15) अब मैं प्रभु के कार्यों का स्मरण करूँगा। मैंने जो देखा है, उसका बखान करूँगा। प्रभु ने अपने शब्द द्वारा अपने कार्य सम्पन्न किये और अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय किया।
16) सूर्य सब कुछ आलोकित करता है समस्त सृष्टि प्रभु की महिमा से परिपूर्ण है।
17) स्वर्गदूतों को भी यह सामर्थ्य नहीं मिला है कि वे उन सब महान् कार्यो का बखान करें, जिन्हें सर्वशक्तिमान् प्रभु ने सुस्थिर कर दिया है, जिससे विश्वमण्डल उसकी महिमा पर आधारित हो।
18) वह समुद्र और मानव हृदय की थाह लेता और उनके सभी रहस्य जानता है;
19) क्योंकि सर्वोच्च प्रभु सर्वज्ञ है और भविष्य भी उस से छिपा हुआ नहीं। वह भूत और भविष्य, दोनो को प्रकाश में लाता और गूढ़तम रहस्यों को प्रकट करता है।
20) वह हमारे सभी विचार जानता है, एक शब्द भी उस से छिपा नहीं रहता।
21) उसकी प्रज्ञा के कार्य सुव्यवस्थित हैं; क्योंकि वह अनादि और अनन्त है। उस में न तो कोई वृद्धि है।
22) और न कोई ह्रास और उसे किसी परामर्शदाता की आवश्यकता नहीं।
23) उसकी सृष्टि कितनी रमणीय है! हम उसकी झलक मात्र देख पाते हैं।
24) उसके समस्त कार्य अनुप्रमाणित और चिरस्थायी हैं; उसने जो कुछ बनाया है, वह उसका उद्देश्य पूरा करता है।
25) सब चीजें दो-दो प्रकार की होती हैं, एक दूसरी से ठीक विपरीत। उसने कुछ भी व्यर्थ नहीं बनाया।
46) वे येरीख़ो पहुँचे। जब ईसा अपने शिष्यों तथा एक विशाल जनसमूह के साथ येरीख़ो से निकल रहे थे, तो तिमेउस का बेटा बरतिमेउस, एक अन्धा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा हुआ था।
47) जब उसे पता चला कि यह ईसा नाज़री हैं, तो वह पुकार-पुकार कर कहने लगा, "ईसा, दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए"!
48) बहुत-से लोग उसे चुप करने के लिए डाँटते थे; किन्तु वह और भी जोर से पुकारता रहा, "दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए"।
49) ईसा ने रुक कर कहा, "उसे बुलाओ"। लोगों ने यह कहते हुए अन्धे को बुलाया, "ढ़ारस रखो। उठो! वे तुम्हें बुला रहे हैं।"
50) वह अपनी चादर फेंक कर उछल पड़ा और ईसा के पास आया।
51) ईसा ने उस से पूछा, "क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?" अन्धे ने उत्तर दिया, "गुरुवर! मैं फिर देख सकूँ"।
52) ईसा ने कहा, "जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है"। उसी क्षण उसकी दृष्टि लौट आयी और वह मार्ग में ईसा के पीछे हो लिया।