9) उस रात मैं उसे दफ़नाने के बाद लौट कर नहाया और आँगन की दीवार के पास लेट कर सो गया। गरमी के कारण मेरा चेहरा ढका नहीं था।
10) मुझे मालूम नहीं था कि दीवार पर गौरैयाँ रहती थीं। उनकी गरम बीट मेरी आँखों पर ंिगर पड़ी, जिससे मेरी आँखों में मोतियाबिन्द हो गया। मैं इलाज के लिए वैद्यों के पास गया, किन्तु उन्होंने मेरी आँखों पर जितना अधिक मरहम लगाया, मैं उतना ही कम देखने लगा और अन्त में मैं अन्धा हो गया। मैं चार वर्ष तक अन्धा रहा और सभी भाई मेरे कारण दुखी थे। जब तक अहीकार एलिमई नहीं गया, तब तक वह मेरी जीविका का प्रबन्ध करता रहा।
11) उस समय मेरी पत्नी अन्ना सिलाई-बुनाई का काम करती थी।
12) मालिक उसे पूरी मज़दूरी देते थे। ग्यारहवें महीने के सातवें दिन वह सिलाई का काम पूरा कर उसे मालिकों को देने गयी और उन्होंने मज़दूरी के सिवा बकरी का बच्चा दिया।
13) जब बच्चा घर आया और मिमियाने लगा, तो मैंने पत्नी से पूछा, "यह बच्चा कहाँ से आया? कहीं चोरी का तो नहीं है? इसे इसके मालिक को लौटा दो। हम चोरी की चीज़ नहीं खा सकते।"
14) उसने उत्तर दिया, "यह मुझे मज़दूरी के साथ बख़शीश में मिला है"। परन्तु मैंने उसका विश्वास नहीं किया और उसे उसके मालिक को लौटा देने को कहा। मुझे उसके इस काम से लज्जा हुई। किन्तु उसने मुझे यह उत्तर दिया, "कहाँ हैं तुम्हारे भिक्षादान? कहाँ है तुम्हारा धर्माचरण? अब पता चला कि तुम कितने पानी में हो!"
13) उन्होंने ईसा के पास कुछ फरीसियों और हेरोदियों को भेजा, जिससे वे उन्हें उनकी अपनी बात के फन्दे में फँसाये।
14) वे आ कर उन से बोले, "गुरुवर! हम यह जानते हैं कि आप सत्य बोलते हैं और किसी की परवाह नहीं करते। आप मुँह-देखी बात नहीं करते, बल्कि सच्चाई से ईश्वर के मार्ग की शिक्षा देते हैं। कैसर को कर देना उचित है या नहीं?"
15) हम दें या नहीं दें?" उनकी धूर्तता भाँप कर ईसा ने कहा, "मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? एक दीनार ला कर मुझे दिखलाओ।"
16) वे दीनार लाये और ईसा ने उन से पूछा, "यह किसका चेहरा और किसका लेख है?" उन्होंने उत्तर दिया, "कैसर का"।
17) इस पर ईसा ने उन से कहा, "जो कैसर का है, उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को"। यह सुन कर वे बड़े अचम्भे में पड़ गये।
ईसा सच्चाई के राह पर चलने वालों को मुक्ति प्रदान करने के लिए मानव रूप लेकर इस धरा पर आये थे। उनका सपूंर्ण जीवन सच्चाई पर आधारित था। उन्होंने कभी भी असत्य के राह को न अपनाया या स्वीकारा। लेकिन आज की दुनियाँ इसके विपरीत है वह आपसी लेन.देन और तर्क के अनुसार चलता है। इस परिवेष में आज का सुमाचार को एक चष्में में रखकर नहीं देखा जा सकता है।
सुसमाचार में आज प्रभु येसु कहते हैं जब वे फरीसियों एवं हेरोदयिों के द्वारा उन्हें फंसाने का प्रयास किया गया श्श्जोश्श् कैसर का हैए उसे कैसर को दो और ईष्वर का हैए उसे ईष्वर को। आज हमें आपने आप से प्रष्न करना है. क्या हम वास्तव में ईष्वर के प्रतिरूप को जो कि हम भी ईष्वर के प्रतिरूप है। उत्पत्ति ग्रंथ 01:26 को बरकार रखते हैघ् क्या हमें सच्चाई के राह पर चलते हैं जिन पर स्वंय प्रभु येसु ने चलकर हमें प्रेम किया और अपना जीवन दे दिया।
✍फादर आइजक एक्काJesus came into this world by taking human form to liberate all those who follow the path of truth; his entire life mission was based on truth. Jesus never comprised with falsehood nor did he appreciate it. But what we see and witness today is contrary to the teachings of Jesus. Today world believes and appreciates in give and take relationship and logic. From this angle we cannot see the gospel in a mirror.
In today’s gospel Jesus says when the Pharisees and Herodians wanted to trap him, “give to Caesar, what belongs to Caesar and give to God what belongs to God”.
Today we need to ask ourselves, do we really keep the image and likeness of God that we are? Or do we weaken it? We are all made in the image and likeness of God (Gen.1:26). Do we keep this image of God intact in us? Can we confidently say we belong to Jesus and Jesus belongs to us? Do we walk in the path of truth that Jesus walked in and gave his life for us all?
✍ -Fr. Isaac Ekka