11) तब तुम मानो सर्वोच्च प्रभु के पुत्र बनोगे और वह तुम को माता से भी अधिक प्यार करेगा।
12) प्रज्ञा अपनी प्रजा को महान् बनाती है। जो उसकी खोज में लगे रहते हैं, वह उनकी देखरेख करती है।
13) जो उसे प्यार करता है, वह जीवन को प्यार करता है। जो प्रातःकाल से उसे ढूँढ़ते हैं, वे आनन्दित होंगे।
14) जो उसे प्राप्त कर लेता है, वह महिमान्वित होगा। वह जहाँ कहीं जायेगा, प्रभु उसे वहाँ आशीर्वाद प्रदान करेगा।
15) जो उसकी सेवा करते हैं, वे परमपावन प्रभु की सेवा करते हैं। जो उसे प्यार करते हैं, प्रभु उन को प्यार करता है।
16) जो उसकी बात मानता है, वह न्यायसंगत निर्णय देता है। जो उसके मार्ग पर चलता है, उसका निवास सुरक्षित है।
17) जो उस पर भरोसा रखता है, वह उसे प्राप्त करेगा और उसका वंश भी उसका अधिकारी होगा।
18) प्रारम्भ में प्रज्ञा उसे टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर ले चलेगी और उसकी परीक्षा लेगी।
19) वह उस में भय तथा आतंक उत्पन्न करेगी। वह अपने अनुशासन से उसे उत्पीड़ित करेगी और तब तक अपने नियमों से उसकी परीक्षा करती रहेगी, जब तक वह उस पूर्णतया विश्वास नहीं करती।
38) योहन ने उन से कहा, ’’गुरुवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता’’।
39) परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, ’’उसे मत रोको; क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करें।
40) जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।