वर्ष -1, सातवाँ सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : प्रवक्ता-ग्रन्थ 5:1-8

1) अपनी धन-सम्पत्ति पर भरोसा मत रखो और यह मत कहो, ’’मुझे किसी बात की कमी नहीं’’।

2) प्रबल नैसर्गिक प्रवृत्तियों से हार कर अपने हृदय की वासनाओें को पूरा मत करो।

3) यह मत कहो, ’’मुझ पर किसी का अधिकार नहीं’’; क्योंकि प्रभु तुम्हें अवश्य दण्ड देगा।

4) यह मत कहो, ’’मैंने पाप किया, तो मेरा क्या बिगड़ा?’’ क्योंकि प्रभु बड़ा सहनशील है।

5) क्षमा पाने की आशा में पाप-पर-पाप मत करते जाओे।

6) यह मत कहो, ’’उसकी दया असीम है। वह मेरे असंख्य पाप क्षमा करेगा’’।

7) क्योंकि दया के अतिरिक्त उस में क्रोध भी है और उसका कोप पापियों पर भड़क उठता है।

8) प्रभु के पास शीघ्र ही लौटा आओ, दिन-पर-दिन उस में विलम्ब मत करो;

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 9:41-50

41) ’’जो तुम्हें एक प्याला पानी इसलिए पिलायेगा कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।

42) ’’जो इन विश्वास करने वाले नन्हों में किसी एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।

43 (43-44) और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लुले हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ।

45 (45-46) और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लँगड़े हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ।

47) और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ,

48) जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।

49) ’’क्योंकि हर व्यक्ति आग-रूपी नमक द्वारा रक्षित किया जायेगा।

50) ’’नमक अच्छी चीज़ है; किन्तु यदि वह फीका पड़ जाये, तो तुम उसे किस से छौंकोगे? ’’अपने में नमक बनाये रखो और आपस में मेल रखो।’’


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