15) स्वर्गदूतों ने यह कहते हुए लोट से अनुरोध किया, ''जल्दी कीजिए! अपनी पत्नी और अपनी दोनों पुत्रियों को ले जाइए। नहीं तो आप भी नगर के दण्ड के लपेट में नष्ट हो जायेंगे।''
16) वह हिचकता रहा, इसलिए स्वर्गदूत उसका, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों का हाथ पकड़ कर नगर के बाहर ले चले, क्योंकि प्रभु लोट को बचाना चाहता था।
17) नगर के बाहर पहुँच कर एक स्वर्गदूत ने कहा, ''जान बचा कर भाग जाइए। पीछे मुड़ कर मत देखिएगा और घाटी में कहीं भी नहीं रूकिएगा। पहाड़ पर भाग जाइए, नहीं तो आप नष्ट हो जायेंगे।''
18) लोट ने उत्तर दिया ''महोदय! यह नहीं होगा।
19) आपने मुझ पर दया दृष्टि की और मेरी जान बचा कर मेरे बड़ा उपकार किया। यदि मैं पहाड़ पर भाग जाऊँ, तो मैं विपत्ति से नहीं बच सकूँगा और निश्चय ही मर जाऊँगा।
20) देखिए, सामने की नगरी अधिक दूर नहीं है। मैं वहाँ शीघ्र ही पहुँच सकता हूँ। मुझे वहाँ शरण लेने दीजिए। वह एक छोटी-सी जगह है। मैं वहाँ सुरक्षित होऊँगा।''
21) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ''आपका यह निवेदन मुझे स्वीकार है। मैं उस नगरी का विनाश नहीं करूँगा।
22) शीघ्र ही वहाँ भाग जाइए। जब तक आप वहाँ नहीं पहुँचेंगे, तब तक मैं कुछ नहीं करूँगा।'' इस कारण वह नगरी सोअर कहलाती है।
23) जिस समय पृथ्वी पर सूर्य का उदय हुआ और लोट सोअर पहुँचा,
24) उस समय प्रभु ने सोदोम और गोमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसायी।
25) उसने उन नगरों को, सारी घाटी को, उसके समस्त निवासियों को और उसके सभी पेड़-पौधों को नष्ट कर दिया।
26) लोट की पत्नी ने, जो उसके पीछे चल रही थी, मुड़ कर देखा और वह नमक का खम्भा बन गयी।
27) दूसरे दिन सबेरे ही इब्राहीम उस जगह पहुँचा, जहाँ वह प्रभु के साथ खड़ा हुआ था।
28) उसने सोदोम, गोमोरा और सारी घाटी पर दृष्टि दौड़ा कर देखा कि भट्ठी के धुएँ की तरह भूमि पर से धुआँ ऊपर उठ रहा है।
29) इस प्रकार जब ईश्वर ने घाटी के नगरों का विनाश किया, तो उसने इब्राहीम का ध्यान रखा और लोट की रक्षा की, तब उसने उन नगरों को विनाश किया, जहाँ वह रहता था।
23) ईसा नाव पर सवार हो गये और उनके शिष्य उनके साथ हो लिये।
24) उस समय समुद्र में एकाएक इतनी भारी आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। परन्तु ईसा तो सो रहे थे।
25) शिष्यों ने पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, प्रभु! हमें बचाइए! हम सब डूब रहे हैं!
26) ईसा ने उन से कहा, अल्पविश्वासियों! डरते क्यों हो? तब उन्होंने उठ कर वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शाति छा गयी।
27) इस प्रर वे लोग अचम्भे में पड कर, बोल उठे, ’’आखिर यह कौन है, वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते है।’’