वर्ष -1, आठवाँ सप्ताह, बुधवार

पहला पाठ : प्रवक्ता ग्रन्थ 36:1,4-5, 10-17

1) सर्वेश्वर प्रभु! हम पर दया कर, हमें अपनी करुणा की ज्योति दिखा।

4) जिस तरह तूने उनके सामने हम पर अपनी पवित्रता को प्रदर्शित किया, उसी तरह उन में अपनी महिमा को हमारे सामने प्रदर्शित कर।

5) प्रभु! वे तुझे उसी प्रकार जान जायें, जिस प्रकार हम जान गये कि तेरे सिवा और कोई ईश्वर नहीं।

10) विलम्ब न कर, निश्चित समय याद कर, जिससे लोग तेरे महान् कार्यों का बखान करें।

11) जो भागना चाहे, वह आग में भस्म हो जाये और जो लोग तेरी प्रजा पर अत्याचार करते हैं, उनका सर्वनाश हो।

12) विरोधी शासकों का सिर तोड़ डाला, जो कहते हैं, "हमारे बराबर कोई नहीं"।

13) समस्त याकूबवंशियों को एकत्र कर, उन्हें पहले की तरह उनकी विरासत लौटा।

14) प्रभु! उस प्रजा पर दया कर, जो तेरी कहलाती है, इस्राएल पर, जिसे तूने अपना पहलौठा माना है।

15) अपने पवित्र नगर, अपने निवासस्थान येरूसालेम पर दया कर।

16) अपने स्तुतिगान से सियोन को भर दे और अपनी महिमा से अपने मन्दिर को।

17) अपनी पहली कृति का समर्थन कर और अपने नाम पर घोषित भविष्य वाणियाँ पूरी कर।

सुसमाचार : मारकुस 10:32-45

32) वे येरूसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे। ईसा शिष्यों के आगे-आगे चलते थे। शिष्य बहुत घबराये हुए थे और पीछे आने वाले लोग भयभीत थे। ईसा बारहों को फिर अलग ले जा कर उन्हें बताने लगे कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी,

33) "देखो, हम येरूसालेम जा रहे हैं। मानव पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे प्राणदण्ड की आज्ञा सुना कर गै़र-यहूदियों के हवाले कर देंगे,

34) उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े लगायेंगे और मार डालेंगे; लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।"

35) ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और योहन ईसा के पास आ कर बोले, "गुरुवर ! हमारी एक प्रार्थना है। आप उसे पूरा करें।"

36) ईसा ने उत्तर दिया, "क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?"

37) उन्होंने कहा, "अपने राज्य की महिमा में हम दोनों को अपने साथ बैठने दीजिए- एक को अपने दायें और एक को अपने बायें"।

38) ईसा ने उन से कहा, "तुम नहीं जानते कि क्या माँग रहे हो। जो प्याला मुझे पीना है, क्या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, क्या तुम उसे ले सकते हो?"

39) उन्होंने उत्तर दिया, "हम यह कर सकते हैं"। इस पर ईसा ने कहा, "जो प्याला मुझे पीना है, उसे तुम पियोगे और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, उसे तुम लोगे;

40) किन्तु तुम्हें अपने दायें या बायें बैठने देने का अधिकार मेरा नहीं हैं। वे स्थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए वे तैयार किये गये हैं।"

41) जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ, तो वे याकूब और योहन पर क्रुद्ध हो गये।

42) ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा, "तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।

43) तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने

44) और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने;

45) क्योंकि मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।"


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