वर्ष -1, आठवाँ सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : प्रवक्ता-ग्रन्थ 35:1-15

1) संहिता के अनुसार आचरण बहुत-सी बलियों के बराबर है।

2 (2-3) जो आज्ञाओें का पालन करता है, वह शांति का बलिदान चढ़ाता है।

4) परोपकार अन्न-बलि लगाने के बराबर है। जो भिक्षादान करता है, वह धन्यवाद का बलिदान चढ़ाता है।

5) बुराई का त्याग प्रभु को प्रिय होता है और अधर्म से दूर रहना प्रायश्चित के बलिदान के बराबर है।

6) फिर भी खाली हाथ प्रभु के सामने मत जाओ,

7) क्योंकि ये सब बलिदान आदेश के अनुकूल हैं।

8) धर्मी का चढ़ावा वेदी की शोभा बढ़ाता है और उसकी सुगन्ध सर्वोच्च ईश्वर तक पहुँचती है।

9) धर्मी का बलिदान सुग्राहय होता है, उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी।

10) उदारतापूर्वक प्रभु की स्तुति करते रहो। प्रथम फलों के चढ़ावे में कमी मत करो।

11) प्रसन्नमुख हो कर दान चढ़ाया करो और खुशी से दशमांश देा।

12) जिस प्रकार सर्वोच्च ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसकी प्रकार तुम भी उसे सामर्थ्य के अनुसार उदारतापूर्वक दो;

13) क्योंकि प्रभु प्रतिदान करता है, वह तुम्हें सात गुना लौटायेगा।

14) उसे घूस मत दो, वह उसे स्वीकार नहीं करता।

15) पाप की कमाई के चढ़ावे पर भरोसा मत रखो; क्योंकि प्रभु वह न्यायाधीष है, जो पक्षपात नहीं करता।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:28-31

28) तब पेत्रुस ने यह कहा, "देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।"

29) ईसा ने कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो

30) और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन।

31) बहुत-से लोग जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।"


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