वर्ष -1, ग्यारहवाँ सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 8:1-9

1) भाइयो! मैं आप लोगों को उस अनुग्रह के विषय में बताना चाहता हूँ, जिसे ईश्वर ने मकेदूनिया की कलीसियाओं को प्रदान किया है।

2) संकटों की अग्नि-परीक्षा में भी उनका आनन्द अपार रहा और तंगहाली में रहते हुए भी उन्होंने बड़ी उदारता का परिचय दिया है।

3) उन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार, बल्कि उस से भी अधिक, चन्दा दिया है।

4) उन्होंने स्वयं ही बड़े आग्रह के साथ मुझसे अनुरोध किया कि उन्हें भी सन्तों की सहायता के लिए चन्दा देने का सौभाग्य मिले।

5) वे अपनी उदारता में हमारी आशा से बहुत अधिक आगे बढ़ गये। उन्होंने पहले ईश्वर के प्रति और बाद में, ईश्वर की इच्छा के अनुसार, हमारे प्रति अपने को अर्पित किया।

6) इसलिए हमने तीतुस से अनुरोध किया है कि उन्होंने जिस परोपकार का कार्य प्रवर्तित किया था, वह उस को आप लोगों के बीच पूरा कर दें।

7) आप लोग हर बात में- विश्वास, अभिव्यक्ति, ज्ञान, सब प्रकार की धर्म-सेवा और हमारे प्रति प्रेम में बढ़े-चढ़ें हैं; इसलिए आप लोगों को इस परोपकार में भी बड़ी उदारता दिखानी चाहिए।

8) मैं इस सम्बन्ध में कोई आदेश नहीं दे रहा हूँ, बल्कि दूसरे लोगों की उदारता की चर्चा कर मैं आपके प्रेम की सच्चाई की परीक्षा लेना चाहता हूँ।

9) आप लोग हमारे प्रभु ईसा मसीह की उदारता जानते हैं। वह धनी थे, किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बन गये, जिससे आप उनकी निर्धनता द्वारा धनी बन गये।

सुसमाचार : मत्ती 5:43-48

(43) ’’तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।

(44) परन्तु में तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करों और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।

(45) इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की संतान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।

(46) यदि तुम उन्हीं से प्रेम करत हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते ?

(47) और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बडा काम करते हो? क्या गै़र -यहूदी भी ऐसा नहीं करते?

(48) इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।

📚 मनन-चिंतन

आज हम पर्वत प्रवचन के अंतिम पदों में पहुँच चुके हैं, और प्रभु येसु हमें महत्वपूर्ण शिक्षा देते हुए कहते हैं कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं उनके लिए प्रार्थना करो (मत्ती 5:44)। यह हम सभों के लिए प्रभु येसु का निमंत्रण एवं चुनौती है। निमंत्रण इसलिए क्योंकि इससे हम अपने को स्वर्गिक पिता की संतान बनाते हैं। चुनौती इसलिए क्योंकि यह हमारे प्राकृति के विरूध्द है। हम उन्हीं लोगों को प्यार करते हैं। जो हमें प्यार करते हैं। प्रभु हमें एक क्रांतिकारी शिक्षा दे रहे हैं। वे कहते हैं यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुम से प्रेम करते हैं तो पुस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते? (मत्ती 5:46) इसलिए आज प्रभु येसु हमें पूर्ण बनने के लिए निमंत्रण देतें है, तुम पूर्ण बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है। (मत्ती 5:48) हम पूर्ण तभी बन सकते हैं जब हम सपूर्ण रूप से अपने जीवन मेें स्वर्थ और अहम से दूर होंगे। प्रभु येसु ने स्वयं क्रूस पर से कहा,-’’हे पिता, इन्हें माफ कर दे, वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं?’’ ईश्वर सभों के लिए अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है (मत्ती 5:45)

फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION


Today we have reached the end of the verses of the Sermon on the Mount, and Jesus gives us an important lesson and says, “Love your enemies and pray for those who persecute you” (Mt.5:44). This is an invitation and a challenge today for us. It is an invitation for us because with this we can become the children of God and it is a challenge because it is against our nature. We love only those who love us. Today Jesus is giving us a revolutionary lesson. He says, “If you love those who love you, what reward do you have? Do not even the tax collectors do the same” (Mt.5:46). That is why Jesus today invites us to become perfect, “Be perfect, therefore, as your heavenly father is perfect” (Mt.5:48). We can become perfect only when keep aside our ego and selfishness. Jesus said, as he died on the cross, ‘Father, forgive them, for they do not know what they are doing’. God makes his sun rise on the evil and on the good, and sends rain on the righteous and on the unrighteous (Mt.5:45)

-Fr. Isaac Ekka


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Praise the Lord!