वर्ष -1, सातवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : प्रवक्ता-ग्रन्थ 17:1-15

1) प्रभु ने मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा। उसने उसे अपना प्रतिरूप बनाया।

2) वह उसे फिर मिट्टी में मिला देता है। उसने उसे अपने सदृश शक्ति प्रदान की।

3) उसने मनुष्यों की आयु की सीमा निर्धारित की और उन्हें पृथ्वी की सब वस्तुओं पर अधिकार दिया।

4) उसने सब प्राणियों में मनुष्य के प्रति भय उत्पन्न किया और उसे सब पशुओं तथा पक्षियों पर अधिकार दिया।

5) उसने मनुष्यों को बुद्धि, भाषा, आँखें तथा कान दिये और विचार करने का मन भी।

6) उसने उन्हें विवेक से सम्पन्न किया और भलाई तथा बुराई की पहचान से।

7) उसने उनके मन की आँखों को ज्योति प्रदान की, जिससे वे उसके कार्यों की महिमा देख सकें

8) और उसके पवित्र नाम का स्तुतिगान एवं महिमामय कार्यों का बखान करें।

9) उसने उन्हें ज्ञान का वरदान और जीवनप्रद नियम दिया।

10) उसने उनके लिए चिरस्थायी विधान निर्धारित किया और उन्हें अपनी आज्ञाओें की शिक्षा दी।

11) उनकी आँखों में उसके महिमामय ऐश्वर्य को देखा और उनके कानों ने उनकी महिमामय वाणी सुनी। उसने उन से यह कहा, "हर प्रकार की बुराई से दूर रहो"।

12) उसने प्रत्येक को दूसरों के प्रति कर्तव्य सिखाया।

13) मनुष्य जो कुछ करता है, वह सदा उसके लिए प्रकट है और उसकी आँखों से छिपा हुआ नहीं रह सकता।

14) उसने प्रत्येक राष्ट्र के लिए एक शासक नियुक्त किया,

15) किन्तु इस्राएल प्रभु की विरासत है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:13-16

13) लोग ईसा के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वे उन पर हाथ रख दें; परन्तु शिष्य लोगों को डाँटते थे।

14) ईसा यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें मत रोको, क्योंकि ईश्वर का राज्य उन-जैसे लोगों का है।

15) मैं तुम से यह कहता हूँ- जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।"

16) तब ईसा ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।


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