) मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ- यदि तुम लोगों ने इसका अर्थ समझ लिया होता, तो निर्दोषों को दोषी नहीं ठहराया होता;
8) क्योंकि मानव पुत्र विश्राम के दिन का स्वामी है।’’