1) हम पीढ़ियों के क्रमानुसार अपने लब्ध प्रतिष्ठ पूर्वजों का गुणगान करें।
9) कुछ लोगों की स्मृति शेष नहीं रही। वे इस प्रकार लुप्त हो गये हैं, मानो कभी थे ही नहीं। वे इस प्रकार चले गये हैं, मानो उनका कभी जन्म नहीं हुआ और उनकी सन्तति की भी यही दशा है।
10) जिन लोगों के उपकार नहीं भुलाये गये हैं, उनके नाम यहाँ दिये जायेंगे।
11) उन्होनें जो सम्पत्ति छोड़ी है, वह उनके वंशजों में निहित है।
12) उनके वंशज आज्ञाओें का पालन करते हैं
13) और उनके कारण उनकी सन्तति भी। उनका वंश सदा बना रहेगा और उनकी कीर्ति कभी नहीं मिटेगी।
11) ईसा ने येरूसालेम पहुँच कर मन्दिर में प्रवेश किया। वहाँ सब कुछ अच्छी तरह देख कर वह अपने शिष्यों के साथ बेथानिया चले गये, क्योंकि सन्ध्या हो चली थी।
12) दूसरे दिन जब वे बेथानिया से आ रहे थे, तो ईसा को भूख लगी।
13) वे कुछ दूरी पर एक पत्तेदार अंजीर का पेड़ देख कर उसके पास गये कि शायद उस पर कुछ फल मिलें; किन्तु पास आने पर उन्होंने पत्तों के सिवा और कुछ नहीं पाया, क्योंकि वह अंजीर का मौसम नहीं था।
14) ईसा ने पेड़ से कहा, "फिर कभी कोई तेरे फल न खाये"। उनके शिष्यों ने उन्हें यह कहते सुना।
15) वे येरूसालेम पहुँचे। मन्दिर में प्रवेश कर ईसा वहाँ से बेचने और ख़रीदने वालों को बाहर निकालने लगे। उन्होंने सराफ़ों की मेज़ें और कबूतर बेचने वालों की चैकियाँ उलट दीं
16) और वे किसी को भी घड़ा लिये मन्दिर से हो कर आने-जाने नहीं देते थे।
17) उन्होंने, लोगों को शिक्षा देते हुए कहा, "क्या यह नहीं लिखा है- मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलायेगा; परन्तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बनाया है"।
18) महायाजकों तथा शास्त्रियों को इसका पता चला और वे ईसा के सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ते रहे। वे उन से डरते थे, क्योंकि लोग मन्त्रमुग्ध हो कर उनकी शिक्षा सुनते थे।
19) सन्ध्या हो जाने पर वे शहर के बाहर चले जाते थे।
20) प्रातः जब वे उधर से आ रहे थे, तो शिष्यों ने देखा कि अंजीर का वह पेड़ जड़ से सूख गया है।
21) पेत्रुस को वह बात याद आयी और उसने कहा, "गुरुवर! देखिए, अंजीर का वह पेड़, जिसे आपने शाप दिया था, सूख गया है"।
22) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "ईश्वर में विश्वास करो।
23) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि कोई इस पहाड़ से यह कहे, ’उठ, समुद्र में गिर जा’ , और मन में सन्देह न करे, बल्कि यह विश्वास करे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह पूरा होगा, तो उसके लिए वैसा ही हो जायेगा।
24) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो कुछ प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जायेगा।
25) "जब तुम प्रार्थना के लिए खड़े हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो, तो क्षमा कर दो,
26) जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे।"