वर्ष -1, बारहवाँ सप्ताह, शुक्रवार

पहला पाठ : उत्पत्ति 17:1,9-10,15-22

1) जब अब्राम की उमर निन्यानबे वर्ष की थी, तो प्रभु ने उसे दर्शन दे कर कहा, ''मैं सर्वशक्तिमान् ईश्वर हूँ। तुम मेरे सम्मुख निर्दोष आचरण करते चलो।

9) प्रभु ने इब्राहीम से यह भी कहा, ''तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी मेरे विधान का पालन करना चाहिए।

10) मैंने जो विधान तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए निर्धारित किया और जिसका तुम को पालन करना चाहिए वह इस प्रकार है - तुम लोगों में से हर पुरुष का ख़तना किया जायेगा।

15) प्रभु ने इब्राहिम से कहा, ''तुम अपनी पत्नी को सारय नहीं, बल्कि सारा कह कर पुकारो।

16) मैं उसे आशीर्वाद दूँगा और वह तुम्हारे लिए पुत्र प्रसव करेगी। मैं उसे आशीर्वाद दूँगा-वह राष्ट्रों का माता बन जायेगी और उसे राष्ट्रों के राजा उत्पन्न होंगे।''

17) इब्राहीम मुँह के बल गिर कर हँसने लगा, क्योंकि उसने अपने मन में यह कहा, ''क्या सौ वर्ष के पुरुष को पुत्र हो सकता है? क्या नब्बे वर्ष की सारा प्रसव कर सकती है?''

18) उसने ईश्वर से कहा, ''इसमाएल तेरा कृपापात्र बने''।

19) ईश्वर ने उत्तर दिया, "नहीं! तुम्हारी पत्नी सारा तुम्हारे लिए पुत्र प्रसव करेगी। तुम उसका नाम इसहाक रखोगे। मैं उसके और उसके वंशजों के लिए अपना चिरस्थायी विधान बनाये रखूँगा। मैं उसके और उसके वंश का ईश्वर होऊँगा।

20) मैंने इसमाएल के लिए तुम्हारी प्रार्थना सुनी। मैं उसे आशीर्वाद दूँगा। मैं उसे सन्तति प्रदान करूँगा और उस के वंशजों की संख्या बढ़ाऊँगा। वह बारह कुलपतियों का पिता बनेगा और उस से एक महान् राष्ट्र उत्पन्न होगा।

21) किन्तु मैं इसहाक के लिए अपना विधान बनाये रखूँगा। अगले वर्ष के इस समय सारा उसे प्रसव करेगी।''

22) इतना कह कर ईश्वर इब्राहीम को छोड़ कर चला गया।

सुसमाचार : मत्ती 8:1-4

1) ईसा पहाडी से उतरे। एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया।

2) उस समय एक कोढ़ी उनके पास आया और उसने यह कहते हुए उन्हें दण्डवत् किया, "प्रभु! आप चाहें, तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं"।

3) ईसा ने हाथ बढा कर यह कहते हुए उसका स्पर्श किया, "मैं यही चाहता हूँ- शुद्ध हो जाओ"। उसी क्षण उसका कोढ़ दूर हो गया।

4) ईसा ने उस से कहा, "सावधान! किसी से कुछ मत कहो। जा कर अपने को याजक को दिखाओ और मूसा द्वारा निर्धारित भेंट चढ़ाओ जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये।"

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु के समय में, यहुदियों के नियम कोढ़ की बीमारी एक बहुत ही गंभीर पाप या अपमान समझा जाता था। जब याजक उन्हें घोषित करते थे, कि उन्हें कोढ़ की बीमारी है, तो कोढ़ के कपडे़ को जाला दिया जाता था और उसके घर द्वार को भी उजाड़ दिया जाता था। वह व्यक्ति तुरन्त बेघरवार हो जाता, और उसे समुदाय से अलग जीना पड़ता था। वह एक शोकित की तरह फटा पुराना कपड़ा पहनता था और अशुध्द! अशुध्द कहकर चिल्लाता था। दूसरे शब्दों में कोई भी इस्राइली उनके साथ कोई भी संबध नहीं रखता था। ये सब होने के वौजुद प्रभु येसु ऐसे नियमों को तोड़कर, कोढ़ का स्वागत करते हैं। पर्वत पर प्रवचन देने के बाद येसु कोढ़ी को भीड़ के बीच चलने-फिरने देते हैं। और अन्त में येसु हाथ बढ़ाकर उसका र्स्पश करते हैं।

आइये हम आज प्रार्थना करें कि हम भी प्रभु येसु के पास विश्वास के साथ पहुँच सकें, जिससे वे हमें शुध्द कर सकें।

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


During the time of Jesus, Jewish law considered leprosy as a grave offense or sin. Upon declared by the priest, the leper’s clothes were burned, his house was razed or cut. He was immediately homeless, forced to live outside the community. He was to dress like a mourner and cry out unclean! Unclean! In other words, no Israelite was to have anything at all to do with any leper. In spite of that, Jesus broke the law; and Jesus welcomes the leper. He allowed the leper to walk in among the crowd that surrounded him when he came down from the mountain after delivering his sermon on Mount. And lastly, Jesus “reached out his hand, and touched him” (Mt 8:3). According to the Mosaic Law, by touching the leper Jesus himself was instantly made unclean too. Let us pray that we may have faith to reach Jesus, so that he may be able to heal us.

-Fr. Isaac Ekka


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Praise the Lord!